वैदिक ज्योतिष, वास्तुशास्त्र,अंक ज्योतिष, रत्न ज्योतिष, हीलिंग,पुजा व अनुष्ठान आदि के ज्ञाता
Wednesday, 31 August 2022
गणेश चतुर्थी के विशेष उपाय
Sunday, 14 August 2022
माणक धारण करने से पहले की सावधानीयां
जिस माणिक्य में दो से अधिक रंग दिखाई दें तो जान लीजिए कि वो माणिक्य आपकी लाइफ काफी परेशानियां ला सकता है।
कहा जाता है जिस माणक में चमक नहीं होती ऐसा माणिक्य विपरीत फल देने वाला होता है। तो कभी भी बिना चमक वाला माणिक्य न पहने।
माणिक्य खरीदने से पहले देख लें कि कहीं वो माणिक्य धुएं के रंग का न हो क्योंकि धुएं के रंग के जैसा दिखने वाला माणिक्य और मटमैला माणिक्य अशुभ होने के साथ हानिकारक माना जाता है।
Thursday, 11 August 2022
पंचांग की काल गणना
पंचांग की काल गणना
प्रिय पाठकों,
11 अगस्त 2022, गुरुवार
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार पंचांग के पांच अंगों के द्वारा ही समय की काल गणना सम्भव हो पाई है और इसी काल गणना का उपयोग कर जन्म कुंडली, विवाह मुहूर्त, अनुष्ठान, शुभ- अशुभ स्थिति, ग्रहों का विचरण और अन्य गणनाएं की जाती है। हिन्दू पंचांग की समय गणना (काल गणना) में समय की अलग अलग प्रकार के माप हैं जो हिन्दू पंचांग में समय के गणनाचक्र को सूर्य सिद्धांत नामक ग्रंथ के पहले अध्याय के 11वें श्लोक से 23वें श्लोक तक में बतलाया गया हैं। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार इन सभी श्लोको का भावार्थ वर्णन निम्नलिखित है-
☞ जो कि श्वास (प्राण) से आरम्भ होता है वह यथार्थ कहलाता है और वह जो त्रुटि से आरम्भ होता है। अवास्तविक कहलाता है। छः श्वास से एक विनाड़ी बनती है। साठ श्वासों से एक नाड़ी बनती है।
☞ साठ नाड़ियों से एक दिवस (दिन और रात्रि) बनते हैं। तीस दिवसों से एक मास (महीना) बनता है। एक नागरिक (सावन) मास सूर्योदयों की संख्याओं के बराबर होता है। जबकि एक चंद्र मास उतनी चंद्र तिथियों से बनता है।
☞ एक सौर मास सूर्य के राशि में प्रवेश से निश्चित होता है। बारह मास एक वर्ष बनाते हैं। मानव के एक वर्ष को देवताओं का एक दिवस कहते हैं। देवताओं और दैत्यों के दिन और रात्रि पारस्परिक उलटे होते हैं।
☞ उनके छः गुणा साठ देवताओं के दिव्य वर्ष होते हैं। ऐसे ही दैत्यों के भी होते हैं। बारह सहस्र (हजार) दिव्य वर्षों को एक चतुर्युग कहते हैं। यह तैंतालीस लाख बीस हजार सौर वर्षों का होता है।
☞ भारतीय मनीषियों ने पूरे ब्रह्मांड की आयु की भी गणना की। उन्होंने सौर वर्ष के बाद दिव्य वर्ष से लेकर परार्ध तक की गणना की है। उसका चार्ट निम्नानुसार है-
कलि युग = 4,32,000 वर्ष
द्वापर युग = 8,64,000 वर्ष (2 कलि)
त्रेता युग = 12,96,000 वर्ष (3 कलि)
कृत युग 17,28,000 वर्ष (4 कलि)
कृत् या सत् युग में धर्म के चार पाद होते हैं, त्रेता में तीन, द्वापर में दो और कलि में केवल एक।
☞ चतुर्युगी की उषा और संध्या काल होते हैं।कॄतयुग या सतयुग और अन्य युगों का अन्तर को चरणों में मापा जाता है।
☞ एक चतुर्युगी का दशांश को क्रमशः चार, तीन, दो और एक से गुणा करने पर कॄतयुग (सतयुग) और अन्य युगों की अवधि मिलती है। इन सभी का छठा भाग इनकी उषा और संध्या होता है।
☞ इकहत्तर चतुर्युगी का एक मन्वन्तर या एक मनु की आयु होती हैं। इसके अन्त पर संध्या होती है जिसकी अवधि एक सतयुग के बराबर होती है और यह प्रलय होती है।
☞ एक कल्प में चौदह मन्वन्तर होते हैं और अपनी संध्याओं के साथ प्रत्येक कल्प के आरम्भ में पंद्रहवीं संध्या या उषा होती है। यह भी सतयुग के बराबर ही होती है।
☞ एक कल्प में एक हजार चतुर्युगी होते हैं और फिर एक प्रलय होती है। यह ब्रह्मा का एक दिन होता है। इसके बाद इतनी ही लम्बी रात्रि भी होती है।
☞ इस दिन और रात्रि के आकलन से उनकी आयु एक सौ वर्ष होती है उनकी आधी आयु निकल चुकी है और शेष में से यह प्रथम कल्प है।
☞ इस कल्प में, छः मनु कंपनी संध्याओं समेत निकल चुके, अब सातवें मनु (वैवस्वत: विवस्वान (सूर्य) के पुत्र) की सत्ताईसवीं चतुर्युगी बीत चुकी है।
