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Friday, 30 October 2020

शरद पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार शरद पूर्णिमा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनायी जाती है। इसे शरद पूर्णिमा के अलावा कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन शाम को मां लक्ष्मी का विधि-विधान से पूजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन ने पूजा- अराधना करने वाले भक्तों पर मां लक्ष्मी कृपा बरसाती हैं। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा 16 कलाओं में होता है और धरती पर अमृत वर्षा करता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति 16 कलाओं से युक्त होता है वो सर्वोत्तम माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्‍ण ने 16 कलाओं के साथ जन्‍म लिया था। मान्यता है कि इसी दिन मां लक्ष्मी का अवतरण हुआ था।इसीलिए शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन खीर के भोग का भी बहुत महत्व होता है। कुछ लोग चूड़ा और दूध भी भिगोकर रखते हैं।रातभर चांदनी में रखी खीर शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाती है।वहीं श्वांस के रोगियों को इससे फायदा होता है और साथ ही आंखों की रोशनी भी बेहतर होती है।माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी घर-घर विचरण करती हैं। इसलिए इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने से उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में कभी भी धन की कमीं नहीं रहती।पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार इस रात में माता लक्ष्मी के आठ में से किसी भी स्वरूप का ध्यान करने से उनकी कृपा मिलती है। देवी के आठ स्वरूप धनलक्ष्मी, धन्य लक्ष्मी, राजलक्ष्मी, वैभवलक्ष्मी, ऐश्वर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी और विजय लक्ष्मी हैं। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार चांद की रोशनी में कई रोगों का इलाज करने की खासियत होती है। चंद्रमा की रोशनी इंसान के पित्त दोष को कम करती है। एग्जिमा, गुस्सा, हाई बीपी, सूजन और शरीर से दुर्गंध जैसी समस्या होने पर चांद की रोशनी का सकारात्मक असर होता है।पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार सुबह की सूरज की किरणें और चांद की रोशनी शरीर पर सकरात्मक असर छोड़ती हैं।शरद पूर्णिमा को खीर रात भर चांद की रोशनी में रखने के बाद ही खाना चाहिए। इसे चलनी से ढक भी सकते हैं। खीर में कुछ चीजों का होना जरूरी है। जैसे दालचीनी, काली मिर्च, घिसा नारियल, किशमिश, छुहारा। रातभर इसे चांदनी में रखने से रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाती है।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार शरद पूर्णिमा को माता लक्ष्मी की पुजा की विधि निम्नलिखित है-
शरद पूर्णिमा के दिन शामको स्नान करें। इसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें और उन्हें लाल पुष्प, नैवैद्य, इत्र, सुगंधित चीजें चढ़ाएं। आराध्य देव को सुंदर वस्त्र, आभूषण पहनाएं। आवाहन, आसन, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी और दक्षिणा आदि अर्पित कर पूजन करें।इसके बाद माता लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं। यह सभी चीजें अर्पित करने के बाद लक्ष्मी चालीसा या श्रीसुक्त पाठ अवश्य करें और उनकी धूप व दीप से आरती उतारें।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार रात्रि के समय गाय के दूध से बनी खीर में घी और चीनी मिलाकर आधी रात के समय भगवान भोग लगाएं।रात्रि में चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर चंद्र देव का पूजन करें तथा खीर का नेवैद्य अर्पण करें। रात को खीर से भरा बर्तन चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें और सबको प्रसाद के रूप में वितरित करें। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की रोशनी में खीर अवश्य रखें और अगले दिन उसे पूरे परिवार के साथ मिल बांटकर खाएं।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुननी चाहिए। कथा से पूर्व एक लोटे में जल और गिलास में गेहूं, पत्ते के दोने में रोली व चावल रखकर कलश की वंदना करें और दक्षिणा चढ़ाएं।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार इस दिन भगवान शिव-पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा होती है।अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी समस्त कलाओं में पूर्ण होता है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा कि किरणों से अमृत बरसता है। इस दिन की चांदनी सबसे तेज प्रकाश वाली होती है। ब्रह्म कमल भी शरद पूर्णिमा की रात खिलता है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार शास्त्रों के अनुसार इस दिन किए गए धार्मिक अनुष्ठान कई गुना फल देते हैं।इसी कारण से इस दिन कई धार्मिक अनुष्ठान भी किए जाते हैं। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा धरती के बेहद पास होता है। जिसकी वजह से चंद्रमा से जो रासायनिक तत्व धरती पर गिरते हैं वह काफी सकारात्मक होते हैं और जो भी इसे ग्रहण करता है उसके अंदर सकारात्मकता बढ़ जाती है। शरद पूर्णिमा को कामुदी महोत्सव के नाम से भी जाना जाता है।
Pandit Anjani Kumar Dadhich
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Saturday, 24 October 2020

