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Wednesday, 31 August 2022

गणेश चतुर्थी के विशेष उपाय

गणेश चतुर्थी के विशेष उपाय 
प्रिय पाठकों, 
31अगस्त 2022, बुधवार
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज गणेश चतुर्थी के उपाय के बारे में जानकारी यहाँ दे रहा हूँ।पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार ज्ञान, बुद्धि और सौभाग्य के प्रतीक भगवान गणेश का जन्मोत्सव भाद्रपद मास की चतुर्थी को मनाया जाता है जो कि इस बार 31 अगस्त 2022 बुधवार को है अतः इस दिन गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी। 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार गणेश चतुर्थी पर निम्नलिखित उपायों को करने से भगवान श्रीगणेश जी व्यक्ति की सारे कष्टों का निवारण कर मनोवांछित फल प्रदान करते हैं-
✷ भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करने का विधान बताया गया है। गणेश चतुर्थी पर भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करने से विशेष लाभ होता है। इस दिन आप शुद्ध पानी से श्रीगणेश का अभिषेक करें। साथ में गणपति अथर्व शीर्ष का पाठ भी करें। बाद में मावे के लड्डुओं का भोग लगाकर भक्तों में बांट दें।
✷ गणेश चतुर्थी के दिन किसी कुम्हार के चाक से थोड़ी से मिट्टी लेकर आए और अंगूठे बराबर भगवान गणेश की मूर्ति बना लेवें। इसके बाद चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर षोडशोपचार विधि से पूजा-अर्चना करते हुए 'ओम् ह्रीं ग्रीं ह्रीं' मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए। यह लगातार अनंत चतुर्दशी यानी 10 दिन तक करते रहने से सभी विघ्न दूर होते हैं और जीवन में उन्नति एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है। 
✷ धन की तंगी से मुक्ति और धनवान बनने के लिए गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी के साथ सुपारी की पूजा करें और फिर इस सुपारी को कपड़े में बांधकर तिजोरी या धन स्थान में रख देने से कभी भी धन की कमी नहीं होगी।
✷ यदि कोई कार्य बार-बार प्रयास करने के बाद भी पूर्ण नहीं हो रहा है तो आज गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश को एक माला में 4 नारियल चढ़ाकर भगवान गणेश जी से अपने कार्य पूर्ण करने की प्रार्थना करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
✷ मनोकामना पूर्ति के लिए गणेश चतुर्थी के दिन हाथी को चारा खिलाएं और फिर गणेश जी से मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करें।
✷ संतान प्राप्ति में अगर परेशानी आ रही है तो गणेश चतुर्थी के दिन गणपति के बाल रूप की स्थापना करके उनकी पूजा करते हुए संतान गणपति स्त्रोत का पाठ और “ओम गं गणपतये: नमः” मंत्र का जाप 108 बार करने से आपको  संतान की प्राप्ति होगी।
✷ आर्थिक समस्याओं से परेशान हैं तो गणेश चतुर्थी के दिन 22 दूर्वा को एक साथ जोड़कर 11 जोड़े की गांठो को तैयार कर लेवे(ध्यान रहे कि एक गांठ दो दूर्वा से बनती है।) इसके बाद 11 गांठों को भगवान गणेशजी के मस्तिष्क से छूआकर उनको भगवान गणेश जी के चरणों में अर्पित कर देने के बाद गंध, फूल, दीप, धूप आदि वस्तुएं अर्पित कर भगवान गणेश जी का पुजन करें। यह प्रक्रिया को आप अनंत चतुर्दशी तक करते रहने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है और धन संबंधित समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
✷ नौकरी व व्यवसाय में उन्नति के लिए गणेश चतुर्थी के दिन घर में पीले रंग की गणेशजी की प्रतिमा स्थापित कर गणेश जी के चरणों में हल्दी की पांच गांठ चढ़ाएं और फिर भगवान गणेश जी का पंचोपचार विधि से पुजन करें और इसके बाद 108 दूर्वा को गीली हल्दी लगाकर हर दूर्वा को चढ़ाते समय 'श्री गजवक्त्रं नमो नम:' मंत्र का मन ही मन जप करते रहें। यह गणेशजी के पुजन की क्रिया अनंत चतुर्दशी तिथि तक प्रतिदिन करते रहें। ऐसा करने से उन्नति के द्वार खुलते हैं और रास्ते में आ रही अड़चन दूर होती है। 
✷ अगर किसी भी लड़की के विवाह में अड़चन आ रही है तो गणेश चतुर्थी पर उस लड़की को गणेश जी की पुजन कर विवाह की कामना करते हुए भगवान गणेश को मालपुए का भोग लगाएं और पूरा परिवार एक साथ प्रार्थना करें और अगर लड़के के विवाह में अड़चन आ रही है तो गणेश चतुर्थी पर उस लड़के को गणेश जी की पुजन कर विवाह की कामना करते हुए भगवान गणेश को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं। ऐसा करने से गणेशजी की कृपा से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं और अड़चन दूर होती हैं।
✷ धन संबंधित समस्या से मुक्ति के लिए गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का पूजनकर भगवान गणेश जी को घी और गुड़ का भोग लगाकर के गणपति अर्थवशीर्ष का पाठ करें। गणपति पूजन करने के बाद घी और गुड़ या हरी घास गाय को खिलाएं ऐसा करने से कर्ज की समस्या खत्म होती है और धन के मार्ग प्रशस्त होते हैं। 
लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
Nakshatra jyotish Hub
नक्षत्र ज्योतिष हब
Panditanjanikumardadhich@gmail.com
Phone No-6377054504,9414863294

Sunday, 14 August 2022

माणक धारण करने से पहले की सावधानीयां

सावधानियां रखें सूर्य रत्न माणिक्य (माणक) धारण करने से पहले
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भारतीय वैदिक ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक माणिक्य रत्न सूर्य का प्रतिनिधित्व करने वाला एक बहुमुल्य रत्न है। अनार के दाने-सा दिखने वाला गुलाबी आभा वाला बहुमूल्य रत्न माणिक्य है। 
माणिक्य उच्च कोटि का मान-सम्मान एवम पद की प्राप्ति करवाता है। इसीलिए सत्ता और राजनीती से जुड़े लोगो को माणिक्य रत्न को अवश्य धारण करना चाहिए क्योकि यह रत्न सत्ताधारियों को एक ऊंचे पद तक पहुंचने में बहुत सहायता कर सकता है। इसे (माणिक्य) को सभी रत्‍नों में सबसे श्रेष्‍ठ माना जाता है। 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार लाल रक्तकमल जैसे सिंदूरी, हल्के नीले आदि रंगों में पाया जाता है पर लाल रंग का माणिक्य सबसे बेहतरीन और मूल्‍यवान होता है। संसार के विभिन्‍न जगहों में पाए जाने के कारण और जलवायु परिवर्तन का असर इसके रंगों में भी दिखता है। यह कई अलग-अलग जगहों में लाल रंग से गुलाबी रंगो में निकलता है। आम बोलचाल की भाषा में माणिक्य को माणक भी कहा जाता है और संस्कृत भाषा में इसे लोहित, पद्यराग, शोणरत्न , रविरत्न, शोणोपल, वसुरत्न, कुरुविंद आदि नामों से तथा पंजाबी में चुन्नी, उर्दू- फारसी में याकत नाम से जाना जाता है और माणिक्य को अंग्रेजी में रूबी कहते हैं। इन्हीं सब विशेषताओं के चलते इसे सूर्यरत्न भी कहा जाता है। जो किसी भी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ प्रभाव में होता है तो उसे माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए ताकि इसे धारण करने से सूर्य की पीड़ा को शांत किया जा सके और माणिक्य सूर्य के प्रभाव को शुद्ध करता है एवं जातक धन आदि की अच्‍छी प्राप्‍ति कर पाता है। माणिक्य रत्न किसी भी व्यक्ति को मान-सम्मान,पद की प्राप्ति करवाने में सहायक सिद्ध होता है और माणिक (माणिक्य) से राजकीय और प्रशासनिक कार्यों में सफलता मिलती है। अगर माणिक पहनना लाभदायक होता है तो जातक के चेहरे पर चमक आ जाती है। इसे कुंडली के अनुसार ही धारण करने का विधान है। 
शुद्धता की पहचान - पंडित अंजनी कुमार के अनुसार यदि माणिक्य की शुद्धता की जांच पड़ताल करनी हो तो माणिक्य को गाय के दूध में डाल देंने पर दूध गुलाबी रंग का दिखाई देने लगे तो वो माणिक्य शुद्ध व असली है इसके अलावा शुद्ध माणिक्य को किसी काँच के पात्र में रखने से ऐसा लगेगा कि जैसे उस पात्र में रक्तिम(लाल) किरणें फूट रही हैं।माणिक रक्तवर्धक, वायुनाशक और पेट रोगों में लाभकारी सिद्ध होता है। यह मानसिक रोग एवं नेत्र रोग में भी फायदा करता है। माणिक धारण करने से नपुंसकता नष्ट होती है।
पंडित अंजनी कुमार के अनुसार माणिक्य पहनने से पहले यह अवश्य जान लेना चाहिए कि कि दोषयुक्त माणिक्य धारण करने से वह लाभ की बजाय हानि ज्यादा करता है। इसके अलावा माणिक्य धारण से सिरदर्द, अपयश, आर्थिक नुकसान और पारिवारिक समस्याएं आदि भी पहुंचा सकता है। इसलिए इसे पहनने से पहले निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए -
रत्न ज्योतिष के अनुसार जिस माणिक्य में आड़ी तिरछी रेखाएं या जाल जैसा दिखाई दे तो वह माणिक्य गृहस्थ जीवन को नष्ट करने वाला होता है।
जिस माणिक्य में दो से अधिक रंग दिखाई दें तो जान लीजिए कि वो माणिक्य आपकी लाइफ काफी परेशानियां ला सकता है।
कहा जाता है जिस माणक में चमक नहीं होती ऐसा माणिक्य विपरीत फल देने वाला होता है। तो कभी भी बिना चमक वाला माणिक्य न पहने।
माणिक्य खरीदने से पहले देख लें कि कहीं वो माणिक्य धुएं के रंग का न हो क्योंकि धुएं के रंग के जैसा दिखने वाला माणिक्य और मटमैला माणिक्य अशुभ होने के साथ हानिकारक माना जाता है। 
माणिक्य को नीलम, हीरा और गोमेद के साथ पहनना नुकसानदायक हो सकता है। माणिक्य को मोती, पन्ना, मूंगा और पुखराज के साथ पहन सकते हैं। 
शनि की राशियों या लग्न में माणिक्य पहनने से पूर्व ज्योतिष की सलाह जरूर लें।
माणिक्य को लोहे की अंगुठी में जड़वाकर पहनना नुकसानदायक है।
माणिक्य का प्रभाव अंगूठी में जड़ाने के समय से 4 वर्षों तक रहता है। इसके बाद दूसरा माणिक्य जड़वाना चाहिए।
किसी ज्‍योतिषाचार्य की सलाह से और जन्मकुंडली में सूर्य की स्‍थ‍िति को देखकर ही इसको धारण करना चाहिए। 

Thursday, 11 August 2022

पंचांग की काल गणना

पंचांग की काल गणना

प्रिय पाठकों, 

11 अगस्त 2022, गुरुवार 

मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज पंचांग के सरल ज्ञान के तहत पंचांग की काल गणना के बारे में जानकारी यहाँ दे रहा हूँ।

पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार पंचांग के पांच अंगों के द्वारा ही समय की काल गणना सम्भव हो पाई है और इसी काल गणना का उपयोग कर जन्म कुंडली, विवाह मुहूर्त, अनुष्ठान, शुभ- अशुभ स्थिति, ग्रहों का विचरण और अन्य गणनाएं की जाती है। हिन्दू पंचांग की समय गणना (काल गणना) में समय की अलग अलग प्रकार के माप हैं जो हिन्दू पंचांग में समय के गणनाचक्र को सूर्य सिद्धांत नामक ग्रंथ के पहले अध्याय के 11वें श्लोक से 23वें श्लोक तक में बतलाया गया हैं। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार इन सभी श्लोको का भावार्थ वर्णन निम्नलिखित है- 

☞ जो कि श्वास (प्राण) से आरम्भ होता है वह यथार्थ कहलाता है और वह जो त्रुटि से आरम्भ होता है। अवास्तविक कहलाता है। छः श्वास से एक विनाड़ी बनती है। साठ श्वासों से एक नाड़ी बनती है।