☞ वर्तमान समय के अनुसार अट्ठाईसवीं चतुर्युगी का द्वापर युग बीत चुका है तथा भगवान कृष्ण के अवतार समाप्ति से 5123 वाँ वर्ष (ईस्वी सन् 2021 में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से) प्रगतिशील है। जबकि कलियुग की कुल अवधि 4,32,000 वर्ष है।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार एक हिन्दु पंचांग की कालगणना में एक दिवस सूर्य उदय से अगले सूर्य उदय पर समाप्त होता है अर्थात एक सूर्यादय से दूसरे सूर्योदय तक के समय को दिवसके नाम से पुकारा जाता है और एक दिवस में एक दिन और एक रात होते हैं। दिवस से आरम्भ करके समय को साठ-साठ के भागों में विभाजित करके उनके नाम रखे गए हैं। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भारतीय पंचांग में समय की गणना को बड़ी से बड़ी और छोटे से छोटे इकाईयों में विभक्त कर किसी भी समय का शुभ मुहूर्त या योग निकाला जा सकता है जो निम्नलिखित है-
✷ 1 पलक झपकना = 1 निमेष
✷ 3 निमेष = 1 क्षण
✷ 5 क्षण = 1 काष्ठ
✷15 काष्ठा =1 लधु
✷ 15 लधु = 1 घटी = 24 मिनट ( घटि को देशज भाषा में घड़ी भी कहा जाता है।]
✷ 1पल = 60 विपल (60 विपल 24 सेकेण्ड के बराबर है। 1 विपल = 0.4 सेकेण्ड)
✷ 1 विपल = 60 प्रतिविपल
✷ इसके अतिरिक्त 1 पल = 6 प्राण ( 1 प्राण = 4 सेकेण्ड )
✷ डेढ़ घटी = 1 घंटा
✷ 60 घटी = 24 घण्टे [एक दिवस = 60 घटि अर्थात 60 घटि 24 घंटे के बराबर होती है।
✷ 2 घटी = 1मुहूर्त
✷ 30 मुहूर्त = 1 दिन-रात यानि अहोरात
✷ 1 याम = 1प्रहर (एक दिन का चौथा हिस्सा)
✷ 8 प्रहर = 1 दिन -रात
✷ 7 दिन -रात = 1 सप्ताह
✷ 4 सप्ताह = 1 महीना
12 मास = 1 वर्ष (365 -366 दिनो)
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिन्दुओं के धर्मशास्त्रों के अनुसार घण्टो- मिनटों को पलों में परिवर्तन करना और उनको नियम अनुसार देखना चाहिए।
✿ 1 मिनट – 2 -1/2 पल
✿ 4 मिनट – 10 पल
✿ 12 मिनट- 30 पळ
✿ 24 मिनट – 1 घटी
✿ 60 मिनट – 60 घटी यानि 1 घण्टा
भारतीय ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक समय को निम्नलिखित रुप से विभक्त किया जा सकता है -
☆ 60 विकला = 1 कला
☆ 60 कला = 1 अंश
☆ 30 अंश = 1 राशि
☆ 12 राशि = मगण
☆ सूर्योदय से सूर्यास्त तक = एक दिन या दिनमान
☆ सूर्यास्त अगले दिन सूर्योदय = रात्रिमान
☆ उषाकाल = सूर्याद्य से 8 घटी पहले
☆ प्रात:काल = सूर्यादय से 3 घटी तक
☆ संध्याकाल =सूर्यास्त से 3 घटी तक।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार इस प्रकार एक दिवस में 360 पल होते हैं। एक दिवस में जब पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है तो उसके कारण सूर्य विपरीत दिशा में घूमता प्रतीत होता है। 360 पलों में सूर्य एक चक्कर पूरा करता है , इस प्रकार 360 पलों में 360 अंश। 1 पल में सूर्य का जितना कोण बदलता है उसे 1 अंश कहते है।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार ब्रह्मांड में भिन्न-भिन्न लोकों में काल की गति भी भिन्न-भिन्न होती है। एक काल की सबसे छोटी ईकाई भारतीय शास्त्रों में परमाणु की मानी गई है। दो परमाणु के बराबर एक अणु होता है और तीन अणु काल के बराबर एक त्रसरेणु काल होता है। एक त्रसरेणु काल के माप के बारें में बताते हुए भारतीय शास्त्रकारों ने लिखा है कि किसी द्वार की झिरी में से आ रहे सूर्य के प्रकाश में जो कण उड़ते हुए दिखते हैं, उसे ही त्रसरेणु कहते हैं। प्रकाश को इसे पार करने में जितना समय लगता है, उसे ही एक त्रसरेणु काल कहते हैं। तीन त्रसरेणु काल को एक त्रुटि कहा गया है। त्रुटि से काल की गणना को बढ़ाते हुए परार्ध तक ले जाया गया है।
विष्णुधर्मोत्तर पुराण ( प्रथम खण्ड,73। 4-1, हेमाद्रि कृत चतुर्वर्ग चिन्तामणि, काल खंड)
1 लघु अक्षर उच्चारण 1 निमेष
2 निमेष 1 त्रुटि
10 त्रुटि 1 प्राण
6 प्राण 1 विनाडिका
60 विनाडिका 1 नाडिका
60 नाडिका 1 मुहूर्त
30 मुहूर्त 1 अहोरात्र
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भारतीय ज्योतिषियों ने निम्नलिखित मंत्रों के आधार पर ही गणनाएं कीं और उन्हीं गणनाओं को आज का कथित वैज्ञानिक जगत में भी स्वीकार किया जाता है। |
