रुद्राभिषेक - अद्भुत जानकारी
प्रिय पाठकों,
07 अगस्त 2022, रविवार
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज रुद्राभिषेक के बारे में अद्भुत जानकारी यहाँ दे रहा हूँ।
पंडित अंजनी कुमार के अनुसार संहारक के तौर पर पूज्यनीय भगवान् महादेव सर्वशक्तिमान हैं। भोलेनाथ ऐसे देव हैं जो थोड़ी सी पूजा से भी प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शंकर बड़े दयालु हैं और उनके रुद्राभिषेक से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इन सबके अलावा "ओम् नम: शिवाय" मंत्र का रुद्राक्ष की माला पर प्रतिदिन जाप करना, शिव पञ्चाक्षरी स्रोत्र, शिव चालीसा, शिव सहस्त्रनाम और शिवमहिम्न स्तोत्र आदि में से कोई एक स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करना चाहिए और साथ ही सोमवार का व्रत करना विशेष लाभप्रद माना जाता है। पंडित अंजनी कुमार के अनुसार द्वितीय दशांश में जन्म लेने वाले स्त्री-पुरुष के लिए सोमवार के दिन संभोग करना वर्जित माना जाता है। इन नियमों का पालन करते हुए शंकर जी की आराधना करने वाले के मनोरथ सिद्ध होते हैं।
पंडित अंजनी कुमार के अनुसार रुद्राभिषेक का अर्थ भगवान रूद्र(शिव) का अभिषेक करना होता है जो कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा विभिन्न द्रव्यों के द्वारा अभिषेक करना होता है। जैसा की वेदों में वर्णित है कि भगवान शिव को ही रुद्र कहा जाता है।भगवान भोलेनाथ सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। प्राचीन धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण होते हैं और शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका रुद्राभिषेक करना माना गया है तथा रुद्राभिषेक के मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है। शास्त्र और वेदों में वर्णित हैं की शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है।
पंडित अंजनी कुमार के अनुसार रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पातक-से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि- सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं। वैसे तो रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है परन्तु त्रियोदशी तिथि, प्रदोष काल और सोमवार को रुद्राभिषेक करना परम कल्याणकारी है।पंडित अंजनी कुमार के अनुसार श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अद्भुत एवं शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है। वेदों और पुराणों में रुद्राभिषेक के बारे में तो बताया गया है कि रावण ने अपने दसों सिरों को काट कर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित किया था जिससे वो त्रिलोकजयी हो गया। भष्मासुर ने भी शिवलिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओ से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया।
पंडित अंजनी कुमार के अनुसार शिव पुराण में वर्णित किया गया है कि जिस भी उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है तो उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल शिवाभिषेक में करने से क्या फल मिलता है और इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा। पंडित अंजनी कुमार के अनुसार भगवान शिव का रुद्राभिषेक में अलग अलग द्रव्यो का उपयोग करने से जो फल प्राप्त होता है वो निम्नलिखित हैं-
☞ भगवान शिव का जल से रुद्राभिषेक करने पर वृष्टि होती है।
☞ भगवान शिव का कुशा जल से अभिषेक करने पर रोग, दुःख से छुटकारा मिलती है।
☞ भगवान शिव का दही से अभिषेक करने पर पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है।
☞ भगवान शिव का गन्ने के रस से अभिषेक करने पर लक्ष्मी प्राप्ति होती है।
☞भगवान शिव का मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर धन वृद्धि होती है।
☞ भगवान शिव का तीर्थ जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
☞ भगवान शिव का इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है।
☞ दूध से भगवान शिव का अभिषेक करने से पुत्र प्राप्ति, प्रमेह रोग की शान्ति तथा मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
☞ गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करने से ज्वर ठीक हो जाता है।
☞ भगवान शिव का दूध शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से सद्बुद्धि प्राप्ति होती है।
☞ भगवान शिव का घी से अभिषेक करने से वंश विस्तार होती है।
☞ सरसों के तेल से भगवान शिव का अभिषेक करने से रोग तथा शत्रु का नाश होता है।
☞ शुद्ध शहद से रुद्राभिषेक करने से प्रत्येक पाप का क्षय हो जाता है।
इस प्रकार शिव के रूद्र रूप के पूजन और अभिषेक करने से साधक में शिव तत्व रूप में सत्यं शिवम सुन्दरम् का उदय हो जाता है उसके बाद शिव के शुभ आशीर्वाद से समृद्धि, धन-धान्य, विद्या और संतान की प्राप्ति के साथ-साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाते हैं।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने विभिन्न तिथियों पर करने से भिन्न भिन्न परिणाम या फल प्राप्त होते हैं अतः निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए निश्चित तिथि पर रुद्राभिषेक करने से निम्नलिखित परिणाम और फल प्राप्त होते है-
☞कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों में अभिषेक करने से सुख-समृद्धि संतान प्राप्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
☞कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है जो निम्नलिखित है-
☞प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया व नवमी के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथिमें रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है।कृष्णपक्ष की चतुर्थी, एकादशी तथा शुक्लपक्ष की पंचमी व द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार मेंआनंद-मंगल होता है।
☞कृष्णपक्ष की पंचमी, द्वादशी तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी व त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है।अत: इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।
वैसे तो रुद्राभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है। परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध या अन्य दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग।-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है। तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है।
☞कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है जो निम्नलिखित है-
☞प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया व नवमी के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथिमें रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है।कृष्णपक्ष की चतुर्थी, एकादशी तथा शुक्लपक्ष की पंचमी व द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार मेंआनंद-मंगल होता है।
☞कृष्णपक्ष की पंचमी, द्वादशी तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी व त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है।अत: इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।
वैसे तो रुद्राभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है। परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध या अन्य दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग।-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है। तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है।
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