🌻🌻ज्योतिषी बनने के योग 🌻🌻
ज्योतिष शास्त्र अध्यात्म,दर्शन,धर्म व विज्ञान का सम्मिलित रूप हैं। आकाश मे भ्रमण करते हुये ग्रह अपने अपने मार्गो मे जब विभिन्न राशियो व नक्षत्रो से गुजरते हैं तो धरती पर प्रत्येक प्राणी व वस्तु पर इनका कुछ न कुछ प्रभाव पड़ता हैं जिसका पता हमारे प्राचीन विद्वानो ने अपने ज्ञान व शोध द्वारा हमे ज्योतिषीय ज्ञान के रूप मे दिया चूंकि भारत वर्ष हमेशा से ही ज्ञान, ध्यान,अध्यात्म,धर्म व दर्शन की भूमि रहा हैं यहाँ यह ज्योतिष शास्त्र ना सिर्फ पवित्र कार्य के रूप मे देखा जाता हैं बल्कि भविष्य हेतु मार्गदर्शक भी माना जाता हैं। इस विधा की लोकप्रियता को देखते हुये बहुत से लोग इसका विधि विधान से अध्ययन कर सफल ज्योतिष बनना पसंद कर रहे हैं हमने इसी विषय को केन्द्रित कर यह जानने का प्रयास किया की किसी की जन्म कुंडली मे ऐसे कौन से योग होते हैं जो व्यक्ति विशेष को इस गूढ विदया का अध्ययन करने को प्रेरित व मजबूर करते हैं।
एक सफल ज्योतिषी बनने के लिए गणितज्ञ,दार्शनिक व मनोवैज्ञानिक होना आवशयक हैं इसके अतिरिक्त जातक विशेष मे वाक सिद्धि का होना व भविष्य देखने की कला (दूरदर्शिता) का होना अत्याधिक ज़रूरी हैं चूंकि यह सभी विषय गुरु व बुध ग्रहो के अंतर्गत आते हैं अत; कुंडली मे इन दोनों का बलवान होना आवशयक हैं इसके अतिरिक्त हमें निम्न इन अवयवो का भी अध्ययन करना चाहिए।
भाव-लग्न,पंचम,अष्टम,नवम व दशम
राशीय-वृश्चिक व कुम्भ
ग्रह –गुरु,बुध व शनि
लग्न भाव- इस भाव से व्यक्तित्व,मस्तिष्क,स्वभाव,रुचि, शरीर, आजीविका व कार्य के प्रति समर्पण भावना का विचार किया जाता हैं | यह भाव शारीरिक रूप से कोई भी कार्य करने के लिए देखा जाता हैं यह भाव निजता अर्थात स्वयं का होता हैं।पंचम भाव-इस भाव से विधा, बुद्दि,निर्णय क्षमता,योजना अनुसार कार्य, विचार, गंभीरता, विवेक व पसंद नापसंद देखी जाती हैं।जिससे शिक्षा,पढ़ाई,सिद्दी व अध्ययन का पता चलता हैं।
अष्टम भाव-यह भाव गुप्तता व गुप्त विषय की जानकारी का होता हैं ज्योतिष का कार्य गुप्तता भरा होता हैं जिसमे भविष्य मे छुपी गुप्तता का पता लगाना होता हैं यह भाव सामान्य ज्ञान(कौमन सेंस),साधना व शोध का भी होता हैं।नवम भाव-यह भाव भाग्य सौभाग्य,प्रसिद्दि,धर्म व परंपरा का माना जाता हैं जो की हमे ज्योतिष जैसे धार्मिक व परंपरागत विषय का अध्ययन करने की प्रेरणा प्रदान करता हैं यही भाव पिता का भी माना जाता हैं और यह विधा आज भी बहुदा क्षेत्रो मे पैतृक विधा के रूप मे ही अध्ययन की जाती हैं।दशम भाव-इस भाव से हम कार्यक्षेत्र का पता लगाते हैं व्यक्ति विशेष के कर्मो मे सात्विकता या तामसिकता का होना इस भाव से जाना जा सकता हैं इस भाव से गुरु अथवा शनि का संबंध व्यक्ति को ज्योतिष जैसी पवित्र व आध्यात्मिक विद्या मे अवश्य लगाव रखवा सकता हैं। वृश्चिक राशि-यह राशि कालपुरुष की पत्रिका मे अष्टम भाव की राशि मानी जाती हैं जो गूढ़ता व गुप्तता की प्रतीक मानी गयी हैं चूंकि यह विधा गुप्त व अज्ञात की खोज से संबन्धित हैं इसलिए इस राशि का व इस राशि पर प्रभाव अवश्य ही देखा जाना चाहिए।