शमी पुजन

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विजयदशमी और शमी वृक्षपंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार विजयदशमी के दिन माँ अपराजिता का पूजन करने के बाद शमी अर्थात खेजड़ी वृक्ष का पूजन करना चाहिए।   
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार शमी के कांटों का प्रयोग तंत्र, मंत्र बाधा और नकारात्‍मक शक्तियों के नाश के लिए होता है। शमी के फूल, पत्‍ते, जड़ें, टहनी और रस का प्रयोग शनि संबंधी दोषों को दूर करने के लिए भी किया जाता है। आयुर्वेद में शमी के वृक्ष का प्रयोग गुणकारी औषधि के रूप में भी किया जाता है। माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु का वास शमी वृक्ष को ही माना जाता है। शमी वृक्ष की पूजा दशहरा वाले दिन प्रदोष काल में की जाती है। शमी को दृढ़ता तथा तेजस्विता का प्रतीक माना जाता है। उसमें अन्य वृक्षों की तुलना में अग्नि तत्व ज्यादा होता है। हम भी शमी की तरह ही तेजस्वी तथा दृढ़ हों, इसलिए इसकी पूजा की जाती है।शमी के वृक्ष की पूजन परंपरा हमारे यहां प्राचीन समय से चली आ रही है। पौराणिक मान्यता है कि मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने के पूर्व शमी वृक्ष के सामने शीश नवाकर अपनी विजय हेतु प्रार्थना की थी। महाभारत के समय में पांडवों ने देश निकाला के अंतिम वर्ष में अपने हथियार शमी के वृक्ष में ही छिपाए थे और इसी कारण उन्हें विजय प्राप्त हुई।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार सर्वप्रथम शमी वृक्ष के पास जाकर नमन करते हुए शमी वृक्ष का रोली से तिलक कर चावल चढाये। उसके बाद गुड़ का भोग लगाए। मौली चढाते हुए शमी वृक्ष के चारों ओर मौली से बांधे और फिर धुप दीप के साथ शमी वृक्ष की पुजा आरती करे उसके बाद सारी पूजा सामग्री को शमी वृक्ष की जड़ों में मिट्टी को अर्पित करें। फिर शमी वृक्ष के पत्ते और जड़ के पास की थोड़ी सी मिट्टी लेकर उसे नए लाल कपड़े मे बांध कर घर के पवित्र स्थान अर्थात भगवान के मंदिर अथवा तिजोरी में रखकर माँ महालक्ष्मी का ध्यान करते हुए अपने घर में अक्षुण्ण धनलक्ष्मी के वास की प्रार्थना करे। 
इस दिन शमी के कटे हुए पत्ते और डालियों की पूजा नहीं करनी चाहिए।रात्रि में देवी मां के मंदिर में जाकर दीपक जलाएं साथ ही पूरे घर में रोशनी रखें।नवरात्र में विजयादशमी के दिन शमी की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि का स्थाई वास होता है। शमी का पौधा जीवन से टोने-टोटके के दुष्प्रभाव व नकारात्मक प्रभाव को दूर करता है।इस दिन संध्या के समय शमी के वृक्ष के नीचे दीपक जलाने से युद्ध और मुक़दमो में विजय मिलती है शत्रुओं का भय समाप्त होता है। आरोग्य व धन की प्राप्ति होती है। शमी वृक्ष तेजस्विता एवं दृढता का प्रतीक भी माना गया है, जिसमें अग्नि तत्व की प्रचुरता होती है। घर में ईशान कोण (पूर्वोत्तर) में स्थित शमी का वृक्ष विशेष लाभकारी माना गया है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार रात्रि में देवी मां के मंदिर में जाकर दीपक जलाएं साथ ही पूरे घर में रोशनी रखें।नवरात्र में विजयादशमी के दिन शमी की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि का स्थाई वास होता है। शमी का पौधा जीवन से टोने-टोटके के दुष्प्रभाव व नकारात्मक प्रभाव को दूर करता है।इस दिन संध्या के समय शमी के वृक्ष के नीचे दीपक जलाने से युद्ध और मुक़दमो में विजय मिलती है शत्रुओं का भय समाप्त होता है। आरोग्य व धन की प्राप्ति होती है। शमी वृक्ष तेजस्विता एवं दृढता का प्रतीक भी माना गया है, जिसमें अग्नि तत्व की प्रचुरता होती है। इसी कारण यज्ञ में अगि्न प्रकट करने हेतु शमी की लकड़ी के उपकरण बनाए जाते हैं।घर में ईशान कोण (पूर्वोत्तर) में स्थित शमी का वृक्ष विशेष लाभकारी माना गया है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार ध्यान रखने योग्य बात यह है कि इस दिन शमी के कटे हुए पत्ते और डालियों की पूजा नहीं करनी चाहिए।
Pandit Anjani Kumar Dadhich
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माँ अपराजिता का पुजन

