हिन्दू धर्म संस्कृति में गाय का विशेष महत्व माना गया है और गाय को माता का स्थान दिया गया है। अत: गाय को गौ माता भी कहा जाता है। और उन्हीं को समर्पित हैं गोपाष्टमी पर्व। दिपावली के ठीक बाद आने वाली कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी पर्व के रूप में मनाया जाता है। गाय बछड़ों की पूजा का पावन त्योहार गोपाष्टमी इस साल 22 नवंबर, रविवार को मनाई जाएगी।इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गौ चारण लीला शुरू की थी। कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन मां यशोदा ने भगवान कृष्ण को गौ चराने के लिए जंगल भेजा था। इस दिन गो, ग्वाल और भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करने का महत्व है। गोपाष्टमी पर्व यानि गायों की रक्षा, संवर्धन एवं उनकी सेवा के संकल्प का ऐसा महापर्व जिसमें सम्पूर्ण सृष्टि को पोषण प्रदान करने वाली गाय माता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु गाय-बछड़ों का पूजन किया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने जिस दिन से गौचारण शुरू किया।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार इस शुभ दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी का दिन था। इसी दिन से गोपाष्टमी पर्व का प्रारम्भ हुआ।गोपाष्टमी के दिन प्रातःकाल में ही गायों को स्नान आदि कराया जाता है और गऊ माता को मेहंदी, हल्दी, रोली के थापे लगाए जाते हैं। इस दिन बछड़े सहित गाय की पूजा करने का विधान है। धूप, दीप, गंध, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड़, वस्त्र आदि से गायों का पूजन किया जाता है और आरती उतारी जाती है। इसके बाद गायों को गो-ग्रास दिया जाता हैं। पौराणिक मान्यता है कि गाय की परिक्रमा करके गायों के साथ कुछ दूरी तक चलना भी चाहिए। ऐसा कर उनकी चरण रज को माथे पर लगाने से सुख- सौभाग्य में वृद्धि होती है। गाय की रक्षा एवं पूजन करने वालों पर सदैव श्रीविष्णु की कृपा बनी रहती है। तीर्थों में स्नान-दान करने से, ब्राह्मणों को भोजन कराने से, व्रत-उपवास और जप-तप व हवन-यज्ञ करने से जो पुण्य मिलता है वहीं पुण्य गौ को चारा या हरी घास खिलाने अथवा किसी भी रूप में गाय की सेवा करने से प्राप्त हो जाता है। जो व्यक्ति इस दिन गायों को ग्रास खिलाए और उनकी सेवा करें तथा सांय काल मे गायों का पंचोपचार से पूजन करे तो व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। आधुनिक युग में यदि हम गोपाष्टमी पर गौशाला के लिए दान करें और गायों की रक्षा के लिए प्रयत्न करें तो गोपाष्टमी का कृत्य पूर्ण होता है और उसका पुण्य प्राप्त किया जा सकता है। गायों को स्नान कराकर पैरों में मेहंदी आदि लगाकर श्रृंगार करें। गायों के सींगों में मुकुट आदि धारण कराएं। गायों की परिक्रमा कर उनके पैरों की मिट्टी को अपने सिर पर लगाएं।संध्याकाल में गायों के जंगल से वापस लौटने पर उनके चरणों को धोकर तिलक लगाए। गोपाष्टमी के दिन गाय के नीचे से निकलने वालों को बड़ा पुण्य मिलता है।गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौशाला में गो संवर्धन हेतु गौ पूजन का कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है।
Pandit Anjani Kumar Dadhich
Nakshatra jyotish Hub
No comments:
Post a Comment