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Tuesday, 9 August 2022

सरल पंचांग ज्ञान

सरल पंचांग ज्ञान 
प्रिय पाठकों, 
 10 अगस्त 2022, बुधवार 
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज पंचांग के सरल ज्ञान के बारे में जानकारी यहाँ दे रहा हूँ।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार ज्योतिष विज्ञान छह शास्त्रों में से एक है और इसे वेदों का नेत्र कहा गया है और इसी कारण ऐसा माना जाता है की वेदों का सही ज्ञान प्राप्त करने के लिए ज्योतिष में पारंगत होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए महाप्रतापी त्रिलोकपति रावण जिसे चारो वेद कंठस्थ थे वह ज्योतिष का सिद्ध ज्ञाता था और उसने ही रावण संहिता जैसा ग्रंथ रचा था जिसके बल पर उसने शनी और यमराज तक को अपना दास बना लिया था। ज्योतिष ज्ञान से ही नारद भगवान कृष्ण, भीष्म पितामह, कर्ण आदि महान योद्धा भी ज्योतिष के अच्छे जानकर और त्रिकालज्ञ हुए थे। ब्रह्मा के मानस पुत्र भृगु ने भृगु-संहिता का प्रणयन किया। छठी शताब्दी में वरामिहिर ने वृहज्जातक, वृहत्सन्हिता और पंचसिद्धांतिका लिखी। सातवी सदी में आर्यभट ने ‘आर्यभटीय’ की रचना की जो खगोल और गणित की जानकारियाँ है। ऋषि पराशर रचित होरा शास्त्र ज्योतिष का सिद्ध ग्रन्थ है। नील कंठी वर्षफल देखने का एक अच्छा ग्रन्थ है। मुहूर्त देखने के लिए मुहूर्त चिंतामणि एक अच्छा ग्रन्थ है। भाव प्रकाश, मानसागरी, फलदीपिका, लघुजातकम, प्रश्नमार्ग भी बहुप्रचलित ग्रन्थ है। बाल बोध ज्योतिष, लाल किताब, सुनहरी किताब, काली किताब और अर्थ मार्तंड अच्छी पुस्तकें हैं। कीरो व बेन्ह्म जैसे अंग्रेज ज्योतिषियों ने भी हस्तरेखा ज्योतिष पर भी किताबें लिखी। नस्त्रेदाम्स की भविष्यवाणी विश्व प्रसिद्ध है जो ज्योतिष शास्त्र की अनमोल धरोहर है। 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार ज्योतिष शास्त्र को जानने या सिखने के लिए पंचांग प्रथम पायदान है। पंचांग का शाब्‍दिक अर्थ है पंच + अंग = पांच अंग यानि पंचांग। हिन्दू काल-गणना की रीति से निर्मित पारम्परिक कैलेण्डर या कालदर्शक को पंचांग कहते हैं।हिन्दू धर्म में छः वैदांगो में से एक महत्वपूर्ण अंग समझे जाने वाली ज्योतिष विद्या का प्रमुख दर्पण है जिससे समय की विभिन्न इकाईयों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में ही पंचांग एक ऐसी विद्या है जिसको जानना और समझना भी बहुत कठिन होता है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार पंचांग के पठन और श्रवण से भी लाभ मिलता है। पंचांग भिन्न-भिन्न रूप में लगभग पूरे भारत में माना जाता है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार संवत्, महीना, पक्ष, दिन(दिवस) और तिथि आदि के बारे में जानने की विधा (साधन) एक मात्र पंचांग ही है। क्योंकि इसमें पंचांग के पांच अंग शामिल होते हैं इसलिए इसे पंचांग का नाम दिया गया है पंचांग ही इस बात से ज्ञात करवाते हैं कि दिन शुभ है या अशुभ। धार्मिक कार्यों, सभी प्रकार के विवाह, मुण्डन संस्कार, भवन निर्माण आदि का तिथियों,नक्षत्र, योग, और समय के अनुसार अनुष्ठान का ज्ञान पंचांग द्वारा ही लगाया सकता है और आज दैनिक जीवन में विशेष प्रचलित राशि फल, दिन-रात, सूर्य का अस्त-उदय, घडी पल और भारतीय समय का ज्ञान, मौसम परिवर्तन, ग्रह परिवर्तन, त्यौहार व व्रत आदि भी इसी पंचांग से देखा जाता है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिन्दू धर्म में प्राचीन काल से पंचांग के विशेष पांच अंग माने जाते है जो वार, तिथि, नक्षत्र, योग, करण है। पंचांग नाम इसके पांच प्रमुख भागों से बने होने के कारण है।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार पंचांग के पांच अंगों की संक्षिप्‍त जानकारी निम्नलिखित है-