☞ साठ नाड़ियों से एक दिवस (दिन और रात्रि) बनते हैं। तीस दिवसों से एक मास (महीना) बनता है। एक नागरिक (सावन) मास सूर्योदयों की संख्याओं के बराबर होता है। जबकि एक चंद्र मास उतनी चंद्र तिथियों से बनता है। 

☞ एक सौर मास सूर्य के राशि में प्रवेश से निश्चित होता है। बारह मास एक वर्ष बनाते हैं। मानव के एक वर्ष को देवताओं का एक दिवस कहते हैं। देवताओं और दैत्यों के दिन और रात्रि पारस्परिक उलटे होते हैं। 

☞ उनके छः गुणा साठ देवताओं के दिव्य वर्ष होते हैं। ऐसे ही दैत्यों के भी होते हैं। बारह सहस्र (हजार) दिव्य वर्षों को एक चतुर्युग कहते हैं। यह तैंतालीस लाख बीस हजार सौर वर्षों का होता है।  

☞ भारतीय मनीषियों ने पूरे ब्रह्मांड की आयु की भी गणना की। उन्होंने सौर वर्ष के बाद दिव्य वर्ष से लेकर परार्ध तक की गणना की है। उसका चार्ट निम्नानुसार है-

लि युग = 4,32,000 वर्ष

 द्वापर युग = 8,64,000 वर्ष (2 कलि)

 त्रेता युग = 12,96,000 वर्ष (3 कलि)

 कृत युग 17,28,000 वर्ष (4 कलि)

कृत् या सत् युग में धर्म के चार पाद होते हैं, त्रेता में तीन, द्वापर में दो और कलि में केवल एक।

☞ चतुर्युगी की उषा और संध्या काल होते हैं।कॄतयुग या सतयुग और अन्य युगों का अन्तर को चरणों में मापा जाता है। 

☞ एक चतुर्युगी का दशांश को क्रमशः चार, तीन, दो और एक से गुणा करने पर कॄतयुग (सतयुग) और अन्य युगों की अवधि मिलती है। इन सभी का छठा भाग इनकी उषा और संध्या होता है।

☞ इकहत्तर चतुर्युगी का एक मन्वन्तर या एक मनु की आयु होती हैं। इसके अन्त पर संध्या होती है जिसकी अवधि एक सतयुग के बराबर होती है और यह प्रलय होती है। 

☞ एक कल्प में चौदह मन्वन्तर होते हैं और अपनी संध्याओं के साथ प्रत्येक कल्प के आरम्भ में पंद्रहवीं संध्या या उषा होती है। यह भी सतयुग के बराबर ही होती है। 

☞ एक कल्प में एक हजार चतुर्युगी होते हैं और फिर एक प्रलय होती है। यह ब्रह्मा का एक दिन होता है। इसके बाद इतनी ही लम्बी रात्रि भी होती है।

☞ इस दिन और रात्रि के आकलन से उनकी आयु एक सौ वर्ष होती है उनकी आधी आयु निकल चुकी है और शेष में से यह प्रथम कल्प है।

☞ इस कल्प में, छः मनु कंपनी संध्याओं समेत निकल चुके, अब सातवें मनु (वैवस्वत: विवस्वान (सूर्य) के पुत्र) की सत्ताईसवीं चतुर्युगी बीत चुकी है।

☞ वर्तमान समय के अनुसार‌ अट्ठाईसवीं चतुर्युगी का द्वापर युग बीत चुका है तथा भगवान कृष्ण के अवतार समाप्ति से 5123 वाँ वर्ष (ईस्वी सन् 2021 में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से) प्रगतिशील है। जबकि कलियुग की कुल अवधि 4,32,000 वर्ष है।  

पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार एक हिन्दु पंचांग की कालगणना में एक दिवस सूर्य उदय से अगले सूर्य उदय पर समाप्त होता है अर्थात एक सूर्यादय से दूसरे सूर्योदय तक के समय को दिवसके नाम से पुकारा जाता है और एक दिवस में एक दिन और एक रात होते हैं। दिवस से आरम्भ करके समय को साठ-साठ के भागों में विभाजित करके उनके नाम रखे गए हैं। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भारतीय पंचांग में समय की गणना को बड़ी से बड़ी और छोटे से छोटे इकाईयों में विभक्त कर किसी भी समय का शुभ मुहूर्त या योग निकाला जा सकता है जो निम्नलिखित है-

✷ 1 पलक झपकना = 1 निमेष

✷ 3 निमेष = 1 क्षण

✷ 5 क्षण = 1 काष्ठ

15 काष्ठा =1 लधु

✷ 15 लधु = 1 घटी = 24 मिनट ( घटि को देशज भाषा में घड़ी भी कहा जाता है।]

✷ 1पल = 60 विपल (60 विपल 24 सेकेण्ड के बराबर है। 1 विपल = 0.4 सेकेण्ड)

✷ 1 विपल = 60 प्रतिविपल 

✷ इसके अतिरिक्त 1 पल = 6 प्राण ( 1 प्राण = 4 सेकेण्ड )

✷ डेढ़ घटी = 1 घंटा

✷ 60 घटी = 24 घण्टे [एक दिवस = 60 घटि अर्थात 60 घटि 24 घंटे के बराबर होती है। 

✷ 2 घटी = 1मुहूर्त

✷ 30 मुहूर्त = 1 दिन-रात यानि अहोरात

✷ 1 याम = 1प्रहर (एक दिन का चौथा हिस्सा)

✷  8 प्रहर = 1 दिन -रात

✷ 7 दिन -रात = 1 सप्ताह

✷ 4 सप्ताह = 1 महीना

12 मास = 1 वर्ष (365 -366 दिनो)

पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिन्दुओं के धर्मशास्त्रों के अनुसार घण्टो- मिनटों को पलों में परिवर्तन करना और उनको नियम अनुसार देखना चाहिए।

✿ 1 मिनट – 2 -1/2 पल
✿ 4 मिनट – 10 पल
✿ 12 मिनट- 30 पळ
✿ 24 मिनट – 1 घटी
✿ 60 मिनट – 60 घटी यानि 1 घण्टा

भारतीय ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक समय को निम्नलिखित रुप से विभक्त किया जा सकता है - 

☆ 60 विकला = 1 कला

☆ 60 कला = 1 अंश

☆ 30 अंश = 1 राशि

☆ 12 राशि = मगण

☆ सूर्योदय से सूर्यास्त तक = एक दिन या दिनमान

☆ सूर्यास्त अगले दिन सूर्योदय = रात्रिमान

☆ उषाकाल = सूर्याद्य से 8 घटी पहले

☆ प्रात:काल = सूर्यादय से 3 घटी तक

☆ संध्याकाल =सूर्यास्त से 3 घटी तक।

पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार इस प्रकार एक दिवस में 360 पल होते हैं। एक दिवस में जब पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है तो उसके कारण सूर्य विपरीत दिशा में घूमता प्रतीत होता है। 360 पलों में सूर्य एक चक्कर पूरा करता है , इस प्रकार 360 पलों में 360 अंश। 1 पल में सूर्य का जितना कोण बदलता है उसे 1 अंश कहते है। 

पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार ब्रह्मांड में भिन्न-भिन्न लोकों में काल की गति भी भिन्न-भिन्न होती है। एक काल की सबसे छोटी ईकाई भारतीय शास्त्रों में परमाणु की मानी गई है। दो परमाणु के बराबर एक अणु होता है और तीन अणु काल के बराबर एक त्रसरेणु काल होता है। एक त्रसरेणु काल के माप के बारें में बताते हुए भारतीय शास्त्रकारों ने लिखा है कि किसी द्वार की झिरी में से आ रहे सूर्य के प्रकाश में जो कण उड़ते हुए दिखते हैं, उसे ही त्रसरेणु कहते हैं। प्रकाश को इसे पार करने में जितना समय लगता है, उसे ही एक त्रसरेणु काल कहते हैं। तीन त्रसरेणु काल को एक त्रुटि कहा गया है। त्रुटि से काल की गणना को बढ़ाते हुए परार्ध तक ले जाया गया है।

विष्णुधर्मोत्तर पुराण ( प्रथम खण्ड,73। 4-1, हेमाद्रि कृत चतुर्वर्ग चिन्तामणि, काल खंड)

1 लघु अक्षर उच्चारण 1 निमेष 

2 निमेष 1 त्रुटि 

10 त्रुटि 1 प्राण 

6 प्राण 1 विनाडिका 

60 विनाडिका 1 नाडिका 

60 नाडिका 1 मुहूर्त 

30 मुहूर्त 1 अहोरात्र

पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भारतीय ज्योतिषियों ने निम्नलिखित मंत्रों के आधार पर ही गणनाएं कीं और उन्हीं गणनाओं को आज का कथित वैज्ञानिक जगत में भी स्वीकार किया जाता है। 

☆ दादशारं नहि तज्जराय वर्वर्ति चक्रं परि द्यामृतस्य।आ पुत्रा अग्ने मिथुनासो अत्र सप्त शतानी विंशतिश्च तस्थुः॥ (ऋग्वेद 1/164/11)

☆ द्वादश प्रधयश्चक्रमेकं त्रीणि नभ्यानि क उ तच्चिकेत।तस्मिन्त्साकं त्रिंशता न शङ्कवोऽर्पिताः षष्टिर्न चलाचलास: ॥ (ऋग्वेद 1/164/48)

इन दो मंत्रों में यह स्पष्ट किया गया है कि संवत्सर में बारह अरे या प्रविधियाँ हैं। 360 शंकु यानी दिन अथवा 729 जोड़े यानी रात-दिन हैं। यहाँ इसे एक चक्र के रूप में निरूपित किया गया है, जोकि पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर की चक्राकार गति तथा काल की चक्रीय होने दोनों का ही प्रतीक है। इससे स्पष्ट है कि संवत्सर यानी एक वर्ष में 360 दिन और बारह मास होने की संकल्पना भारत में एकदम प्रारंभ से ही है। परंतु इस सामान्य आधार को आगे बढ़ाते हुए भारतीय ज्योतिषाचार्यों ने पृथ्वी की अयन गति को जाना और इसके बाद उन्होंने वर्ष का वास्तविक परिगणन भी किया। मासों की गणना या निर्माण पृथ्वी की अपनी कक्षा से नहीं की गई, इसका निर्धारण चंद्रमा के पृथिवी के चारों ओर की कक्षा से किया गया। इसलिए इसे चांद्रमास भी कहते हैं। चंद्रमा का एक मास 30 चंद्र तिथियों का होता है परंतु वह सौर मास से लगभग आधा दिन छोटा होता है। दोनों मासों में सामंजस्य बैठाने के लिए भारतीय ज्योतिषाचार्यों ने मलमास या अधिमास का विधान किया। वास्तव में चंद्रमा से मासों का निर्धारण केवल गणना का एक प्रकार मात्र नहीं है बल्कि इसका वैज्ञानिक आधार भी है। यह आज हमें ठीक से ज्ञात हो चुका है कि चंद्रमा ही पृथ्वी पर वातावरण संबंधी अनेक बदलावों को लाने का कारण है। वेदों में इस सृष्टि को अग्निसोमात्मकं यानी कि अग्नि तथा सोम से निर्मित और संचालित होना कहा गया है। सूर्य अग्नि है और चंद्रमा सोम है। कृषि में हम इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देख सकते हैं। चंद्रमा के कारण पौधों की बालियों में रस भरता है और सूर्य के कारण फसले पकती हैं। मानव की पूरी सभ्यता आदि काल से कृषि आधारित रही है और चांद्र मास की गणना कृषिकार्य में सहायक है। यही कारण है कि सौर मासों की गणना करने के बाद भी भारतीय आचार्यों ने चांद्रमासों की भी गणना की।पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार विक्रम संवत् विश्व का सर्वश्रेष्ठ सौर-चांद्र के सामंजस्य वाला संवत् है। आज उस गणना को भुलाने के कारण कृषि में जो बाधाएं आ रही है वो बाधाएं किसी से छिपी नहीं हैं। भले ही उनका सही कारण नही समझने के कारण उसके निदान कुछ और किए जा रहे हैं जो और भी नवीन समस्याओं को जन्म दे रहे हैं। कुल मिलाकर कृषि कार्य भी कालगणना से जुड़ा हुआ मामला है।पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार प्राचीन काल के भारतीय ज्योतिषाचार्यों ने मासों का नाम पश्चिम सभ्यता का प्रचलित ईस्वी संवत की तरह मनमाने ढंग से नहीं रखा हालाँकि वेदों तथा उनके ब्राह्मणों में 12 मासों के नाम भिन्न दिए गए थे परंतु बाद में इन मासों का नाम उनके नक्षत्रों के आधार पर रखा गया जिनसे इनका प्रारंभ होता है। चित्रा नक्षत्र में प्रारंभ होने वाले मास का नाम चैत्र, विशाखा नक्षत्र में प्रारंभ होने वाले मास का नाम वैशाख। इस क्रम में सभी मासों के नाम निर्धारित किए गए। चंद्रमा और सूर्य की चाल से एक मास में तिथियों को निर्धारित किया गया और जो मनमाने ढंग से निर्धारित नहीं किया जाता है और आज भी तिथियों को निर्धारण किया जाता है। इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए प्राचीन काल के भारतीय ज्योतिषाचार्यों ने प्रत्येक अहोरात्र को 24 होराओं में बांटा और हरेक का नामकरण भी किया। दिन के पहले होरा के नाम पर उस दिन का नाम किया गया। इस प्रकार सात दिनों के नाम रखे गए और इन्हीं नामों के आधार पर यूरोप में प्रचलित संवत में भी सातों दिनों के नाम रखे गए।

लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
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Tuesday, 9 August 2022

सरल पंचांग ज्ञान

सरल पंचांग ज्ञान 
प्रिय पाठकों, 
 10 अगस्त 2022, बुधवार 
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज पंचांग के सरल ज्ञान के बारे में जानकारी यहाँ दे रहा हूँ।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार ज्योतिष विज्ञान छह शास्त्रों में से एक है और इसे वेदों का नेत्र कहा गया है और इसी कारण ऐसा माना जाता है की वेदों का सही ज्ञान प्राप्त करने के लिए ज्योतिष में पारंगत होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए महाप्रतापी त्रिलोकपति रावण जिसे चारो वेद कंठस्थ थे वह ज्योतिष का सिद्ध ज्ञाता था और उसने ही रावण संहिता जैसा ग्रंथ रचा था जिसके बल पर उसने शनी और यमराज तक को अपना दास बना लिया था। ज्योतिष ज्ञान से ही नारद भगवान कृष्ण, भीष्म पितामह, कर्ण आदि महान योद्धा भी ज्योतिष के अच्छे जानकर और त्रिकालज्ञ हुए थे। ब्रह्मा के मानस पुत्र भृगु ने भृगु-संहिता का प्रणयन किया। छठी शताब्दी में वरामिहिर ने वृहज्जातक, वृहत्सन्हिता और पंचसिद्धांतिका लिखी। सातवी सदी में आर्यभट ने ‘आर्यभटीय’ की रचना की जो खगोल और गणित की जानकारियाँ है। ऋषि पराशर रचित होरा शास्त्र ज्योतिष का सिद्ध ग्रन्थ है। नील कंठी वर्षफल देखने का एक अच्छा ग्रन्थ है। मुहूर्त देखने के लिए मुहूर्त चिंतामणि एक अच्छा ग्रन्थ है। भाव प्रकाश, मानसागरी, फलदीपिका, लघुजातकम, प्रश्नमार्ग भी बहुप्रचलित ग्रन्थ है। बाल बोध ज्योतिष, लाल किताब, सुनहरी किताब, काली किताब और अर्थ मार्तंड अच्छी पुस्तकें हैं। कीरो व बेन्ह्म जैसे अंग्रेज ज्योतिषियों ने भी हस्तरेखा ज्योतिष पर भी किताबें लिखी। नस्त्रेदाम्स की भविष्यवाणी विश्व प्रसिद्ध है जो ज्योतिष शास्त्र की अनमोल धरोहर है। 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार ज्योतिष शास्त्र को जानने या सिखने के लिए पंचांग प्रथम पायदान है। पंचांग का शाब्‍दिक अर्थ है पंच + अंग = पांच अंग यानि पंचांग। हिन्दू काल-गणना की रीति से निर्मित पारम्परिक कैलेण्डर या कालदर्शक को पंचांग कहते हैं।हिन्दू धर्म में छः वैदांगो में से एक महत्वपूर्ण अंग समझे जाने वाली ज्योतिष विद्या का प्रमुख दर्पण है जिससे समय की विभिन्न इकाईयों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में ही पंचांग एक ऐसी विद्या है जिसको जानना और समझना भी बहुत कठिन होता है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार पंचांग के पठन और श्रवण से भी लाभ मिलता है। पंचांग भिन्न-भिन्न रूप में लगभग पूरे भारत में माना जाता है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार संवत्, महीना, पक्ष, दिन(दिवस) और तिथि आदि के बारे में जानने की विधा (साधन) एक मात्र पंचांग ही है। क्योंकि इसमें पंचांग के पांच अंग शामिल होते हैं इसलिए इसे पंचांग का नाम दिया गया है पंचांग ही इस बात से ज्ञात करवाते हैं कि दिन शुभ है या अशुभ। धार्मिक कार्यों, सभी प्रकार के विवाह, मुण्डन संस्कार, भवन निर्माण आदि का तिथियों,नक्षत्र, योग, और समय के अनुसार अनुष्ठान का ज्ञान पंचांग द्वारा ही लगाया सकता है और आज दैनिक जीवन में विशेष प्रचलित राशि फल, दिन-रात, सूर्य का अस्त-उदय, घडी पल और भारतीय समय का ज्ञान, मौसम परिवर्तन, ग्रह परिवर्तन, त्यौहार व व्रत आदि भी इसी पंचांग से देखा जाता है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिन्दू धर्म में प्राचीन काल से पंचांग के विशेष पांच अंग माने जाते है जो वार, तिथि, नक्षत्र, योग, करण है। पंचांग नाम इसके पांच प्रमुख भागों से बने होने के कारण है।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार पंचांग के पांच अंगों की संक्षिप्‍त जानकारी निम्नलिखित है-
(1) तिथि - चन्द्रमा की एक कला को तिथि कहते हैं। चन्द्र और सूर्य के अन्तरांशों के मान 12 अंशों का होने से एक तिथि होती है। जब अन्तर 180 अंशों का होता है उस समय को पूर्णिमा कहते हैं और जब यह अन्तर 0 या 360 अंशों का होता है उस समय को अमावस कहते हैं। एक मास में लगभग 30 तिथि होती हैं। 15 कृष्ण पक्ष की और 15 तिथि शुक्ल पक्ष की। इनके नाम इस प्रकार होते हैं 1 प्रतिपदा, 2 द्वितीया, 3 तृतीया, 4 चतुर्थी, 5 पंचमी, 6 षष्ठी, 7 सप्तमी, 8 अष्टमी, 9 नवमी, 10 दशमी, 11 एकादशी, 12 द्वादशी, 13 त्रयोदशी, 14 चतुर्दशी और 15 पूर्णिमा, यह शुक्ल पक्ष कहलाता है। कृष्ण पक्ष में यही 14 तिथि होती हैं बस अन्तिम तिथि पूर्णिमा के स्थान पर अमावस्या नाम से जाना जाती है। 
(2) वार- एक सूर्योदय से दूसरे दिन के सूर्योदय तक की कलावधि को वार कहते हैं। वार सात होते हैं जो इस प्रकार है- 1. रविवार, 2. सोमवार, 3. मंगलवार, 4. बुधवार, 5. गुरुवार, 6. शुक्रवार और 7. शनिवार।
(3)नक्षत्र- ताराओं के समूह को नक्षत्र कहते हैं। नक्षत्र 27 होते हैं। प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं और 9 चरणों के मिलने से एक राशि बनती है। 27 नक्षत्रों के नाम इस प्रकार हैं- 1. अश्विनी 2. भरणी 3. कृत्तिका 4. रोहिणी 5. मृगशिरा 6. आद्र्रा 7. पुनर्वसु 8. पुष्य 9. अश्लेषा 10. मघा 11. पूर्वाफाल्गुनी 12. उत्तराफाल्गुनी 13. हस्त 14. चित्रा 15. स्वाती 16. विशाखा 17. अनुराधा 18. ज्येष्ठा 19. मूल 20. पूर्वाषाढ 21. उतराषाढ 22. श्रवण 23. घनिष्‍ठा 24. शतभिषा 25. पूर्वाभद्रपद 26. उत्तराभाद्रपद 27. रेवती। परन्तु किसी शुभ कार्य को करने के लिए जब मुहूर्त निकालते हैं तो 28वां नक्षत्र को भी माना जाता है। यह 28वां नक्षत्र अभिजीत नक्षत्र कहलाता है। अभिजीत नक्षत्र का उपयोग ग्रह प्रवेश के मुहूर्त, विवाह सम्बंधित कार्य के लिए, नया वाहन खरीदने के लिए और शिक्षा की शुरुआत के लिए किया जाता है।
(4)योग- सूर्य चन्द्रमा के संयोग से योग बनता है ये भी 27 होते हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं- 1. विष्कुम्भ, 2. प्रीति, 3. आयुष्मान, 4. सौभाग्य, 5. शोभन, 6. अतिगण्ड, 7. सुकर्मा, 8.घृति, 9.शूल, 10. गण्ड, 11. वृद्धि, 12. ध्रव, 13. व्याघात, 14. हर्षल, 15. वङ्का, 16. सिद्धि, 17. व्यतीपात, 18.वरीयान, 19.परिधि, 20. शिव, 21. सिद्ध, 22. साध्य, 23. शुभ, 24. शुक्ल, 25. ब्रह्म, 26. ऐन्द्र, 27. वैघृति।
(5)करण- तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं यानि एक तिथि में दो करण होते हैं। करणों के नाम इस प्रकार हैं 1. बव, 2.बालव, 3.कौलव, 4.तैतिल, 5.गर, 6.वणिज्य, 7.विष्टी (भद्रा), 8.शकुनि, 9.चतुष्पाद, 10.नाग, 11.किंस्तुघन।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार पंचांग की गणना के आधार पर हिंदू पंचांग की तीन धारायें हैं पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति।
पंचांग के चक्र को खगोलीय तत्वों से जोड़कर देखा जाता है। भारत देश में कई तरह के प्रचलित है परन्तु सभी हिन्दू पंचांग कालगणना के एक समान सिद्धांतों और विधियों पर आधारित होते हैं किन्तु मासों के नाम, वर्ष का आरम्भ आदि की दृष्टि से अलग अलग होते हैं।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार पंचांग के मुख्यत: तीन सिद्धान्त को प्रयोग में लाये जाते हैं जो निम्नलिखित है-
✷ सूर्य सिद्धान्त – अपनी विशुद्धता के कारण सारे भारत में प्रयोग में लाया जाता है।
✷ आर्य सिद्धान्त – त्रावणकोर, मलावार, कर्नाटक में माध्वों द्वारा, मद्रास के तमिल जनपदों में प्रयोग किया जाता है।  
✷ ब्राह्मसिद्धान्त – गुजरात एवं राजस्थान में प्रयोग किया जाता है।
विशेष
ब्राह्मसिद्धान्त सिद्धान्त अब सूर्य सिद्धान्त सिद्धान्त के पक्ष में समाप्त होता जा रहा है। सिद्धान्तों में महायुग से गणनाएँ की जाती हैं, जो इतनी क्लिष्ट हैं कि उनके आधार पर सीधे ढंग से पंचांग बनाना कठिन है। अतः सिद्धान्तों पर आधारित ‘करण’ नामक ग्रन्थों के आधार पर पंचांग निर्मित किए जाते हैं, जैसे – बंगाल में मकरन्द, गणेश का ग्रहलाघव। ग्रहलाघव की तालिकाएँ दक्षिण, मध्य भारत तथा भारत के कुछ भागों में ही प्रयोग में लायी जाती हैं।
सिद्धान्तों में अन्तर के दो तत्त्व महत्त्वपूर्ण हैं
प्रथम वर्ष विस्तार के विषय में और द्वितीय वर्षमान का अन्तर के विषय में।
केवल कुछ विपलों का है, और कल्प या महायुग या युग में चन्द्र एवं ग्रहों की चक्र-गतियों की संख्या के विषय में। यह केवल भारत में ही पाया गया है। आजकल  का प्रचलित यूरोपीय पंचांग भी असन्तोषजनक है।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भारत में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख पंचांग निम्नलिखित हैं-
(1)विक्रमी पंचांग - यह सर्वाधिक प्रसिद्ध पंचांग है जो भारत के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भाग में प्रचलित है।
(2) तमिल पंचांग  -  दक्षिण भारत में प्रचलित है।
(3) बंगाली पंचांग - बंगाल तथा कुछ अन्य पूर्वी भागों में प्रचलित है।
(4) मलयालम पंचांग - यह केरल में प्रचलित है और सौर पंचाग है।
साल, महीने, सप्‍ताह और दिन
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हमारे हिंदू पंचांग में 12 महीने होते हैं। विक्रम संवत के अनुसार 12 माह का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन शुरू हुआ। माह का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। प्रत्येक महीने में 15 दिन के दो पक्ष होते हैं प्रथम शुक्ल पक्ष और द्वितीय कृष्ण पक्ष। प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं। यह 12 राशियां बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन उसकी संक्रांति होती है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घड़ी 48 पल छोटा है। इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमे एक महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास, मल मास या पुरुषोत्‍तम महीना कहते हैं। प्रत्येक महीने में तीस दिन होते हैं। महीने को चंद्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने के आधार पर शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष विभाजित होते हैं। एक दिन को तिथि कहा जाता है जो पंचांग के आधार पर उन्नीस घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक होती है। दिन को चौबीस घंटों के साथ-साथ आठ पहरों में भी बांटा गया है। एक प्रहर करीब तीन घंटे का होता है। एक घंटे में लगभग दो घड़ी होती हैं, एक पल लगभग आधा मिनट के बराबर होता है और एक पल में चौबीस क्षण होते हैं। पहर के अनुसार देखा जाए तो चार पहर का दिन और चार पहर की रात्रि होती है। 
क्रमशः जारी........…
लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
Nakshatra jyotish Hub
नक्षत्र ज्योतिष हब
Panditanjanikumardadhich@gmail.com
Phone No-6377054504,9414863294

