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Sunday, 2 August 2020

श्रावणी उपाकर्म

श्रावणी उपाकर्म के बारें में
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार श्रावन मास की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन पर्व के साथ-साथ श्रावणी उपाकर्म भी किया जाता है। वैदिक परंपरा के अनुसार वेदपाठी ब्राह्मणों के लिए श्रावण मास की पूर्णिमा सबसे बड़ा त्योहार है। इस दिन वे यजमानों के लिए कर्मकांड, यज्ञ, हवन आदि करने की जगह वे खुद अपनी आत्मशुद्धि के लिए अभिषेक और हवन करते हैं।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार सारे वेदपाठ ब्राह्मण पुर्णिमा के दिन प्रातःकाल में दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद स्नान करते हैं।जो दसविधि स्नान के रुप में जाना जाता है। इसमें पितरों तथा आत्मकल्याण के लिए मंत्रों के साथ हवन यज्ञ में आहुतियां दी जाती है। इस दौरान पितृ-तर्पण और ऋषि-पूजन किया जाता है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद और सहयोग मिलता है जिससे जीवन के हर संकट समाप्त हो जाते हैं।फिर कोरे जनेऊ की पूजा करते हैं। पूजन के बाद नदी या सरोवर में खड़े होकर ब्रह्मकर्म श्रावणी संपन्न होती है।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार पूजा किए गए जनेऊ में से एक जनेऊ पहन लेते हैं और बाकी के जनेऊ रख लेते हैं। पूरे वर्षभर जब भी जनेऊ बदलने की आवश्यकता होती है तो श्रावणी उपाकर्म के दौरान पूजित जनेऊ को ही पहनते हैं।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार वेदों और पुराणों में श्रावणी उपाकर्म के तीन पक्ष बताए है- प्रायश्चित हेमाद्रि संकल्प, आत्मसंयम संस्कार और स्वाध्याय।
प्रायश्चित हेमाद्रि स्नान संकल्प- पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार विद्यार्थी के द्वारा अपने
गुरु के सान्निध्य में ब्रह्मचारी गाय के दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र तथा पवित्र कुशा से स्नानकर वर्षभर में जाने-अनजाने में हुए पापकर्मों का प्रायश्चित कर जीवन को सकारात्मकता से भरने का संकल्प लिया जाता है।
आत्मसंयम संस्कार- पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार विद्यार्थी के द्वारा दसवीधी स्नान के बाद पितर पुजन, ऋषिपूजन, सूर्य उपासना एवं यज्ञोपवीत पूजन कर नवीन यज्ञोपवीत धारण की जाती हैं।यज्ञोपवीत या जनेऊ को आत्म संयम का संस्कार भी कहा जाता है।श्रावणी के दिन जिनका यज्ञोपवित संस्कार हो चुका होता है वह पुराना यज्ञोपवित उतारकर नया धारण करते हैं और पुराने यज्ञोपवित का पूजन भी करते हैं। 
स्वाध्याय - पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार उपाकर्म का तीसरा पक्ष स्वाध्याय का है। इसकी शुरुआत सावित्री, ब्रह्मा, श्रद्धा, मेधा, प्रज्ञा, स्मृति, सदसस्पति,अनुमति, छंद और ऋषि को घृत की आहुति से होती है। जौ के आटे में दही मिलाकर ऋग्वेद के मंत्रों से आहुतियां दी जाती हैं। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार इस यज्ञ के बाद वेद-वेदांग का अध्ययन आरंभ होता है।संपूर्ण प्रक्रिया जीवन शोधन की एक अति महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक-आध्यात्मिक प्रक्रिया है।
Pandit Anjani kumar Dadhich
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