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Wednesday, 5 August 2020

श्री कृष्ण जन्माष्टमी

🌻श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पुजा और उपवास 🌻पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्सव का दिन है।भगवान श्री नारायण ने श्रीकृष्ण रुप में स्वयं पृथ्वी पर भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में जन्म लिया।इसलिए इस दिन को हम कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। योगेश्वर कृष्ण के भगवद्गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी को भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पुजा अर्चना और उपवास करने का एक अलग ही महत्व है।श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत सभी आयु वर्ग के लोग कर सकते हैं परन्तु जिनको स्वास्थ्य समस्याएं हैं वे न करें तो अच्छा है।वे व्रत न रखकर  केवल भगवान की आराधना करें। स्कन्द पुराण के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को नहीं करता है वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है तथा भविष्य पुराण मे कहा है कि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को जो मनुष्य नहीं करता है वह क्रूर राक्षस होता है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान की पुजन और व्रत करने का महत्व- पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार जब कृष्णाष्टमी हो तो उसमें कृष्ण का अर्चन और पूजन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। उनके पास सदैव स्थिर लक्ष्मी होती है। इस व्रत के करने के प्रभाव से उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। 
जन्माष्टमी पर उपवास करने के नियम-
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार जन्माष्टमी व्रत में अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के पारणा से व्रत की पूर्ति होती है। इस व्रत के करने वाले को  जन्माष्टमी व्रत से एक दिन पूर्व अर्थात सप्तमी को हल्का तथा सात्विक भोजन करना चाहिए तथा अपनी सभी इंद्रियों और अपने मन को काबू में रखना चाहिए। भगवान श्री कृष्ण का पुजन करना चाहिए और पुजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी इन सबका नाम क्रमशः लेते हुए विधिवत पूजन करना चाहिए।जन्माष्टमी का व्रत रात्रि बारह बजे के बाद ही खोला जाता है। इस व्रत में अनाज का उपयोग नहीं किया जाता है किन्तु फलहार के रूप में कुट्टू के आटे की पकौड़ी, मावे की बर्फ़ी और सिंघाड़े के आटे का हलवे का उपयोग किया जाता है।
पुजा करने की विधि -
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का पुजन करने के लिए सर्वप्रथम एक चोकी स्थापित करना चाहिए तथा चौकी पर लाल कपड़ा बिछाना चाहिए।भगवान कृष्ण की मूर्ति उस चौकी पर एक पात्र में रखे और अब दीपक जलाएं और धूपबत्ती भी जला ले। फिर हाथ जोड़कर भगवान कृष्ण का आह्वान करें कि 'हे भगवान श्रीकृष्ण ! मुझ दास पर कृपा कर आप पधारिए और मेरी पूजा ग्रहण कीजिए। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण का दक्षिणमुखी शंख से पंचामृत और गंगाजल से अभिषेक कर षोडशोपचार विधी से पुजा करे।अब श्री कृष्ण को वस्त्र पहनाएं और श्रृंगार करे। इस के बाद भगवान कृष्ण को दीप और धूप दिखाएं। अष्टगंध चन्दन या रोली का तिलक लगाएं और साथ ही अक्षत (चावल) भी तिलक पर लगाएं। माखन, मिश्री, नैवेद्य और अन्य भोग सामग्री का भोग लगाए और तुलसी का पत्ता विशेष रूप से अर्पण करे और साथ ही पीने के लिए गंगाजल रखें। अब श्री कृष्ण का ध्यान करे और प्रार्थना करे कि मैं आप श्री कृष्ण को प्रणाम करता हुं या करती हूं और आप मुझे अपने चरणों में अनन्य भक्ति प्रदान करें। इसके बाद विसर्जन के लिए हाथ में फूल और चावल लेकर चौकी पर छोड़ें और कहें कि हे भगवान् कृष्ण! मेरी पूजा में पधारने के लिए आपका कोटि कोटि धन्यवाद। कृपया मेरी पूजा और जप ग्रहण कीजिए और पुनः आप अपने दिव्य धाम को पधारिए।
Pandit Anjani kumar Dadhich
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