कुम्भ राशि –यह राशि दार्शनिकता,तत्वज्ञान व रहस्यता भरी राशि हैं जो व्यापकता को दर्शाती हैं जिसका स्वामी शनि गूढता व पराज्ञान को देनेवाला ग्रह हैं।
गुरु ग्रह –यह ग्रह विधा,विवेक,विस्तारता, परंपरागत व धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाला माना जाता हैं इसके शुभ या बली होने पर व्यक्ति धर्म कर्म व सबका भला चाहने वाला होता हैं इस ग्रह का केंद्र या त्रिकोण से संबंध व्यक्ति को ज्योतिष शास्त्र मे रुचि प्रदान करता हैं जिससे व्यक्ति धर्म प्रचारक,शिक्षक,व पुजारी बन सकता हैं ।
बुध ग्रह – इस ग्रह के बिना बुद्दि प्राप्त नहीं हो सकती जिसके बिना गणितज्ञ बन पाना नामुमकिन हैं बिना गणित के अच्छा ज्योतिषी नहीं बना जा सकता हैं | बलवान बुध ग्रह का केंद्र व त्रिकोण से संबंध जातक को ऊंच दर्जे की मानसिक शक्ति,तर्क शक्ति व कल्पना शक्ति प्रदान करता हैं जिससे जातक किसी भी निर्णय को ले पाने मे सफल हो पाता हैं।शनि ग्रह- यह ग्रह अष्टम भाव का कारक ग्रह होता हैं जो गुप्त वस्तुओ, प्रयोगो,व रहस्यो का भाव माना जाता हैं | इसके शुभ अवस्था मे होने से व्यक्ति विशेष का दृस्टि कोण व्यापकता लिए हुये होता हैं जिसकी ज्योतिष विधा मे बहुत आवशयकता होती हैं साथ ही साथ शोध इत्यादि करने के लिए भी शनि ग्रह का शुभ होना ज़रूरी होता हैं। ज्योतिषी बनने के लिए इस शनि ग्रह का प्रभाव लग्न,अष्टम व दशम भाव या लग्नेश,अष्टमेश या दशमेश पर अवश्य देखा जाना चाहिए। ज्योतिष के महान ग्रंथ बृहद पाराशर होरा शास्त्र के एक श्लोक मे ज्योतिषी की योग्यताओ के विषय मे कहा गया हैं की “एक ज्योतिषी को गणित मे निपुण होना चाहिए। उसे शब्द शास्त्र का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। उसे न्यायविद, बुद्धिमान,जितेंद्रिय, देश,काल,पात्र का ज्ञाता और विवेकवान होना चाहिए। उसमे परस्पर विरोधी फल दृष्टिगोचर होने पर उनका सही विश्लेषण करने की क्षमता और अपनी बात को अच्छी तरह समझाने की योग्यता होनी चाहिए। जिस व्यक्ति को होरा स्कन्द का पूर्ण ज्ञान हो उसकी बातों पर अन्य जनो को संशय नहीं करना चाहिए। यदि इन सभी बातों पर ध्यान से देखे तो यह सभी प्रभाव जातक विशेष पर उक्त तीन ग्रहो के द्वारा ही प्राप्त होते हैं ।
Astro Anjani Kumar Dadhich
वैदिक ज्योतिष, वास्तुशास्त्र,अंक ज्योतिष, रत्न ज्योतिष, हीलिंग,पुजा व अनुष्ठान आदि के ज्ञाता
Tuesday, 26 March 2024
ज्योतिष
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