भद्रा :- एक अद्भुत जानकारी
प्रिय पाठकों,
07 अगस्त 2022, रविवार
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिन्दू पंचांग के 5 प्रमुख अंग होते हैं। ये तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण हैं । इनमें से करण हिन्दू पंचांग का एक महत्वपूर्ण अंग होता है। करण किसी भी तिथि का आधा भाग होता है इसलिए एक तिथि में दो करण होते हैं। करण की संख्या 11 होती है जो निम्नलिखित है
1-बव, 2-बालव, 3-कौलव, 4-तैतिल, 5-गर, 6-वणिज, 7-विष्टि, 8-शकुनि, 9-चतुष्पद, 10-नाग, 11-किन्स्तुघ्न। ये चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं।इन 11 करणों में 7वें करण ही विष्टि नामक करण को ही भद्रा कहते है। यह सदैव गतिशील होती है। पंचांग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है। धर्मशास्त्र के अनुसार जब भी उत्सव-त्योहार या पर्व काल पर चौघड़िए तथा पाप ग्रहों से संबंधित काल की बेला में निषेध समय दिया जाता है तो वह समय शुभ कार्य के लिए त्याज्य होता है। भारतीय पंचांग के अनुसार जब करण विष्टि लगता है तो उसे ही भद्राकाल कहा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भद्रा सूर्य और छाया की पुत्री है और इस वजह से इसका संबंध सूर्य और शनि से है। हिन्दू पंचांग के ज्ञान का बोध कराने वाली पुस्तक
महुर्त चिन्तामणि के अनुसार शुक्लपक्ष की अष्टमी और पूर्णिमा के पूर्वार्द्ध (प्रथम 30 घड़ी) में भद्रा रहती है, और शुक्लपक्ष की एकादशी और चतुर्थी को उत्तरार्द्ध (अंत की 30 घड़ी) में भद्रा होती है। कृष्णपक्ष में तृतीया और दशमी को उत्तरार्द्ध में भद्रा और सप्तमी और चतुर्दशी के पूर्वार्द्ध में भद्रा रहती है। तो इस प्रकार पूर्णिमा की प्रथम 30 घड़ी तक (तिथ्यार्ध) तक भद्रा तो रहती ही है और फाल्गुन की पूर्णिमा को ही होलिका दहन होता है तो उस दिन भद्रा तो होती ही है।
महुर्त चिन्तामणि के अनुसार - शुक्ले पूर्वार्धेष्टमीपञ्चदश्योर्भद्रैकादश्यां स्याच्चतुर्थ्यांपरार्धे। कृष्णेन्त्यार्धे स्यातृतीयादशम्योः पूर्वे भागे सप्तमीशंभुतिथ्योः।।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार ऐसी मान्यता है कि जब भद्रा का वास किसी पर्व काल में स्पर्श करता है तो उसके समय की पूर्ण अवस्था तक श्रद्धावास माना जाता है। भद्रा का समय 7 से 13 घंटे 20 मिनट माना जाता है लेकिन इसके समय के बीच में नक्षत्र व तिथि के अनुक्रम तथा पंचक के पूर्वार्द्ध नक्षत्र के मान व गणना से घट-बढ़ होती रहती है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भद्रा का वह समय छोड़ देना चाहिए जिसके पर्व काल में भद्रा के मुख तथा पुंछ का विचार किया जाता है तथा भद्रा को सर्पिणी मानते हुए उसके मुख और पूँछ का ज्ञान मुहूर्त्त चिन्तामणि के निम्नलिखित श्लोक से मिलता है –पंचद्वयद्रकृताष्टरामरसभूयामादिघट्यः शराविष्टेरासस्य मसद्गजेन्दुरसरामाध्रश्विबाणाब्धिषु।।यामेष्वंत्यघटीत्रयं शुभकरं पुच्छं तथा वासरे विष्टिस्तिथ्यपरार्धजा शुभकरी रात्रौतु पूर्वार्धजा।।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भद्रा का शाब्दिक अर्थ है ‘कल्याण करने वाली’ लेकिन इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टि करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं। भद्रा के 12 नाम है जो निम्नलिखित हैं धान्या, दधि मुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारूद्रा, विष्टिकरण, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली, असुरक्षयकारी हैं।भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अनुसार एक महीने में दो पक्ष होते है। मास के एक पक्ष में भद्रा की 4 बार पुनरावृति होती है। यथा – शुक्ल पक्ष में अष्टमी( 8) तथा पूर्णिमा (15 ) तिथि के पूर्वार्द्ध में भद्रा होती है वही चतुर्थी (4) एकादशी (11) तिथि के उत्तरार्ध में भद्रा काल होती है। कृष्ण पक्ष में भद्रा तृतीया (3) व दशमी (10) तिथि का उत्तरार्ध और सप्तमी (7) व चतुर्दशी(14) तिथि के पूर्वार्ध में होती है।
भद्रा वास