☆ दादशारं नहि तज्जराय वर्वर्ति चक्रं परि द्यामृतस्य।आ पुत्रा अग्ने मिथुनासो अत्र सप्त शतानी विंशतिश्च तस्थुः॥ (ऋग्वेद 1/164/11)
☆ द्वादश प्रधयश्चक्रमेकं त्रीणि नभ्यानि क उ तच्चिकेत।तस्मिन्त्साकं त्रिंशता न शङ्कवोऽर्पिताः षष्टिर्न चलाचलास: ॥ (ऋग्वेद 1/164/48)
इन दो मंत्रों में यह स्पष्ट किया गया है कि संवत्सर में बारह अरे या प्रविधियाँ हैं। 360 शंकु यानी दिन अथवा 729 जोड़े यानी रात-दिन हैं। यहाँ इसे एक चक्र के रूप में निरूपित किया गया है, जोकि पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर की चक्राकार गति तथा काल की चक्रीय होने दोनों का ही प्रतीक है। इससे स्पष्ट है कि संवत्सर यानी एक वर्ष में 360 दिन और बारह मास होने की संकल्पना भारत में एकदम प्रारंभ से ही है। परंतु इस सामान्य आधार को आगे बढ़ाते हुए भारतीय ज्योतिषाचार्यों ने पृथ्वी की अयन गति को जाना और इसके बाद उन्होंने वर्ष का वास्तविक परिगणन भी किया। मासों की गणना या निर्माण पृथ्वी की अपनी कक्षा से नहीं की गई, इसका निर्धारण चंद्रमा के पृथिवी के चारों ओर की कक्षा से किया गया। इसलिए इसे चांद्रमास भी कहते हैं। चंद्रमा का एक मास 30 चंद्र तिथियों का होता है परंतु वह सौर मास से लगभग आधा दिन छोटा होता है। दोनों मासों में सामंजस्य बैठाने के लिए भारतीय ज्योतिषाचार्यों ने मलमास या अधिमास का विधान किया। वास्तव में चंद्रमा से मासों का निर्धारण केवल गणना का एक प्रकार मात्र नहीं है बल्कि इसका वैज्ञानिक आधार भी है। यह आज हमें ठीक से ज्ञात हो चुका है कि चंद्रमा ही पृथ्वी पर वातावरण संबंधी अनेक बदलावों को लाने का कारण है। वेदों में इस सृष्टि को अग्निसोमात्मकं यानी कि अग्नि तथा सोम से निर्मित और संचालित होना कहा गया है। सूर्य अग्नि है और चंद्रमा सोम है। कृषि में हम इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देख सकते हैं। चंद्रमा के कारण पौधों की बालियों में रस भरता है और सूर्य के कारण फसले पकती हैं। मानव की पूरी सभ्यता आदि काल से कृषि आधारित रही है और चांद्र मास की गणना कृषिकार्य में सहायक है। यही कारण है कि सौर मासों की गणना करने के बाद भी भारतीय आचार्यों ने चांद्रमासों की भी गणना की।पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार विक्रम संवत् विश्व का सर्वश्रेष्ठ सौर-चांद्र के सामंजस्य वाला संवत् है। आज उस गणना को भुलाने के कारण कृषि में जो बाधाएं आ रही है वो बाधाएं किसी से छिपी नहीं हैं। भले ही उनका सही कारण नही समझने के कारण उसके निदान कुछ और किए जा रहे हैं जो और भी नवीन समस्याओं को जन्म दे रहे हैं। कुल मिलाकर कृषि कार्य भी कालगणना से जुड़ा हुआ मामला है।पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार प्राचीन काल के भारतीय ज्योतिषाचार्यों ने मासों का नाम पश्चिम सभ्यता का प्रचलित ईस्वी संवत की तरह मनमाने ढंग से नहीं रखा हालाँकि वेदों तथा उनके ब्राह्मणों में 12 मासों के नाम भिन्न दिए गए थे परंतु बाद में इन मासों का नाम उनके नक्षत्रों के आधार पर रखा गया जिनसे इनका प्रारंभ होता है। चित्रा नक्षत्र में प्रारंभ होने वाले मास का नाम चैत्र, विशाखा नक्षत्र में प्रारंभ होने वाले मास का नाम वैशाख। इस क्रम में सभी मासों के नाम निर्धारित किए गए। चंद्रमा और सूर्य की चाल से एक मास में तिथियों को निर्धारित किया गया और जो मनमाने ढंग से निर्धारित नहीं किया जाता है और आज भी तिथियों को निर्धारण किया जाता है। इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए प्राचीन काल के भारतीय ज्योतिषाचार्यों ने प्रत्येक अहोरात्र को 24 होराओं में बांटा और हरेक का नामकरण भी किया। दिन के पहले होरा के नाम पर उस दिन का नाम किया गया। इस प्रकार सात दिनों के नाम रखे गए और इन्हीं नामों के आधार पर यूरोप में प्रचलित संवत में भी सातों दिनों के नाम रखे गए।
Tuesday, 9 August 2022
सरल पंचांग ज्ञान
Sunday, 7 August 2022
भद्रा :- एक अद्भुत जानकारी
Tuesday, 2 August 2022
रुद्राभिषेक - अद्भुत जानकारी