Sunday, 7 August 2022

भद्रा :- एक अद्भुत जानकारी

भद्रा :- एक अद्भुत जानकारी 
प्रिय पाठकों, 
 07 अगस्त 2022, रविवार 
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज भद्रा के बारे में अद्भुत जानकारी यहाँ दे रहा हूँ।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भारतीय हिन्दू संस्कृति में भद्रा काल को अशुभ काल माना जाता है और इसी वजह से इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार पौराणिक कथा के अनुसार भगवान सूर्य देव की पुत्री तथा शनिदेव की बहन का नाम भद्रा है। भविष्यपुराण में कहा गया है की भद्रा का प्राकृतिक स्वरूप अत्यंत भयानक है इनके उग्र स्वभाव को नियंत्रण करने के लिए ही ब्रह्मा जी ने इन्हें कालगणना का एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया। कहा जाता है की ब्रह्मा जी ने ही भद्रा को यह वरदान दिया है कि जो भी जातक या व्यक्ति उनके समय में कोई भी शुभ(मांगलिक) कार्य करेगा उस व्यक्ति को भद्रा अवश्य ही परेशान करेगी। इसी कारण वर्तमान समय में भी गृह के बुजुर्ग भद्रा काल में शुभ कार्य करने से मना करते है। ऐसा देखा भी गया है की इस काल में जो भी कार्य प्रारम्भ किया जाता है वह या तो पूरा नही होता है या पूरा होता है तो देर से होता है।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिन्दू पंचांग के 5 प्रमुख अंग होते हैं। ये तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण हैं । इनमें से करण  हिन्दू पंचांग का एक महत्वपूर्ण अंग होता है। करण किसी भी तिथि का आधा भाग होता है इसलिए एक तिथि में दो करण होते हैं। करण की संख्या 11 होती है जो निम्नलिखित है 
1-बव, 2-बालव, 3-कौलव, 4-तैतिल, 5-गर, 6-वणिज, 7-विष्टि, 8-शकुनि, 9-चतुष्पद, 10-नाग, 11-किन्स्तुघ्न। ये चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं।इन 11 करणों में 7वें करण ही विष्टि नामक करण को ही भद्रा कहते है। यह सदैव गतिशील होती है। पंचांग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है। धर्मशास्त्र के अनुसार जब भी उत्सव-त्योहार या पर्व काल पर चौघड़िए तथा पाप ग्रहों से संबंधित काल की बेला में निषेध समय दिया जाता है तो वह समय शुभ कार्य के लिए त्याज्य होता है। भारतीय पंचांग के अनुसार जब करण विष्ट‍ि लगता है तो उसे ही भद्राकाल कहा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भद्रा सूर्य और छाया की पुत्री है और इस वजह से इसका संबंध सूर्य और शनि से है। हिन्दू पंचांग के ज्ञान का बोध कराने वाली पुस्तक 
महुर्त चिन्तामणि के अनुसार शुक्लपक्ष की अष्टमी और पूर्णिमा के पूर्वार्द्ध (प्रथम 30 घड़ी) में भद्रा रहती है, और शुक्लपक्ष की एकादशी और चतुर्थी को उत्तरार्द्ध (अंत की 30 घड़ी) में भद्रा होती है। कृष्णपक्ष में तृतीया और दशमी को उत्तरार्द्ध में भद्रा और सप्तमी और चतुर्दशी के पूर्वार्द्ध में भद्रा रहती है। तो इस प्रकार पूर्णिमा की प्रथम 30 घड़ी तक (तिथ्यार्ध) तक भद्रा तो रहती ही है और  फाल्गुन की पूर्णिमा को ही होलिका दहन होता है तो उस दिन भद्रा तो होती ही है।
महुर्त चिन्तामणि के अनुसार शुक्ले पूर्वार्धेष्टमीपञ्चदश्योर्भद्रैकादश्यां स्याच्चतुर्थ्यांपरार्धे। कृष्णेन्त्यार्धे स्यातृतीयादशम्योः पूर्वे भागे सप्तमीशंभुतिथ्योः।। 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार ऐसी मान्यता है कि जब भद्रा का वास किसी पर्व काल में स्पर्श करता है तो उसके समय की पूर्ण अवस्था तक श्रद्धावास माना जाता है। भद्रा का समय 7 से 13 घंटे 20 मिनट माना जाता है लेकिन इसके समय के बीच में नक्षत्र व तिथि के अनुक्रम तथा पंचक के पूर्वार्द्ध नक्षत्र के मान व गणना से घट-बढ़ होती रहती है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भद्रा का वह समय छोड़ देना चाहिए जिसके पर्व काल में भद्रा के मुख तथा पुंछ का विचार किया जाता है तथा भद्रा को सर्पिणी मानते हुए उसके मुख और पूँछ का ज्ञान मुहूर्त्त चिन्तामणि के निम्नलिखित श्लोक से मिलता है –पंचद्वयद्रकृताष्टरामरसभूयामादिघट्यः शराविष्टेरासस्य  मसद्गजेन्दुरसरामाध्रश्विबाणाब्धिषु।।यामेष्वंत्यघटीत्रयं शुभकरं पुच्छं तथा वासरे विष्टिस्तिथ्यपरार्धजा शुभकरी रात्रौतु पूर्वार्धजा।।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भद्रा का शाब्दिक अर्थ है ‘कल्याण करने वाली’ लेकिन इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टि करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं। भद्रा के 12 नाम है जो निम्नलिखित हैं धान्या, दधि मुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारूद्रा, विष्टिकरण, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली, असुरक्षयकारी हैं।भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अनुसार एक महीने में दो पक्ष होते है। मास के एक पक्ष में भद्रा की 4 बार पुनरावृति होती है। यथा – शुक्ल पक्ष में अष्टमी( 8) तथा पूर्णिमा (15 ) तिथि के पूर्वार्द्ध में भद्रा होती है वही चतुर्थी (4) एकादशी (11) तिथि के उत्तरार्ध में भद्रा काल होती है। कृष्ण पक्ष में भद्रा तृतीया (3) व दशमी (10) तिथि का उत्तरार्ध और सप्तमी (7) व चतुर्दशी(14) तिथि के पूर्वार्ध में होती है। 
भद्रा वास 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार  मेष, वृषभ, मिथुन, वृश्चिक का जब चंद्रमा हो तब भद्रा स्वर्ग लोक में रहती है। कन्या, तुला, धनु, मकर का चंद्रमा होने से पाताल लोक में, कर्क, सिंह, कुंभ, मीन राशि पर स्थित चंद्रमा होने पर भद्रा मृत्यु लोक में रहती है अर्थात् सम्मुख रहती है। जब भद्रा भू-लोक में रहती है तब अशुभ फलदायिनी एवं वर्जित मानी गई है। इस समय शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। बाकि अन्य लोक में शुभ रहती है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार विशेष ध्यान रखने योग्य बात यह है कि शुक्ल पक्ष की भद्रा का नाम वृश्चिकी है। कृष्ण पक्ष की भद्रा का नाम सर्पिणी है। कुछ एक मतांतर से दिन की भद्रा सर्पिणी, रात्रि की भद्रा वृश्चिकी है। बिच्छू का विष डंक में तथा सर्प का मुख में होने के कारण वृश्चिकी भद्रा की पुच्छ और सर्पिणी भद्रा का मुख विशेषतः त्याज्य है।पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भद्रा के प्रमुख दोष निम्नलिखित है-
✷ जब भद्रा मुख में रहती है तो कार्य का नाश होता है।
✷ जब भद्रा कंठ में रहती है तो धन का नाश होता है।
✷ जब भद्रा हृदय में रहती है तो प्राण का नाश होता है।
✷ जब भद्रा पुच्छ में होती है तो विजय की प्राप्ति एवं कार्य सिद्ध होते हैं।
अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है। जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या या उनका नाश करने वाली मानी गई है।जब चन्द्रमा कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है और भद्रा नामक (विष्टि करण) का योग होता है तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है। इस समय सभी कार्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं। 
मुहुर्त्त चिन्तामणि के अनुसार जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी अर्थात मृत्युलोक में होता है। चंद्रमा जब मेष, वृष, मिथुन या वृश्चिक में रहता है तब भद्रा का वास स्वर्गलोक में होता है। कन्या, तुला, धनु या मकर राशि में चंद्रमा के स्थित होने पर भद्रा का वास पाताल लोक में होता है। कहा जाता है की भद्रा जिस भी लोक में विराजमान होती है वही मूलरूप से प्रभावी रहती है। अतः जब चंद्रमा गोचर में कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होगा तब भद्रा पृथ्वी लोक पर असर करेगी। भद्रा जब पृध्वी लोक पर होगी तब भद्रा की अवधि कष्टकारी होगी।
जब भद्रा स्वर्ग या पाताल लोक में होगी तब वह शुभ फल प्रदान करने में समर्थ होती है। 
✷भद्रा दोष :- मंगलवार-शनिवार जनित दोष, व्यतिपात, अष्टम भावस्थ एवं जन्म नक्षत्र दोष, मध्याह्न के पश्चात शुभ कारक मानी जाती है। 
भद्रा काल में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षा बंधन आदि मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। लेकिन भद्राकाल में स्त्री प्रसंग, यज्ञ करना, स्नान करना, अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करना, ऑपरेशन करना, कोर्ट में मुकदमा दायर करना, अग्नि सुलगाना, किसी वस्तु को काटना, भैंस, घोड़ा, ऊंट संबंधी कोई भी कर्म प्रशस्त माने जाते हैं। यदि किसी भी शुभ कार्य को भद्राकाल में करते है तो अशुभ परिणाम मिलने की प्रबल सम्भावना होती है। मुहूर्त मार्तण्ड में कहा है – “ईयं भद्रा शुभ-कार्येषु अशुभा भवति” अर्थात शुभ कार्य में भद्रा अशुभ होती है। ऋषि कश्यप के अनुसार भी भद्रा काल को अशुभ तथा दुखदायी बताते हुए कहा है कि- न कुर्यात मंगलं विष्ट्या जीवितार्थी कदाचन। कुर्वन अज्ञस्तदा क्षिप्रं तत्सर्वं नाशतां व्रजेत।।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भद्रा के दोष निवारण के लिए भद्रा व्रत का विधान भी है साथ ही भद्रा के बारह नामों का स्मरण और उसकी पूजा करने वाले को भद्रा कभी परेशान नहीं करतीं। ऐसे भक्तों के कार्यों में कभी विघ्न नहीं पड़ता।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार रक्षा बंधन का त्योहार हर भाई—बहन के लिए खुशियों का त्योहार होता है। किसी भी बहिन को भद्रा में अपने भाई को राखी नहीं बांधनी चाहिए वरना दुष्परिणाम प्राप्त होते हैं जैसे 
शूर्पणखा ने अपने भाई रावण को भद्रा में राखी बांधी थी जिसके कारण रावण का विनाश हो गया अर्थात् रावण का अहित हुआ। इस कारण भद्रा में राखी नहीं बांधनी चाहिए।
भद्रायां द्वे न कर्त्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी।
लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
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Tuesday, 2 August 2022

रुद्राभिषेक - अद्भुत जानकारी

रुद्राभिषेक - अद्भुत जानकारी 
प्रिय पाठकों, 
 07 अगस्त 2022, रविवार 
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज रुद्राभिषेक के बारे में अद्भुत जानकारी यहाँ दे रहा हूँ।
पंडित अंजनी कुमार के अनुसार संहारक के तौर पर पूज्यनीय भगवान् महादेव सर्वशक्तिमान हैं। भोलेनाथ ऐसे देव हैं जो थोड़ी सी पूजा से भी प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शंकर बड़े दयालु हैं और उनके रुद्राभिषेक से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इन सबके अलावा "ओम् नम: शिवाय" मंत्र का रुद्राक्ष की माला पर प्रतिदिन जाप करना, शिव पञ्चाक्षरी स्रोत्र, शिव चालीसा, शिव सहस्त्रनाम और शिवमहिम्न स्तोत्र आदि में से कोई एक स्तोत्र का  नियमित रूप से पाठ करना चाहिए और साथ ही सोमवार का व्रत करना विशेष लाभप्रद माना जाता है। पंडित अंजनी कुमार के अनुसार द्वितीय दशांश में जन्म लेने वाले स्त्री-पुरुष के लिए सोमवार के दिन संभोग करना वर्जित माना जाता है। इन नियमों का पालन करते हुए शंकर जी की आराधना करने वाले के मनोरथ सिद्ध होते हैं।
पंडित अंजनी कुमार के अनुसार रुद्राभिषेक का अर्थ भगवान रूद्र(शिव) का अभिषेक करना होता है जो कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा विभिन्न द्रव्यों के द्वारा अभिषेक करना होता है। जैसा की वेदों में वर्णित है कि भगवान शिव को ही रुद्र कहा जाता है।भगवान भोलेनाथ सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। प्राचीन धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण होते हैं और शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका रुद्राभिषेक करना माना गया है तथा रुद्राभिषेक के मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है। शास्त्र और वेदों में वर्णित हैं की शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है। 
पंडित अंजनी कुमार के अनुसार रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पातक-से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि- सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं। वैसे तो रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है परन्तु त्रियोदशी तिथि, प्रदोष काल और सोमवार को रुद्राभिषेक करना परम कल्याणकारी है।पंडित अंजनी कुमार के अनुसार  श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अद्भुत एवं शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है। वेदों और पुराणों में रुद्राभिषेक के बारे में तो बताया गया है कि रावण ने अपने दसों सिरों को काट कर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित किया था जिससे वो त्रिलोकजयी हो गया।  भष्मासुर ने भी शिवलिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओ से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया।
पंडित अंजनी कुमार के अनुसार शिव पुराण में वर्णित किया गया है कि जिस भी उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है तो उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल शिवाभिषेक में करने से क्या फल मिलता है और इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा। पंडित अंजनी कुमार के अनुसार भगवान शिव का रुद्राभिषेक में अलग अलग द्रव्यो का उपयोग करने से जो फल प्राप्त होता है वो निम्नलिखित हैं-
☞ भगवान शिव का जल से रुद्राभिषेक करने पर वृष्टि होती है।
☞ भगवान शिव का कुशा जल से अभिषेक करने पर रोग, दुःख से छुटकारा मिलती है।
☞ भगवान शिव का दही से अभिषेक करने पर पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है।
☞ भगवान शिव का गन्ने के रस से अभिषेक करने पर लक्ष्मी प्राप्ति होती है।
☞भगवान शिव का मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर धन वृद्धि होती है।
☞ भगवान शिव का तीर्थ जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। 
☞ भगवान शिव का इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है।
☞ दूध से भगवान शिव का अभिषेक करने से पुत्र प्राप्ति, प्रमेह रोग की शान्ति तथा मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
☞ गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करने से ज्वर ठीक हो जाता है। 
☞ भगवान शिव का दूध शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से सद्बुद्धि प्राप्ति होती है।
☞ भगवान शिव का घी से अभिषेक करने से वंश विस्तार होती है। 
☞ सरसों के तेल से भगवान शिव का अभिषेक करने से रोग तथा शत्रु का नाश होता है।
☞ शुद्ध शहद से रुद्राभिषेक करने से प्रत्येक पाप का क्षय हो जाता है।
इस प्रकार शिव के रूद्र रूप के पूजन और अभिषेक करने से साधक में शिव तत्व रूप में सत्यं शिवम सुन्दरम् का उदय हो जाता है उसके बाद शिव के शुभ आशीर्वाद से समृद्धि, धन-धान्य, विद्या और संतान की प्राप्ति के साथ-साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाते हैं।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने विभिन्न तिथियों पर करने से भिन्न भिन्न परिणाम या फल प्राप्त होते हैं अतः निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए निश्चित तिथि पर रुद्राभिषेक करने से निम्नलिखित परिणाम और फल प्राप्त होते है-
☞कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों में अभिषेक करने से सुख-समृद्धि संतान प्राप्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
☞कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है जो निम्नलिखित है-
☞प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया व नवमी के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथिमें रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है।कृष्णपक्ष की चतुर्थी, एकादशी तथा शुक्लपक्ष की पंचमी व द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार मेंआनंद-मंगल होता है।
☞कृष्णपक्ष की पंचमी, द्वादशी तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी व त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है।अत: इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।
वैसे तो रुद्राभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है। परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध या अन्य दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग।-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है। तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है।
लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
Nakshatra jyotish Hub
नक्षत्र ज्योतिष हब
Panditanjanikumardadhich@gmail.com
Phone No-6377054504,9414863294

Friday, 29 July 2022

वक्री बृहस्पति का विश्व और भारत पर प्रभाव

वक्री गुरु(देव गुरु बृहस्पति) का देश दुनिया पर पड़ने वाला प्रभाव
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार देवगुरु बृहस्पति के वक्री होने का यह समय देश दुनिया के लिए चुनौती पूर्ण रहेगा। विश्व के नेताओं की बुद्धि विपरीत होगी। जनता में आक्रोश बढ़ेगा। महंगाई पहले कि अपेक्षा बढ़ेगी।10 सितंबर से 2 अक्टूबर तक शनि, गुरु के साथ बुध ग्रह भी वक्री रहेगा।और शुक्र भी साथ होकर निचभंग राजयोग का निर्माण करेगा। कुछ देशों में सत्ता परिवर्तन होगा।जिन देशों में युद्ध चल रहा है वहां और परेशानी बढ़ेगी। कुछ दुसरे देशों के बीच भी युद्ध के आसार बनेंगे।
✿ भारत की कुंडली में देव गुरु बृहस्पति का वक्री प्रभाव
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार 
भारत देश की कुंडली वृष लग्न की है अतः देव गुरु बृहस्पति लाभ भाव में वक्री हो रहे है जो कि अष्टमेश भी है जिसके निम्नलिखित प्रभाव है-  
☞कुछ पुरानी चीजो की तरफ देश का ध्यान आकर्षित होगा। 
☞लाभ में पहले की अपेक्षा कमी आएगी। 
नए कार्य की प्रगति देश के लिए धीमी हो जाएगी और पुराने मामले बाहर आना शुरू हो जाएंगे। 
☞ गुरु बली अवस्था में शनि के नक्षत्र में है जिसकी वजह से पुराने मामलो मे तेज़ी आएगी और न्याय भी होता दिख रहा है।
☞ पूरे विश्व में हलचल रहेगी। 
☞ धर्म का विरोध बढ़ेगा। 
☞ धर्म और सांप्रदायिक घटनाएं बढ़ेगी। आतंकवादी घटनाएं होगी लेकिन सरकार और सेना भी इसका पूरी तरह सामना करेगी।यह गोचर फायदा और नुकसान दोनों लेकर आएगा। लेकिन गुरु शुभ ग्रह है तो इनकी शुभता भी देखने को मिलेगी।
लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
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वक्री गुरु (बृहस्पति)ग्रह के प्रभाव और उपाय

वक्री गुरु (बृहस्पति)ग्रह के प्रभाव और उपाय 
प्रिय पाठकों, 
29 जूलाई 2022, शुक्रवार
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज वक्री गुरु (बृहस्पति)ग्रह के प्रभाव और उपाय के बारे में यहाँ जानकारी दे रहा हूँ।
भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र में बृहस्पति ग्रह को देव गुरु के नाम से जाना जाता है जो सुख-समृद्धि और सौभाग्य का ग्रह माना जाता है। गुरु(बृहस्पति) को अपना चक्र पूरा करने में लगभग 13 महीने का समय लगता है। शनि ग्रह के बाद में बृहस्पति ऐसा दूसरा ग्रह है जिसकी गोचर की अवधि सबसे लंबी होती है और गुरु साल में कम से कम एक बार को वक्री जरूर होते हैं। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार वर्तमान समय में गुरु ग्रह अपनी स्वराशि मीन में ही स्थित हैं और इसी राशि में 29 जुलाई 2022 शुक्रवार के दिन दोपहर 01:33 बजे को वक्री होने वाले हैं। और 24 नवंबर 2022 दिन गुरुवार को 04:36 बजे इसी राशि में मार्गी हो जाएगा।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार गुरु की इस वक्री चाल से कुछ राशियों पर शुभ और कुछ राशियों पर अशुभ प्रभाव पड़ने वाला है।
वक्री गुरु या बृहस्पति के प्रभाव 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार लोग ग्रहों का वक्री होने का नाम सुनते ही भयभीत हो जाते हैं कि अब उनके साथ जीवन में कुछ ना कुछ बुरा ही होता रहेगा लेकिन यह बात पूरी तरह से सत्य नहीं होती है। वैदिक ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यदि जन्म कुंडली में कोई ग्रह अच्छी या मजबूत स्थिति में बैठा है और वह वक्री हो रहा है तो ऐसे जातकों को लाभ मिलता है। 
वहीं इसके विपरीत यदि कुंडली में कोई भी शुभ ग्रह अन्य पापी ग्रहों के साथ मौजूद हो और उसके बाद वक्री हो तो उससे व्यक्ति को बुरे प्रभाव मिलने लगते हैं।
वक्री गुरु की तो जिन जातकों की कुंडली में वक्री गुरु मौजूद होता है और गुरु पहले से मजबूत अवस्था में होता है ऐसे जातक दूरदर्शी होते हैं, और लोगों को एक साथ लेकर चलने वाले होते हैं। इन्हें भविष्य के बारे में पहले से ही आभास हो जाता है और उन्हें पता होता है कि कौन सा व्यक्ति इन्हें लाभ देगा और कौन इन्हें धोखा दे सकता है।हालांकि जिन लोगों की कुंडली में गुरु ग्रह अशुभ अवस्था में या पापी ग्रहों से पीड़ित बैठा हो और फिर वक्री हो रहा हो ऐसे व्यक्तियों को नकारात्मक परिणाम मिलने लगते हैं। उन व्यक्तियों को नकारत्मक परिणाम बचने के कुछ उपाय करने चाहिए जो निम्नलिखित है-
✷ रोजाना पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं और सात बार परिक्रमा करें। 
✷ घर में पीले रंग के फूलों वाले पौधा लगाएं। 
✷विष्णु भगवान की पूजा करें और ब्राह्मणों और जरूरतमंद लोगों को दान करें। 
✷अगर मुमकिन हो सके तो गुरुवार का व्रत अवश्य करें। 
✷गुरुवार के दिन पूजा में भगवान विष्णु को गुड़ और चने की दाल का भोग लगाएं। 
✷भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा करें और उन्हे हल्दी और पीले चंदन और केसर का तिलक लगाएं।
✷ इसके अलावा बृहस्पति से संबंधित वस्तुओं का दान भी वक्री गुरु के अशुभ प्रभाव को दूर करने में सहायक साबित होता है।
लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
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Thursday, 28 July 2022