(1) तिथि - चन्द्रमा की एक कला को तिथि कहते हैं। चन्द्र और सूर्य के अन्तरांशों के मान 12 अंशों का होने से एक तिथि होती है। जब अन्तर 180 अंशों का होता है उस समय को पूर्णिमा कहते हैं और जब यह अन्तर 0 या 360 अंशों का होता है उस समय को अमावस कहते हैं। एक मास में लगभग 30 तिथि होती हैं। 15 कृष्ण पक्ष की और 15 तिथि शुक्ल पक्ष की। इनके नाम इस प्रकार होते हैं 1 प्रतिपदा, 2 द्वितीया, 3 तृतीया, 4 चतुर्थी, 5 पंचमी, 6 षष्ठी, 7 सप्तमी, 8 अष्टमी, 9 नवमी, 10 दशमी, 11 एकादशी, 12 द्वादशी, 13 त्रयोदशी, 14 चतुर्दशी और 15 पूर्णिमा, यह शुक्ल पक्ष कहलाता है। कृष्ण पक्ष में यही 14 तिथि होती हैं बस अन्तिम तिथि पूर्णिमा के स्थान पर अमावस्या नाम से जाना जाती है। 
(2) वार- एक सूर्योदय से दूसरे दिन के सूर्योदय तक की कलावधि को वार कहते हैं। वार सात होते हैं जो इस प्रकार है- 1. रविवार, 2. सोमवार, 3. मंगलवार, 4. बुधवार, 5. गुरुवार, 6. शुक्रवार और 7. शनिवार।
(3)नक्षत्र- ताराओं के समूह को नक्षत्र कहते हैं। नक्षत्र 27 होते हैं। प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं और 9 चरणों के मिलने से एक राशि बनती है। 27 नक्षत्रों के नाम इस प्रकार हैं- 1. अश्विनी 2. भरणी 3. कृत्तिका 4. रोहिणी 5. मृगशिरा 6. आद्र्रा 7. पुनर्वसु 8. पुष्य 9. अश्लेषा 10. मघा 11. पूर्वाफाल्गुनी 12. उत्तराफाल्गुनी 13. हस्त 14. चित्रा 15. स्वाती 16. विशाखा 17. अनुराधा 18. ज्येष्ठा 19. मूल 20. पूर्वाषाढ 21. उतराषाढ 22. श्रवण 23. घनिष्‍ठा 24. शतभिषा 25. पूर्वाभद्रपद 26. उत्तराभाद्रपद 27. रेवती। परन्तु किसी शुभ कार्य को करने के लिए जब मुहूर्त निकालते हैं तो 28वां नक्षत्र को भी माना जाता है। यह 28वां नक्षत्र अभिजीत नक्षत्र कहलाता है। अभिजीत नक्षत्र का उपयोग ग्रह प्रवेश के मुहूर्त, विवाह सम्बंधित कार्य के लिए, नया वाहन खरीदने के लिए और शिक्षा की शुरुआत के लिए किया जाता है।
(4)योग- सूर्य चन्द्रमा के संयोग से योग बनता है ये भी 27 होते हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं- 1. विष्कुम्भ, 2. प्रीति, 3. आयुष्मान, 4. सौभाग्य, 5. शोभन, 6. अतिगण्ड, 7. सुकर्मा, 8.घृति, 9.शूल, 10. गण्ड, 11. वृद्धि, 12. ध्रव, 13. व्याघात, 14. हर्षल, 15. वङ्का, 16. सिद्धि, 17. व्यतीपात, 18.वरीयान, 19.परिधि, 20. शिव, 21. सिद्ध, 22. साध्य, 23. शुभ, 24. शुक्ल, 25. ब्रह्म, 26. ऐन्द्र, 27. वैघृति।
(5)करण- तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं यानि एक तिथि में दो करण होते हैं। करणों के नाम इस प्रकार हैं 1. बव, 2.बालव, 3.कौलव, 4.तैतिल, 5.गर, 6.वणिज्य, 7.विष्टी (भद्रा), 8.शकुनि, 9.चतुष्पाद, 10.नाग, 11.किंस्तुघन।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार पंचांग की गणना के आधार पर हिंदू पंचांग की तीन धारायें हैं पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति।
पंचांग के चक्र को खगोलीय तत्वों से जोड़कर देखा जाता है। भारत देश में कई तरह के प्रचलित है परन्तु सभी हिन्दू पंचांग कालगणना के एक समान सिद्धांतों और विधियों पर आधारित होते हैं किन्तु मासों के नाम, वर्ष का आरम्भ आदि की दृष्टि से अलग अलग होते हैं।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार पंचांग के मुख्यत: तीन सिद्धान्त को प्रयोग में लाये जाते हैं जो निम्नलिखित है-
