google24482cba33272f17.html Pandit Anjani Kumar Dadhich : हनुमान वडवानल स्तोत्र

Tuesday, 11 January 2022

हनुमान वडवानल स्तोत्र

11 जनवरी 2022, मंगलवार
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार लंकापति रावण के छोटे भाई विभीषण ने हनुमानजी की  स्तुति करते हुए एक स्तोत्र की रचना की जो हनुमान वडवानल स्तोत्र के नाम से विख्यात हैं। 
इस स्तोत्र के पाठ करने से बड़ी-से-बड़ी विपत्ति या संकट,शत्रु-बाधा, सभी प्रकार के तंत्र-मंत्र, बंधन, प्रयोग, भूत-बाधा आदि नष्ट हो जाते है और हनुमान जी के कृपा से सुख-सम्पत्ति की भी वृद्धि होती है।
किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार या शनिवार को प्रात:काल उठकर नित्य कर्म करके स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद पूजा स्थल को शुद्ध कर एक चौकी पर लाल आसन पर हनुमानजी, गणेश जी, भगवान श्रीराम और माता जानकी की मूर्ति या चित्र को रखकर सामने आसन पर बैठकर पंचोपचार पूजन विधि से सबसे पहले गणेश जी भगवान श्रीराम और माता जानकी उसके बाद हनुमान जी की पूजा करते हुए सरसों के तेल का दीपक जलाकर हनुमानजी के सम्मुख रखना चाहिए।
उसके बाद हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। यह पाठ लगातार 41 दिनों तक करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इन 41 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और सात्विक भोजन करने के साथ-साथ सभी प्रकार के व्यभिचार से दूर रहना चाहिए।

विनियोग:- ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषि:, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल- राज- कुल- संमोहनार्थे, मम समस्त- रोग प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त- पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये।

ध्यान:- मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।

वडवानल स्तोत्र :- ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम सकल- दिङ्मण्डल- यशोवितान- धवलीकृत- जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिर: कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार- ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व- पाप- ग्रह- वारण- सर्व- ज्वरोच्चाटन डाकिनी- शाकिनी- विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दु:ख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा ।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्र: आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु शिर:-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय नागपाशानन्त- वासुकि- तक्षक- कर्कोटकालियान् यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा।

लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
Nakshatra jyotish Hub
नक्षत्र ज्योतिष हब
Panditanjanikumardadhich@gmail.com
Phone No-6377054504,9414863294
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार लंकापति रावण के छोटे भाई विभीषण ने हनुमानजी की  स्तुति करते हुए एक स्तोत्र की रचना की जो हनुमान वडवानल स्तोत्र के नाम से विख्यात हैं। 
इस स्तोत्र के पाठ करने से बड़ी-से-बड़ी विपत्ति या संकट,शत्रु-बाधा, सभी प्रकार के तंत्र-मंत्र, बंधन, प्रयोग, भूत-बाधा आदि नष्ट हो जाते है और हनुमान जी के कृपा से सुख-सम्पत्ति की भी वृद्धि होती है।
किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार या शनिवार को प्रात:काल उठकर नित्य कर्म करके स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद पूजा स्थल को शुद्ध कर एक चौकी पर लाल आसन पर हनुमानजी, गणेश जी, भगवान श्रीराम और माता जानकी की मूर्ति या चित्र को रखकर सामने आसन पर बैठकर पंचोपचार पूजन विधि से सबसे पहले गणेश जी भगवान श्रीराम और माता जानकी उसके बाद हनुमान जी की पूजा करते हुए सरसों के तेल का दीपक जलाकर हनुमानजी के सम्मुख रखना चाहिए।
उसके बाद हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। यह पाठ लगातार 41 दिनों तक करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इन 41 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और सात्विक भोजन करने के साथ-साथ सभी प्रकार के व्यभिचार से दूर रहना चाहिए।

विनियोग:- ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषि:, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल- राज- कुल- संमोहनार्थे, मम समस्त- रोग प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त- पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये।

ध्यान:- मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।

वडवानल स्तोत्र :- ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम सकल- दिङ्मण्डल- यशोवितान- धवलीकृत- जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिर: कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार- ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व- पाप- ग्रह- वारण- सर्व- ज्वरोच्चाटन डाकिनी- शाकिनी- विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दु:ख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा ।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्र: आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु शिर:-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय नागपाशानन्त- वासुकि- तक्षक- कर्कोटकालियान् यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा।

लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
Nakshatra jyotish Hub
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Panditanjanikumardadhich@gmail.com
Phone No-6377054504,9414863294

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