हरियाली अमावस्या के उपाय

हरियाली अमावस्या एवं उसके उपायप्रिय पाठकों, 
28 जूलाई 2022, गुरुवार
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज हरियाली अमावस्या एवं उसके उपाय के बारे में यहाँ जानकारी दे रहा हूँ।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिन्दू संवत्सर वर्ष के श्रावण मास में आने वाली अमावस्या को हरियाली अमावस्या के नाम से जाना जाता है  भारतीय पंचांग के अनुसार इस बार 28 जुलाई 2022 गुरुवार को हरियाली अमावस्या का पर्व है। आज दिन निम्नलिखित उपायों को करने से इच्छित लाभ मिलता है-
✷ ग्रह दोष शांति करने के लिए - हरियाली अमावस्या के दिन सुबह या शाम को पीपल की पुजा कुमकुम, चावल मौली आदि से करने के बाद पीपल की जड़ में दूध और जल अर्पित करें। इसके बाद मालपुआ के साथ पांच अलग-अलग तरह की मिठाई भी रखे और फिर धूप-दीप से आरती करके परिक्रमा करें और पीपल के वृक्षारोपण करने से ग्रह दोष शांत होते हैं और साथ ही ऐसा करने से पितृ दोष दूर होता है और भाग्य में वृद्धि होती है। इस दिन तुलसी, वट, अशोक आदि के पौधे जरूर लगाना चाहिए।
✷ कालसर्प दोष को दूर करने के लिए उपाय - पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हरियाली अमावस्या के दिन कालसर्प दोष को दूर करने के लिए सुबह स्नान व ध्यान करने के बाद भगवान शिव की पूजा और उनका पंचामृत से अभिषेक करने के बाद चांदी के बने हुए नाग-नागिन की पूजा करें और फिर उनको (चांदी के बने हुए नाग-नागिन को)सफेद फूलों के साथ बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। ऐसा करने से कालसर्प दोष दूर होता है और शिवजी का आशीर्वाद मिलता है।
✷ पितृ शांति के लिए उपाय- हरियाली अमावस्या पर पितरों की शांति के लिए नहाने के जल में पवित्र नदियों का जल मिलाकर स्नान करें और फिर पितृ शांति यज्ञ और तर्पण विधिवत रुप से करने के बाद पितृ सूक्त पाठ, गरुड़ पुराण, पितृ गायत्री पाठ, पितृ देव चालीसा आदि का पाठ करें इसके बाद गरीब व जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएं और दान दक्षिणा दें। ऐसा करने से भाग्य में वृद्धि होती है और जीवन में धन-धान्य की कमी नहीं होती है तथा पितृदोष की शांति भी होती है।
✷ धन धान्य सुख समृद्धि के लिए- हरियाली अमावस्या के दिन शाम को माता लक्ष्मी का ध्यान करते हुए घर के ईशान कोण में लाल रंग के धागे से बनी हुई बत्ती का प्रयोग करते हुए गाय के घी का दीपक जलाएं  साथ ही यह ध्यान रखे कि बत्ती रूई की न हो। दीपक में थोड़ी सी केसर भी जरूर डाले इसके बाद कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने के बाद उस दीपक को रात के समय में पांच लाल फूलों के साथ बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और धन लाभ के योग बनते हैं। 
✷ सुख समृद्धि और खुशहाली के लिए - हरियाली अमावस्या की रात में पूजा घर की थाली में ओम् बनाकर उस पर महालक्ष्मी यंत्र रखें और फिर विधिपूर्वक यंत्र की पूजा-अर्चना करने से घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और घर में लक्ष्मी का वास होता है और साथ ही इस दिन चीटियों को सूखे आटे में चीनी मिलाकर खिलाने से सभी कष्ट दूर होते हैं और भाग्य में वृद्धि होती है।
✷ बेरोजगार युवाओं के लिए- हरियाली अमावस्या को 1 साफ नींबू को घर के मंदिर में रख दें और फिर रात में अपने ऊपर से सात बार वार लें और फिर 4 बराबर भाग में काटकर चौराहे पर जाकर चारों दिशाओं में फेंक दें। ऐसा करने से आपको तरक्की के कई अवसर प्राप्त होंगे और मेहनत का भी पूरा फल मिलेगा।
लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
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Friday, 1 April 2022

चैत्र नवरात्र

चैत्र नवरात्र एवं उपाय
प्रिय पाठकों, 
01अप्रेल 2022, शुक्रवार
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज चैत्र नवरात्री के महत्वपूर्ण त्यौहार के बारे में यहाँ जानकारी दे रहा हूँ।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिन्दू सनातन धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। 
नवरात्रि यानि नौ दिन मां दुर्गा की पूजा और अराधना के दिन होते हैं। नवरात्रि के दिन मां दुर्गा को समर्पित होते हैं।भगवत पुराण में वर्णित किया गया है कि विक्रम संवत के एक साल में चार बार नवरात्रि पर्व मनाए जाते हैं। दो बार गुप्त नवरात्रि और एक चैत्र एक शारदीय नवरात्रि। चैत्र नवरात्रि का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। भारतीय पंचांग के अनुसार इस वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होगी जो इस बार चैत्र नवरात्रि 02 अप्रैल 2022 शनिवार को सर्वाथसिद्धी योग और अमृतसिद्धी योग में शुरू होकर 10 अप्रैल 2022 रविवार रामनवमी तक नवरात्रि पर्व होगा। 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों में पूरे विधि विधान से पूजा पाठ किया जाए तो मां दुर्गा प्रसन्न होकर व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। नवरात्रि के नौ दिनों तक अपने घर में मां के नाम की ज्योत जरूर जलाएं। साथ ही पूजा के समय नवार्ण मंत्र "ओम् ऐ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै" का जाप जरूर करें।नवरात्रि के दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करना चाहिए। अगर दुर्गा सप्तशती का संपूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए सबसे पहले कवच, कीलक व अर्गला स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। इसके अलावा कुंजिका स्त्रोत का पाठ भी करना चाहिए। ऐसा करने से दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ का फल प्राप्त होता है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार चैत्र नवरात्रि पर्व के दौरान कुछ उपयोगी उपाय करने से भी मां दुर्गा की कृपा से सुख-समृद्धि और खुशहाली की प्राप्ति होती है। चैत्र नवरात्रि के दौरान के किए जाने वाले उपाय निम्नलिखित है-
✷ चैत्र नवरात्रि के दौरान नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा के साथ पीले रंग की धन-कौड़ियों की पंचोपचार विधि से पूजा करनी चाहिए क्योंकि मां दुर्गा को धनकौड़ियां बहुत ही प्रिय हैं और इससे आर्थिक समस्या दूर होती हैं साथ ही ये बहुत ही शुभ माना जाता है। 
✷ चैत्र नवरात्रि में हनुमान जी को पान का बीड़ा अर्पित करें। ऐसा नवरात्रि में हर दिन करें। इससे आ​र्थिक संकट दूर होते हैं। घर में सुख-समृद्धि आती है। नवरात्रि में पूजा करते समय दीपक में चार लौंग, घी और बत्ती डालकर जलाएं। नवरात्रि के दौरान हर दिन सुबह और शाम घी का दीपक जलाएं। इससे आपको बिजनेस या जॉब में सफलता मिलेगी।
✷ चैत्र नवरात्रि में शंख की पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई थी। शंख की पूजा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। इससे आप पर मां लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है।
✷ चैत्र नवरात्रि के दौरान आप श्रीयंत्र, चांदी का सिक्का और कुबेर यंत्र खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है। इनकी पूजा करें। इसके बाद इसे तिजोरी में रख दें। ऐसा करने से कभी भी धन-दौलत की कमी नहीं होगी।
लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
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Monday, 28 February 2022

महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि : एक विशेष पर्व और उसका महत्व 
प्रिय पाठकों, 
01 मार्च 2022, मंगलवार
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज महाशिवरात्रि - शिवभक्ति का महत्वपूर्ण त्यौहार के बारे में यहाँ जानकारी दे रहा हूँ।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिंदू धर्म में भगवान शिव को समर्पित महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। भारतीय कालदर्शक पंचांग के मुताबिक फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 1 मार्च 2022, मंगलवार को मनाया जाएगा। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन माता पार्वती और भगवान शंकर की पूजा करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था इसलिए शिवभक्तों के लिए महाशिवरात्रि का दिन बहुत ही खास होता है। महाशिवरात्रि के दिन पर भगवान शिव के साथ माता पार्वती का पूजन भी किया जाता है। इस दिन शिव जी को उनकी प्रिय चीजें अर्पित करके व्यक्ति अपने जीवन की समस्याओं से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार पौराणिक कथाओं के आधार पर ऐसा माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन विधि-विधान से व्रत रखने वालों को धन,सौभाग्य, समृद्धि, संतान और आरोग्य की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है और उन्‍हें भांग, धतूरा, बेल पत्र और बेर चढ़ाए जाते हैं। इस दिन कई लोग धार्मिक अनुष्‍ठान और रुद्राभिषेक व महा महामृत्युंजय मंत्र का जप करते हैं। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार इस दिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने का विशेष महत्‍व होता है और हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस दिन अधिकांश घरों में लोग शिवजी का व्रत करते हैं और शाम को फलाहार करके व्रत पूरा करते हैं। इस दिन देश भर में कई स्‍थानों पर शिव बारात निकाली जाती है और धूमधाम से यह त्‍योहार मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव के व्रत रखने वालों को सौभाग्य, समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है। शिव जी को महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ के नामों से भी जाना जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव ने ही धरती पर सबसे पहले जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया था इसीलिए भगवान शिव को आदिदेव भी कहा जाता है।
महाशिवरात्रि पूजा का महत्व निम्नलिखित हैं-
महाशिवरात्रि के दिन महाशिवरात्रि का व्रत रखते हुए रात्रि को शिवजी की विधिवत आराधना करना कल्याणकारी माना जाता है। दूसरे दिन अर्थात अमावस के दिन मिष्ठान्नादि सहित ब्राहम्णों तथा शारीरिक रुप से अस्मर्थ लोगों को भोजन देने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए। यह व्रत महाकल्याणकारी और अश्वमेध यज्ञ तुल्य फल प्राप्त होता है। इस दिन किए गए अनुष्ठानों, पूजा व व्रत का विशेष लाभ मिलता है। अलौकिक सिद्धियाँ एवं ऋद्धि- सिद्धि प्राप्त करने के लिए यह दिन सर्वाधिक उपयुक्त समय होता है।ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को अर्द्धरात्रि के समय करोड़ों सूर्य के तेज के समान ज्योर्तिलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था। स्कंद पुराण के अनुसार- चाहे सागर सूख जाए, हिमालय टूट जाए, पर्वत विचलित हो जाएं परंतु शिव-व्रत कभी निष्फल नहीं जाता। भगवान राम भी यह व्रत रख चुके हैं।
महाशिवरात्रि में भगवान शिव की पूजा सामग्री निम्नलिखित है -
प्रातःकाल स्नान से निवृत होकर एक वेदी पर कलश की स्थापना कर गौरी शंकर की मूर्ति या चित्र रखें। कलश को जल से भरकर रोली, मौली, अक्षत, पान सुपारी, लौंग, इलायची, चंदन, दूध,दही, घी, शहद, कमलगट्टा, धतूरा, बिल्व पत्र, कनेर आदि अर्पित करें और शिव की आरती पढ़ें। रात्रि जागरण में शिव की चार आरती का विधान आवश्यक माना गया है। इस अवसर पर शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र का जाप कल्याणकारी कहा जाता है।
महाशिवरात्रि के अवसर पर निम्नलिखित कार्यो का ध्यान रखना चाहिए जो बहुत महत्वपूर्ण है -  
❃महाशिवरात्रि पर भगवान शिव के शिवलिंग का पूजन शुभ शुभफलदायी रहता है इसलिए शिवलिंग अवश्य करना चाहिए।  
❃भगवान शिव की पूजा में सफेद फूलों का प्रयोग करना चाहिए और यदि आक के फूल हो तो और भी श्रेष्ठ रहता है।
❃शिवरात्रि के दिन शिव जी के साथ माता पार्वती की पूजा भी करनी चाहिए जिससे वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है और जिन लोगों का विवाह नहीं हुआ हैै तो उनकी विवाह की बाधाएं दूर होती है।
❃ महाशिवरात्रि पर भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन के साथ नंदी का पूजन अवश्य करना चाहिए क्योंकि नंदी पूजन के बिना शिव जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। 
❃भगवान शिव की कृपा पाने के लिए महाशिवरात्रि के दिन बैल को हरा चारा खिलाना चाहिए।
❃बिल्वपत्र भगवान शिव को बहुत प्रिय है। बिल्वपत्र पर चंदन से ''ओम् नमः शिवाय: '' लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करना चाहिए।
❃महाशिवरात्रि पर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने के साथ चारो प्रहर की पूजा करनी चाहिए।
महाशिवरात्रि के अवसर पर निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना अति आवश्यक होता है - 
❁महाशिवरात्रि के दिन सवेरे बिल्कुल भी देर तक न सोएं। यदि महाशिवरात्रि का व्रत नहीं भी किया है तो बिना स्नान और भगवान शिव के पूजन के बिना भोजन नहीं करें।
❁शिवरात्रि के दिन भूलकर भी काले रंग के वस्त्र धारण न करें। 
❁शिवलिंग की परिक्रमा करते समय जल स्थान को भूलकर भी न लांघे।
❁शिव जी की पूजा में हल्दी, तुलसी और कुमकुम का प्रयोग न करें।
❁शिव जी को भूलकर भी शंख से जल न चढ़ाएं।
❁ शिव जी की पूजा में केतकी का फूल वर्जित है इसके अलावा चंपा के फूल का प्रयोग भी न करें।
❁भगवान शिव पशुपतिनाथ कहलाते हैं इसलिए महाशिवरात्रि के दिन भूलकर भी किसी पशु-पक्षी को न सताएं।
❁ महाशिवरात्रि पर घर में या आस-पास किसी से भी कलह करने से बचें। किसी को अपशब्द न कहें और न ही निंदा करें।
❁ महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर चढ़ाई गई चीजों को बिल्कुल भी ग्रहण नहीं करना चाहिए क्योंकि
 ❁ शिवलिंग पर चढ़ाई चीजों को ग्रहण करना शुभ नहीं माना जाता है।
❁ महाशिवरात्रि पर सात्विकता बनाएं रखें। इस दिन भूलकर भी मांस-मदिरा का सेवन न करें।
 महाशिवरात्रि पर महादेव की कृपा पाने के लिए करें राशि अनुसार उपाय
मेष राशि: इस दिन मंदिर में या अपने घर में ही भगवान शिव को लाल रंग के गुड़हल फूल चढ़ाएं।
वृषभ राशि: इस दिन भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करते हुए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। इसे बेहद ही शुभ माना गया है।
मिथुन राशि: इस दिन भगवान शिव के समक्ष तेल का दीपक जलाएं तथा महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
कर्क राशि- इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती जी का दुग्धाभिषेक कर भगवान शिव के लिंगाष्टकम का पाठ करें। 
सिंह राशि: इस दिन प्रात काल उठकर महादेव की पूजा करें और शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ करें। 
कन्या राशि: इस दिन भगवान शिव का पूजन करते हुए ‘ओम् नमः शिवाय’ का 21 बार जप करें। 
तुला राशि- इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करें। महाशिवरात्रि की रात्रि में भगवान शिव की खास पूजा करें।
वृश्चिक राशि इस दिन भगवान शिव की पूजा करें और गन्ने के रस से अभिषेक करें और नंदी को गुड़ का भोग लगाएं। 
धनु राशि: मंदिर में भगवान शिव को दूध अर्पित करें और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
मकर राशि: महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का रुद्राभिषेक करते हुए रुद्राष्टकम का पाठ करें। कुंभ राशि: भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक कर भिखारियों को भोजन कराएं। 
मीन राशि: इस दिन भगवान शिव का अभिषेक कर 11 बिल्व पत्र अर्पित विशेष तौर पर करे तथा अपने बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद अवश्य लें।
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Wednesday, 2 February 2022

गुप्त नवरात्रि

माँ दुर्गा की कृपा पाने के लिए चमत्कारी मन्त्र 

प्रिय पाठकों, 
2 फरवरी 2022, बुधवार
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज गुप्त नवरात्रि और चमत्कारी मंत्र जाप के बारे में यहाँ जानकारी दे रहा हूँ।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार
नवरात्रि यानि नौ दिन मां दुर्गा की पूजा और अराधना के दिन होते हैं। नवरात्रि के दिन मां दुर्गा को समर्पित होते हैं। एक साल में चार बार नवरात्रि मनाए जाते हैं। दो बार गुप्त नवरात्रि और एक चैत्र एक शारदीय नवरात्रि। साल में दो बार आने वाले नवरात्रि में से एक माघ माह में आने वाले गुप्त नवरात्रि हैं।
भारतीय वैदिक पंचांग के अनुसार गुप्त नवरात्रि 2 फरवरी 2022 बुधवार से प्रारंभ हो रहे हैं। 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिंदीके व्याकरण साहित्य में गुप्त शब्द का अर्थ छिपा हुआ होता है। इस नवरात्रि में गुप्त विद्याओं की सिद्धि हेतु साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रि में तंत्र एवं मंत्र साधनाओं का महत्व होता है और तंत्र और मंत्र साधना को गुप्त रूप से ही किया जाता है। इसीलिए इसे गुप्त नवरात्रि कहते हैं। इसमें विशेष कामनाओं की सिद्धि की जाती है। साधकों को इसका ज्ञान होने के कारण या इसके छिपे हुए होने के कारण इसको गुप्त नवरात्र कहते हैं। गुप्‍त नवरात्रि में विशेष पूजा से कई प्रकार के दुखों से मुक्‍ति पाई जा सकती है। गुप्त नवरात्रि में महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए उपासना करते हैं। यह नवरात्रि मोक्ष की कामने से भी की जाती है। इस दौरान 10 महाविद्याओं मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रुमावती, मां बंगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार माता दुर्गा की कृपा प्राप्ति का का सबसे सरल उपाय दुर्गा सप्तशती का पाठ है। नवरात्र में माँ के कलश स्थापना के साथ शतचंडी, नवचंडी, दुर्गा सप्तशती, देवी अथर्वशीर्ष आदि का पाठ किया जाता है। दुर्गा सप्तशती महर्षि वेदव्यास रचित मार्कण्डेय पुराण के सावर्णि मन्वतर के देवी महात्म्य के सात सौ श्लोक का एक भाग है। 
दुर्गा सप्तशती में कुछ ऐसे परम शक्तिशाली और दुर्लभ स्तोत्र एवं मंत्र हैं, जिनके विधिवत पारायण से मनुष्य की समस्त इच्छित मनोकामना की अवश्य ही पूर्ति होती है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार साधक को अपनी आवश्यकता के अनुसार माँ के दिव्य मन्त्र का चयन करके नित्य उसकी 5 माला या कम से कम एक माला का जाप तो अवश्य करना ही चाहिए ।
जीवन में सर्वकल्याण एवं शुभ फलो की प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावशाली मन्त्र:-
सर्व मंगलं मांगल्ये शिवे सर्वाथ साधिके।
शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥  
जीवन में किसी भी तरह की बाधा से मुक्ति एवं सुख समृद्धि एवं योग्य संतान की प्राप्ति के लिए :-
सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः।
मनुष्यों मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय॥
जीवन में सर्वबाधा की शांति के लिए :-
सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्।। 
आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्ति के लिए चमत्कारिक मन्त्र इस दिव्य मंत्र को देवी दुर्गा ने स्वयं देवताओं को दिया है:-
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌। 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥ 
माँ के चरणो में स्थान पाने के लिए मोक्ष प्राप्ति के लिए:-
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या।
विश्वस्य बीजं परमासि माया।।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्।
त्वं वैप्रसन्ना भुवि मुक्त हेतु:।। 
जीवन में शक्ति एवं सम्पन्नता प्राप्ति के लिए :-सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोह्यस्तु ते।। 
सभी प्रकार के संकटो से रक्षा का मंत्र:-
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि: स्वनेन च।। 
समस्त रोगो के नाश के लिए चमत्कारी मंत्र:- 
रोगान शेषान पहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता हाश्रयतां प्रयान्ति।। 
समस्त दु:ख और दरिद्रता के नाश के लिए:-
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:।
स्वस्थै स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।।
द्रारिद्र दु:ख भयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकारणाय सदाह्यह्यद्र्रचिता।। 
जीवन में सभी तरह के सुख सौभाग्य, ऐश्वर्य, आरोग्य, धन संपदा एवं शत्रु भय मुक्ति-मोक्ष के लिए - 
ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः।
शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै॥ 
किसी भी तरह के भय के नाश के लिए दुर्गा मंत्र :- 
सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्यास्त्रहिनो देवी दुर्गे देवी नमोस्तुते।। 
स्वप्न में अपने कार्यों के फलो को जानने के लिए मन्त्र :-
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थ साधिके।
मम सिद्घिमसिद्घिं वा स्वप्ने सर्व प्रदर्शय।। 
लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
Nakshatra jyotish Hub
नक्षत्र ज्योतिष हब
Panditanjanikumardadhich@gmail.com
Phone No-6377054504,9414863294

Friday, 28 January 2022

टाइगर स्टोन

टाइगर स्टोन
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार टाइगर स्टोन उस व्यक्ति को गजब का आत्मविश्वास प्रदान करता है जो व्यक्ति आत्मविश्वास की कमी के कारण बार-बार व्यवसाय और अन्य कार्यों में असफल होकर  दुखी जीवन व्यतीत कर रहा है साथ ही वह अपने आप को डरपोक, उदासीन महसूस कर रहा है तो ऐसे व्यक्ति को टाइगर के समान पीली एवं काली धारियां वाला टाइगर स्टोन नामक रत्न धारण करना चाहिए। इस रत्न में पीली एवं काली धारियां होने के कारण इसे टाइगर स्टोन कहते हैं। टाइगर स्टोन को ही टाइगर आई के नाम से जाना जाता है। टाइगर स्टोन को धारण करने वाले व्यक्ति साहसी एवं पुरुषार्थी बन जाते हैं और उनको हर कार्य में पूर्ण सफलता मिलती है। शेर जैसा आत्मबल और साहस भी यह रत्न प्रदान करने में सक्षम है।

Thursday, 13 January 2022

पुत्रदा एकादशी

पुत्रदा एकादशी 
प्रिय पाठकों, 
13 जनवरी 2022, गुरुवार
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज पुत्रदा एकादशी के बारे में यहाँ जानकारी दे रहा हूँ।

पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार आज 13 जनवरी 2022 गुरुवार को सनातन धर्म के पंचांग के आधार पर पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं। इसके अलावा इस एकादशी को वैकुण्ठ एकादशी और मुक्कोटी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।  
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार धार्मिक शास्त्रों में योग्य संतान की प्राप्ति के लिए इस व्रत को उत्तम माना जाता है। कहते हैं कि इस व्रत के प्रभाव से संतान को संकटों से मुक्ति मिलती है।
पौष पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ लड्डू गोपाल की पूजा अवश्य करनी चाहिए। लड्डू गोपाल का गंगाजल,पंचामृत में तुलसीदल डालकर अभिषेक कराना चाहिए। केसर, कुमकुम, मोली, अक्षत,पीले पुष्प प्रसाद और पुष्पमाला आदि लड्डू गोपाल को अर्पित कर पूजा करे। ऐसा करने से आपकी संतान से संबंधित सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
पुत्रदा एकादशी के दिन निम्नलिखित उपाय भी करना चाहिए -
☞ पुत्रदा एकादशी के दिन संतान गोपाल सहस्रनाम का पाठ करने से संतान सुख की प्राप्ति तथा संतान संबंधित कष्ट दूर होते हैं।
☞ पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा कर विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ भी करना चाहिए। जिससे घर में शांति और सुख समृद्धि आदि बनी रहती है।
लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
Nakshatra jyotish Hub
नक्षत्र ज्योतिष हब
Panditanjanikumardadhich@gmail.com
Phone No-6377054504,941486329