☞कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है जो निम्नलिखित है-
☞प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया व नवमी के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथिमें रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है।कृष्णपक्ष की चतुर्थी, एकादशी तथा शुक्लपक्ष की पंचमी व द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार मेंआनंद-मंगल होता है।
☞कृष्णपक्ष की पंचमी, द्वादशी तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी व त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है।अत: इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।
वैसे तो रुद्राभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है। परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध या अन्य दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग।-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है। तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है।
Friday, 29 July 2022
वक्री बृहस्पति का विश्व और भारत पर प्रभाव
वक्री गुरु (बृहस्पति)ग्रह के प्रभाव और उपाय
Thursday, 28 July 2022
हरियाली अमावस्या के उपाय
Friday, 1 April 2022
चैत्र नवरात्र
Monday, 28 February 2022
महाशिवरात्रि
Wednesday, 2 February 2022
गुप्त नवरात्रि
माँ दुर्गा की कृपा पाने के लिए चमत्कारी मन्त्र
Friday, 28 January 2022
टाइगर स्टोन
Thursday, 13 January 2022
पुत्रदा एकादशी
Wednesday, 12 January 2022
श्रीगणेश सहस्त्रनाम स्तोत्र
Tuesday, 11 January 2022
हनुमान वडवानल स्तोत्र
विनियोग:- ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषि:, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल- राज- कुल- संमोहनार्थे, मम समस्त- रोग प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त- पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये।
ध्यान:- मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।
वडवानल स्तोत्र :- ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम सकल- दिङ्मण्डल- यशोवितान- धवलीकृत- जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिर: कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार- ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व- पाप- ग्रह- वारण- सर्व- ज्वरोच्चाटन डाकिनी- शाकिनी- विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दु:ख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्र: आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु शिर:-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय नागपाशानन्त- वासुकि- तक्षक- कर्कोटकालियान् यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा।
विनियोग:- ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषि:, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल- राज- कुल- संमोहनार्थे, मम समस्त- रोग प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त- पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये।
ध्यान:- मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।
वडवानल स्तोत्र :- ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम सकल- दिङ्मण्डल- यशोवितान- धवलीकृत- जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिर: कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार- ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व- पाप- ग्रह- वारण- सर्व- ज्वरोच्चाटन डाकिनी- शाकिनी- विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दु:ख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्र: आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु शिर:-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय नागपाशानन्त- वासुकि- तक्षक- कर्कोटकालियान् यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा।