पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार नवग्रहों में गुरू को देवताओं का गुरु माना जाता है। गुरु को बृहस्पति के नाम से भी जाना जाता है। बृहस्पति ग्रह कर्क राशी में उच्च भाव में रहता है और मकर राशि में नीच बनता है। सूर्य चंद्रमा और मंगल ग्रह बृहस्पति के लिए मित्र ग्रह है, बुध शत्रु है और शनि तटस्थ है। बृहस्पति के तीन नक्षत्र पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वा भाद्रपदश होते हैं।गुरु को वैदिक ज्योतिष में आकाश का तत्त्व माना गया है। इसका गुण विशालता, विकास और व्यक्ति की कुंडली और जीवन में विस्तार का संकेत होता है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में गुरु का बड़ा महत्व होता है। वैवाहिक सुख के लिए भी गुरु का मजबूत होना आवश्यक है।पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार जन्मकुंडली में गुरु (बृहस्पति) यदि बलवान है तो व्यक्ति ज्ञान, सत्कर्म, ईमानदारी, विद्या, बुद्धि, प्रसिद्धि और संपदा के मामले में श्रेष्ठ होता है, लेकिन यदि गुरु कमजोर हो तो व्यक्ति का जीवन संकटपूर्ण रहता है। गुरु अलग-अलग भाव में अपने शुभ और अशुभ प्रभाव से आदमी के व्यक्तित्व को बनाता है। मेरा यह मानना है कि गुरु जिस किसी भी भाव में बैठता हैं उस भाव की हानि भी करता हैं।
जीव क्षेत्रे यदा शनि: शनि क्षेत्रे यदा जीव:।
स्थान हानि करौ जीव: स्थानवृद्धि करो शनि।।
जो इस श्लोक से स्पष्ट है।गुरु के अलग अलग भाव में बैठने पर विभिन्न लक्षण परिणामस्वरूप दिखाई देते हैं जो निम्नलिखित हैं-
❁पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार प्रथम भाव अर्थात लग्न मे बैठा गुरु व्यक्ति को ज्ञानी और सही व उपयोगी परामर्शदाता के साथ सुस्त या आलसी बनाता है।❁पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार दूसरे भाव में गुरु वाणी में गंभीरता देता है और आपको अच्छा प्रवक्ता तथा वक्ता बनने में मदद करता है।
❁पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार तीसरे भाव में गुरु साहित्य प्रेमी,पराक्रम,परिश्रम से धनार्जन करने और धार्मिक प्रवृत्ति के साथ ऐश्वर्य (वाहनधारक)भी प्रदान करता है।
❁पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार चतुर्थ भाव में गुरु रूपवान,बलवान,बुद्धिमान निष्कपट हृदय,मजबूत मेधावी शक्ति,और वाक्पटुता प्रदान करता है।
❁पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार पंचम स्थान का गुरु बुद्धिमान,गुणवान,तर्कशील,आराम पंसद,विलासी और श्रेष्ठ एवं विद्वानों द्वारा पूज्यनीय बनाता है।
❁पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार छठे स्थान का गुरू मधुर भाषी,विवेकी, प्रसिद्ध, विद्वान,उदार,प्रतिष्ठित, धैर्यवान,रोगी और शत्रुहन्ता बनाता है।
❁पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार सातवें भाव में गुरु भाग्यवान, धार्मिक,नम्र, धैर्यवान और उधार बनाता है पर भाग्योदय शादी के बाद ही होता है।
❁पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार आठवें भाव का गुरु दीर्घायु आकर्षक व्यक्तित्व कंजूस लालची और सुदृढ़ शारीरिक संरचना प्रदान करता है तथा आठवें भाव का गुरु व्यक्ति को अधिक समय तक पिता के घर में नहीं रहने देता है। और ज्योतिष में भी रुचि जगाता है।
❁पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार नवें भाव का गुरु धार्मिक सत्यवादी, नीतिमान, विचारशील, सम्माननीय, शास्त्र ज्ञानी,विद्वान, दानी और कुलदीपक बनता है।
❁पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार दसवें भाव का गुरु चरित्रवान,स्वतंत्र विचारक, विवेकी न्यायी, सत्यवादी, सत्कर्मी, ज्ञानी, वाहनसुख और मकान सुखदायक बनाता है।
❁पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार ग्यारहवें भाव का गुरु निरोगी दीर्घायु ,संतोषी,उदार परोपकारी,ऐश्वर्यवान,कुशाग्र बुद्धि ,व्यापार में दक्ष,और विचारवान बनाता हैं।
❁पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार बारहवें भाव में गुरु आलसी, मितव्ययी, दुष्ट प्रवृत्ति, लोभी और लालची बनाता है।
Pandit Anjani Kumar Dadhich
Nakshatra jyotish Hub
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