Wednesday, 12 January 2022

श्रीगणेश सहस्त्रनाम स्तोत्र

श्रीगणेश सहस्त्रनाम स्तोत्र 
प्रिय पाठकों, 
12 जनवरी 2022, बुधवार
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज श्रीगणेश सहस्त्रनाम स्तोत्र के बारे में यहाँ जानकारी दे रहा हूँ।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार किसी भी शुक्ल पक्ष के बुधवार के दिन से शुरू करके प्रत्येक दिन श्रीगणेश सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, धैर्य, शौर्य, बल, यश, बुद्धि, कांति, सौभाग्य, रूप-सौंदर्य, संसार को वशीकरण करने की शक्ति, शास्त्रार्थ में निपुणता, उच्च कोटि की वाक शक्ति, शील, वीर्य, धन-धान्य की वृद्धि आदि प्राप्त होते हैं।
इसके अलावा श्रीगणेश सहस्त्रनाम का पाठ करने से कुंडली के दोष, वास्तु दोष, पितृ दोष आदि शांत होते हैं और परेशानियां कम होने लगती हैं।
श्री गणेश सहस्त्रनामावली
॥ॐ गणपतये नमः ॥ ॐ गणेश्वराय नमः ॥ ॐ गणक्रीडाय नमः ॥
ॐ गणनाथाय नमः ॥ ॐ गणाधिपाय नमः ॥ ॐ एकदंष्ट्राय नमः ॥
ॐ वक्रतुण्डाय नमः ॥ ॐ गजवक्त्राय नमः ॥ ॐ मदोदराय नमः ॥
ॐ लम्बोदराय नमः ॥ ॐ धूम्रवर्णाय नमः ॥ ॐ विकटाय नमः ॥
ॐ विघ्ननायकाय नमः ॥ ॐ सुमुखाय नमः ॥ ॐ दुर्मुखाय नमः ॥ॐ बुद्धाय नमः ॥ ॐ विघ्नराजाय नमः ॥ ॐ गजाननाय नमः ॥
ॐ भीमाय नमः ॥ ॐ प्रमोदाय नमः ॥ ॐ आनन्दाय नमः ॥
ॐ सुरानन्दाय नमः ॥ ॐ मदोत्कटाय नमः ॥ ॐ हेरम्बाय नमः॥
ॐ शम्बराय नमः ॥ ॐ शम्भवे नमः ॥ ॐ लम्बकर्णाय नमः ॥
ॐ महाबलाय नमः ॥ ॐ नन्दनाय नमः ॥ ॐ अलम्पटाय नमः ॥
ॐ भीमाय नमः ॥ ॐ मेघनादाय नमः ॥ ॐ गणञ्जयाय नमः ॥
ॐ विनायकाय नमः ॥ ॐ विरूपाक्षाय नमः ॥ ॐ धीराय नमः ॥
ॐ शूराय नमः ॥ ॐ वरप्रदाय नमः ॥ ॐ महागणपतये नमः ॥
ॐ बुद्धिप्रियाय नमः ॥ ॐ क्षिप्रप्रसादनाय नमः ॥ ॐ रुद्रप्रियाय नमः ॥
ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ ॐ उमापुत्राय नमः ॥ ॐ अघनाशनाय नमः ॥
 ॐ कुमारगुरवे नमः ॥ ॐ ईशानपुत्राय नमः ॥ ॐ मूषकवाहनाय नः ॥
ॐ सिद्धिप्रदाय नमः ॥ ॐ सिद्धिपतये नमः ॥ ॐ सिद्ध्यै नमः ॥
ॐ सिद्धिविनायकाय नमः ॥ ॐ विघ्नाय नमः ॥ ॐ तुङ्गभुजाय नमः ॥
ॐ सिंहवाहनाय नमः ॥ ॐ मोहिनीप्रियाय नमः ॥ ॐ कटिंकटाय नमः ॥
ॐ राजपूत्राय नमः ॥ ॐ शकलाय नमः ॥ ॐ सम्मिताय नमः ॥ॐ अमिताय नमः ॥ ॐ कूश्माण्डगणसम्भूताय नमः ॥ ॐ दुर्जयाय नमः ॥
ॐ धूर्जयाय नमः ॥ ॐ अजयाय नमः ॥ ॐ भूपतये नमः ॥
ॐ भुवनेशाय नमः ॥ ॐ भूतानां पतये नमः ॥ ॐ अव्ययाय नमः ॥
ॐ विश्वकर्त्रे नमः ॥ ॐ विश्वमुखाय नमः ॥ ॐ विश्वरूपाय नमः ॥
ॐ निधये नमः ॥ ॐ घृणये नमः ॥ ॐ कवये नमः ॥
 ॐ कवीनामृषभाय नमः ॥ ॐ ब्रह्मण्याय नमः ॥ ॐ ब्रह्मणस्पतये नमः ॥
ॐ ज्येष्ठराजाय नमः ॥ ॐ निधिपतये नमः ॥ ॐ निधिप्रियपतिप्रियाय नमः ॥
ॐ हिरण्मयपुरान्तस्थाय नमः ॥ ॐ सूर्यमण्डलमध्यगाय नमः
॥ ॐ कराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलाय नमः ॥ ॐ पूषदन्तभृते नमः ॥
ॐ उमाङ्गकेळिकुतुकिने नमः ॥ ॐ मुक्तिदाय नमः ॥ ॐ कुलपालकाय नमः ॥ॐ किरीटिने नमः ॥ ॐ कुण्डलिने नमः ॥ ॐ हारिणे नमः ॥ ॐ वनमालिने नमः ॥
ॐ मनोमयाय नमः ॥ ॐ वैमुख्यहतदृश्यश्रियै नमः ॥ ॐ पादाहत्याजितक्षितये नमः ॥
ॐ सद्योजाताय नमः ॥ ॐ स्वर्णभुजाय नमः ॥ ॐ मेखलिन नमः ॥
ॐ दुर्निमित्तहृते नमः ॥ ॐ दुस्स्वप्नहृते नमः ॥ ॐ प्रहसनाय नमः ॥
ॐ गुणिने नमः ॥ ॐ नादप्रतिष्ठिताय नमः ॥ ॐ सुरूपाय नमः ॥ॐ सर्वनेत्राधिवासाय नमः ॥ ॐ वीरासनाश्रयाय नमः ॥ ॐ पीताम्बराय नमः ॥
ॐ खड्गधराय नमः ॥ ॐ खण्डेन्दुकृतशेखराय नमः ॥
ॐ चित्राङ्कश्यामदशनाय नमः ॥ ॐ फालचन्द्राय नमः ॥ ॐ चतुर्भुजाय नमः ॥
ॐ योगाधिपाय नमः ॥ ॐ तारकस्थाय नमः ॥ ॐ पुरुषाय नमः ॥
ॐ गजकर्णकाय नमः ॥ ॐ गणाधिराजाय नमः ॥ ॐ विजयस्थिराय नमः ॥
ॐ गणपतये नमः ॥ ॐ ध्वजिने नमः ॥ 
ॐ देवदेवाय नमः ॥
ॐ स्मरप्राणदीपकाय नमः ॥
 ॐ वायुकीलकाय नमः ॥ ॐ विपश्चिद्वरदाय नमः ॥
ॐ नादाय नमः ॥ ॐ नादभिन्नवलाहकाय नमः ॥ ॐ वराहवदनाय नमः ॥
ॐ मृत्युञ्जयाय नमः ॥ 
ॐ व्याघ्राजिनाम्बराय नमः ॥ 
ॐ इच्छाशक्तिधराय नमः ॥
ॐ देवत्रात्रे नमः ॥ ॐ दैत्यविमर्दनाय नमः ॥ ॐ शम्भुवक्त्रोद्भवाय नमः ॥
ॐ शम्भुकोपघ्ने नमः ॥ ॐ शम्भुहास्यभुवे नमः ॥ ॐ शम्भुतेजसे नमः ॥
ॐ शिवाशोकहारिणे नमः ॥ ॐ गौरीसुखावहाय नमः ॥ ॐ उमाङ्गमलजाय नमः ॥
ॐ गौरीतेजोभुवे नमः ॥ ॐ स्वर्धुनीभवाय नमः ॥ ॐ यज्ञकायाय नमः ॥
ॐ महानादाय नमः ॥ ॐ गिरिवर्ष्मणे नमः ॥ ॐ शुभाननाय नमः ॥
ॐ सर्वात्मने नमः ॥ ॐ सर्वदेवात्मने नमः ॥ ॐ ब्रह्ममूर्ध्ने नमः ॥ॐ ककुप्छ्रुतये नमः ॥ ॐ ब्रह्माण्डकुम्भाय नमः ॥ ॐ चिद्व्योमफालाय नमः ॥
ॐ सत्यशिरोरुहाय नमः ॥ ॐ जगज्जन्मलयोन्मेषनिमेषाय नमः ॥
ॐ अग्न्यर्कसोमदृशे नमः ॥ ॐ गिरीन्द्रैकरदाय नमः ॥ ॐ धर्माय नमः ॥
ॐ धर्मिष्ठाय नमः ॥ ॐ सामबृंहिताय नमः ॥ ॐ ग्रहर्क्षदशनाय नमः ॥
ॐ वाणीजिह्वाय नमः ॥ ॐ वासवनासिकाय नमः ॥ ॐ कुलाचलांसाय नमः ॥ॐ सोमार्कघण्टाय नमः ॥ ॐ रुद्रशिरोधराय नमः ॥ ॐ नदीनदभुजाय नमः ॥
ॐ सर्पाङ्गुळिकाय नमः ॥ ॐ तारकानखाय नमः ॥ ॐ भ्रूमध्यसंस्थतकराय नमः ॥
ॐ ब्रह्मविद्यामदोत्कटाय नमः ॥ ॐ व्योमनाभाय नमः ॥ ॐ श्रीहृदयाय नमः ॥
ॐ मेरुपृष्ठाय नमः ॥ ॐ अर्णवोदराय नमः ॥
ॐ कुक्षिस्थयक्षगन्धर्वरक्षः किन्नरमानुषाय नमः ॥
।। इति समाप्त ।।
लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
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Tuesday, 11 January 2022

हनुमान वडवानल स्तोत्र

11 जनवरी 2022, मंगलवार
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार लंकापति रावण के छोटे भाई विभीषण ने हनुमानजी की  स्तुति करते हुए एक स्तोत्र की रचना की जो हनुमान वडवानल स्तोत्र के नाम से विख्यात हैं। 
इस स्तोत्र के पाठ करने से बड़ी-से-बड़ी विपत्ति या संकट,शत्रु-बाधा, सभी प्रकार के तंत्र-मंत्र, बंधन, प्रयोग, भूत-बाधा आदि नष्ट हो जाते है और हनुमान जी के कृपा से सुख-सम्पत्ति की भी वृद्धि होती है।
किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार या शनिवार को प्रात:काल उठकर नित्य कर्म करके स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद पूजा स्थल को शुद्ध कर एक चौकी पर लाल आसन पर हनुमानजी, गणेश जी, भगवान श्रीराम और माता जानकी की मूर्ति या चित्र को रखकर सामने आसन पर बैठकर पंचोपचार पूजन विधि से सबसे पहले गणेश जी भगवान श्रीराम और माता जानकी उसके बाद हनुमान जी की पूजा करते हुए सरसों के तेल का दीपक जलाकर हनुमानजी के सम्मुख रखना चाहिए।
उसके बाद हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। यह पाठ लगातार 41 दिनों तक करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इन 41 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और सात्विक भोजन करने के साथ-साथ सभी प्रकार के व्यभिचार से दूर रहना चाहिए।

विनियोग:- ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषि:, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल- राज- कुल- संमोहनार्थे, मम समस्त- रोग प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त- पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये।

ध्यान:- मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।

वडवानल स्तोत्र :- ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम सकल- दिङ्मण्डल- यशोवितान- धवलीकृत- जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिर: कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार- ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व- पाप- ग्रह- वारण- सर्व- ज्वरोच्चाटन डाकिनी- शाकिनी- विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दु:ख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा ।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्र: आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु शिर:-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय नागपाशानन्त- वासुकि- तक्षक- कर्कोटकालियान् यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा।

लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
Nakshatra jyotish Hub
नक्षत्र ज्योतिष हब
Panditanjanikumardadhich@gmail.com
Phone No-6377054504,9414863294
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार लंकापति रावण के छोटे भाई विभीषण ने हनुमानजी की  स्तुति करते हुए एक स्तोत्र की रचना की जो हनुमान वडवानल स्तोत्र के नाम से विख्यात हैं। 
इस स्तोत्र के पाठ करने से बड़ी-से-बड़ी विपत्ति या संकट,शत्रु-बाधा, सभी प्रकार के तंत्र-मंत्र, बंधन, प्रयोग, भूत-बाधा आदि नष्ट हो जाते है और हनुमान जी के कृपा से सुख-सम्पत्ति की भी वृद्धि होती है।
किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार या शनिवार को प्रात:काल उठकर नित्य कर्म करके स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद पूजा स्थल को शुद्ध कर एक चौकी पर लाल आसन पर हनुमानजी, गणेश जी, भगवान श्रीराम और माता जानकी की मूर्ति या चित्र को रखकर सामने आसन पर बैठकर पंचोपचार पूजन विधि से सबसे पहले गणेश जी भगवान श्रीराम और माता जानकी उसके बाद हनुमान जी की पूजा करते हुए सरसों के तेल का दीपक जलाकर हनुमानजी के सम्मुख रखना चाहिए।
उसके बाद हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। यह पाठ लगातार 41 दिनों तक करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इन 41 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और सात्विक भोजन करने के साथ-साथ सभी प्रकार के व्यभिचार से दूर रहना चाहिए।

विनियोग:- ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषि:, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल- राज- कुल- संमोहनार्थे, मम समस्त- रोग प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त- पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये।

ध्यान:- मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।

वडवानल स्तोत्र :- ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम सकल- दिङ्मण्डल- यशोवितान- धवलीकृत- जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिर: कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार- ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व- पाप- ग्रह- वारण- सर्व- ज्वरोच्चाटन डाकिनी- शाकिनी- विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दु:ख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा ।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्र: आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु शिर:-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय नागपाशानन्त- वासुकि- तक्षक- कर्कोटकालियान् यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा।

लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
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