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार मेष, वृषभ, मिथुन, वृश्चिक का जब चंद्रमा हो तब भद्रा स्वर्ग लोक में रहती है। कन्या, तुला, धनु, मकर का चंद्रमा होने से पाताल लोक में, कर्क, सिंह, कुंभ, मीन राशि पर स्थित चंद्रमा होने पर भद्रा मृत्यु लोक में रहती है अर्थात् सम्मुख रहती है। जब भद्रा भू-लोक में रहती है तब अशुभ फलदायिनी एवं वर्जित मानी गई है। इस समय शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। बाकि अन्य लोक में शुभ रहती है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार विशेष ध्यान रखने योग्य बात यह है कि शुक्ल पक्ष की भद्रा का नाम वृश्चिकी है। कृष्ण पक्ष की भद्रा का नाम सर्पिणी है। कुछ एक मतांतर से दिन की भद्रा सर्पिणी, रात्रि की भद्रा वृश्चिकी है। बिच्छू का विष डंक में तथा सर्प का मुख में होने के कारण वृश्चिकी भद्रा की पुच्छ और सर्पिणी भद्रा का मुख विशेषतः त्याज्य है।पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भद्रा के प्रमुख दोष निम्नलिखित है-
✷ जब भद्रा मुख में रहती है तो कार्य का नाश होता है।
✷ जब भद्रा कंठ में रहती है तो धन का नाश होता है।
✷ जब भद्रा हृदय में रहती है तो प्राण का नाश होता है।
✷ जब भद्रा पुच्छ में होती है तो विजय की प्राप्ति एवं कार्य सिद्ध होते हैं।
अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है। जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या या उनका नाश करने वाली मानी गई है।जब चन्द्रमा कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है और भद्रा नामक (विष्टि करण) का योग होता है तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है। इस समय सभी कार्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं।
मुहुर्त्त चिन्तामणि के अनुसार जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी अर्थात मृत्युलोक में होता है। चंद्रमा जब मेष, वृष, मिथुन या वृश्चिक में रहता है तब भद्रा का वास स्वर्गलोक में होता है। कन्या, तुला, धनु या मकर राशि में चंद्रमा के स्थित होने पर भद्रा का वास पाताल लोक में होता है। कहा जाता है की भद्रा जिस भी लोक में विराजमान होती है वही मूलरूप से प्रभावी रहती है। अतः जब चंद्रमा गोचर में कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होगा तब भद्रा पृथ्वी लोक पर असर करेगी। भद्रा जब पृध्वी लोक पर होगी तब भद्रा की अवधि कष्टकारी होगी।
जब भद्रा स्वर्ग या पाताल लोक में होगी तब वह शुभ फल प्रदान करने में समर्थ होती है।
✷भद्रा दोष :- मंगलवार-शनिवार जनित दोष, व्यतिपात, अष्टम भावस्थ एवं जन्म नक्षत्र दोष, मध्याह्न के पश्चात शुभ कारक मानी जाती है।
भद्रा काल में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षा बंधन आदि मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। लेकिन भद्राकाल में स्त्री प्रसंग, यज्ञ करना, स्नान करना, अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करना, ऑपरेशन करना, कोर्ट में मुकदमा दायर करना, अग्नि सुलगाना, किसी वस्तु को काटना, भैंस, घोड़ा, ऊंट संबंधी कोई भी कर्म प्रशस्त माने जाते हैं। यदि किसी भी शुभ कार्य को भद्राकाल में करते है तो अशुभ परिणाम मिलने की प्रबल सम्भावना होती है। मुहूर्त मार्तण्ड में कहा है – “ईयं भद्रा शुभ-कार्येषु अशुभा भवति” अर्थात शुभ कार्य में भद्रा अशुभ होती है। ऋषि कश्यप के अनुसार भी भद्रा काल को अशुभ तथा दुखदायी बताते हुए कहा है कि- न कुर्यात मंगलं विष्ट्या जीवितार्थी कदाचन। कुर्वन अज्ञस्तदा क्षिप्रं तत्सर्वं नाशतां व्रजेत।।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भद्रा के दोष निवारण के लिए भद्रा व्रत का विधान भी है साथ ही भद्रा के बारह नामों का स्मरण और उसकी पूजा करने वाले को भद्रा कभी परेशान नहीं करतीं। ऐसे भक्तों के कार्यों में कभी विघ्न नहीं पड़ता।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार रक्षा बंधन का त्योहार हर भाई—बहन के लिए खुशियों का त्योहार होता है। किसी भी बहिन को भद्रा में अपने भाई को राखी नहीं बांधनी चाहिए वरना दुष्परिणाम प्राप्त होते हैं जैसे
शूर्पणखा ने अपने भाई रावण को भद्रा में राखी बांधी थी जिसके कारण रावण का विनाश हो गया अर्थात् रावण का अहित हुआ। इस कारण भद्रा में राखी नहीं बांधनी चाहिए।
भद्रायां द्वे न कर्त्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी।
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