✷ सूर्य सिद्धान्त – अपनी विशुद्धता के कारण सारे भारत में प्रयोग में लाया जाता है।
✷ आर्य सिद्धान्त – त्रावणकोर, मलावार, कर्नाटक में माध्वों द्वारा, मद्रास के तमिल जनपदों में प्रयोग किया जाता है।  
✷ ब्राह्मसिद्धान्त – गुजरात एवं राजस्थान में प्रयोग किया जाता है।
विशेष
ब्राह्मसिद्धान्त सिद्धान्त अब सूर्य सिद्धान्त सिद्धान्त के पक्ष में समाप्त होता जा रहा है। सिद्धान्तों में महायुग से गणनाएँ की जाती हैं, जो इतनी क्लिष्ट हैं कि उनके आधार पर सीधे ढंग से पंचांग बनाना कठिन है। अतः सिद्धान्तों पर आधारित ‘करण’ नामक ग्रन्थों के आधार पर पंचांग निर्मित किए जाते हैं, जैसे – बंगाल में मकरन्द, गणेश का ग्रहलाघव। ग्रहलाघव की तालिकाएँ दक्षिण, मध्य भारत तथा भारत के कुछ भागों में ही प्रयोग में लायी जाती हैं।
सिद्धान्तों में अन्तर के दो तत्त्व महत्त्वपूर्ण हैं
प्रथम वर्ष विस्तार के विषय में और द्वितीय वर्षमान का अन्तर के विषय में।
केवल कुछ विपलों का है, और कल्प या महायुग या युग में चन्द्र एवं ग्रहों की चक्र-गतियों की संख्या के विषय में। यह केवल भारत में ही पाया गया है। आजकल  का प्रचलित यूरोपीय पंचांग भी असन्तोषजनक है।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भारत में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख पंचांग निम्नलिखित हैं-
(1)विक्रमी पंचांग - यह सर्वाधिक प्रसिद्ध पंचांग है जो भारत के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भाग में प्रचलित है।
(2) तमिल पंचांग  -  दक्षिण भारत में प्रचलित है।
(3) बंगाली पंचांग - बंगाल तथा कुछ अन्य पूर्वी भागों में प्रचलित है।
(4) मलयालम पंचांग - यह केरल में प्रचलित है और सौर पंचाग है।
साल, महीने, सप्‍ताह और दिन
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हमारे हिंदू पंचांग में 12 महीने होते हैं। विक्रम संवत के अनुसार 12 माह का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन शुरू हुआ। माह का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। प्रत्येक महीने में 15 दिन के दो पक्ष होते हैं प्रथम शुक्ल पक्ष और द्वितीय कृष्ण पक्ष। प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं। यह 12 राशियां बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन उसकी संक्रांति होती है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घड़ी 48 पल छोटा है। इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमे एक महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास, मल मास या पुरुषोत्‍तम महीना कहते हैं। प्रत्येक महीने में तीस दिन होते हैं। महीने को चंद्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने के आधार पर शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष विभाजित होते हैं। एक दिन को तिथि कहा जाता है जो पंचांग के आधार पर उन्नीस घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक होती है। दिन को चौबीस घंटों के साथ-साथ आठ पहरों में भी बांटा गया है। एक प्रहर करीब तीन घंटे का होता है। एक घंटे में लगभग दो घड़ी होती हैं, एक पल लगभग आधा मिनट के बराबर होता है और एक पल में चौबीस क्षण होते हैं। पहर के अनुसार देखा जाए तो चार पहर का दिन और चार पहर की रात्रि होती है। 
क्रमशः जारी........…
लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
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नक्षत्र ज्योतिष हब
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