विजयदशमी और माँ अपराजिता का पुजन 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार नवरात्रि के पश्चात अश्विन मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजय का पर्व विजयादशमी मनाया जाता है। यह पर्व श्रीराम की रावण पर एवं माता दुर्गा की शुंभ-निशुंभ आदि असुरों पर विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला पर्व है।इस दिन भगवान श्रीराम,शस्त्रों व शमी के वृक्ष की पूजा करने का विधान है। 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार विजय दशमी के दिन "माता अपराजिता" का पूजन करना अत्यंत श्रेष्ठ माना गया है।माँ अपराजिता ही माता दुर्गा का ही अवतार हैं। रामायण की कथा के अनुसार भगवान श्री राम ने लंकापति रावण से युद्ध करने के लिए माता अपराजिता का पूजन करके ही प्रस्थान किया था। 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार माँ अपराजिता को "यात्रा की देवी" माना गया है। समस्त यात्राओं पर अपराजिता देवी का ही अधिकार ही माना गया है। 
शास्त्रो के अनुसार माँ अपराजिता का पूजन का दोपहर के तत्काल बाद करना चाहिए।इसलिए संध्या काल के समय माता अपराजिता की पूजा करना श्रेष्ठ माना जाता है। अपराजिता पूजा करने के लिए घर के पूर्वोत्तर दिशा में कोई स्थान चुन लें। पूजा का स्थान किसी बगीचे या मंदिर के आसपास भी हो सकती है। पूजा के स्थान को साफ करें  और चंदन के लेप के साथ अष्टदल चक्र बनाएं। पुष्प तथा अक्षत के साथ अपराजिता की पूजा का संकल्प लें।इसके बाद अपराजिता की दाहिनी ओर जया और बायीं ओर विजया शक्ति का आह्वाहन करना चाहिए। इसके बाद तीनों को प्रणाम करते हुए 'अपराजितायै नमः,जयायै नमः,विजयायै नमः’इस मंत्र का उच्चारण करते हुए उनकी षोडशोपचार के साथ पूजा करनी चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए- "हे देवी अपराजिता मैंने अपनी यथाशक्ति से आपकी पूजा की है जो मैंने अपनी रक्षा के लिये की है उसे स्वीकार कीजिए। हे माँ अपराजिता जिसने कण्ठहार पहन रखा है, जिसने चमकदार सोने की करधनी पहन रखी है जो अच्छा करने की इच्छा रखती है, मुझे विजय दे।" इसके पश्चात अपरिजिता स्त्रोत्र का पाठ करना चाहिए और इसके बाद देवी का विसर्जन करना चाहिए। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार विजयदशमी के दिन माँ अपराजिता के पूजन करने से वर्ष भर कार्य आसानी से निर्विघ्न संपन्न होते है और शत्रु परास्त होते है। 
Pandit Anjani Kumar Dadhich
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Friday, 16 October 2020

शारदीय नवरात्रि

शारदीय नवरात्रि 
पंडित अंजनी कुमार के अनुसार माँ देवी भगवती की व‍िशेष पूजा और अर्चना का पर्व शारदीय नवरात्रि 17 अक्‍टूबर 2020 अर्थात कल से शुरू हो रहा है। यह पर्व 25 अक्टूबर तक चलेगा। इन नौ दिनों में मां भगवती की भक्ति से पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाएगा।
पंडित अंजनी कुमार के अनुसार देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में इस त्‍योहार को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। कुछ लोग पूरी रात गरबा और आरती कर नवरात्र का व्रत रखते हैं तो वहीं कुछ लोग व्रत और उपवास रख मां दुर्गा और उनके नौ रूपों की पूजा-आराधना करते हैं। दरअसल नवरात्र अंत: शुद्धि का महानतम् त्‍योहार है।
पंडित अंजनी कुमार के अनुसार इस बार की शारदीय नवरात्रि अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है क्‍योंक‍ि इस बार पूरे 58 वर्षों के बाद शनि, मकर में और गुरु, धनु राशि में रहेंगे। इससे पहले यह योग वर्ष 1962 में बना था। 
देवी माँ दुर्गा का वाहन और उसका महत्व
पंडित अंजनी कुमार के अनुसार देवी दुर्गा का वाहन तो शेर होता है। लेक‍िन नवरात्र में मां पृथ्‍वी पर द‍िनों के अनुसार आती हैं। मान्‍यता है क‍ि देवी मां क‍िस वाहन से आ रही हैं इसका व‍िशेष महत्‍व होता है। देवीभागवत पुराण के अनुसार मां दुर्गा का आगमन आने वाले भविष्य की घटनाओं के बारे में संकेत देता है।ऐसा माना जाता है क‍ि नवरात्र की शुरुआत सोमवार या रविवार को होती है तो इस दौरान हाथी पर सवार होकर आती है। वहीं अगर शनिवार या फिर मंगलवार को नवरात्रि की शुरुआत होती है तो मां घोड़े पर सवार होकर आती हैं। गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्र का आरंभ होता है तो माता डोली में सवार होकर आती हैं। वहीं बुधवार के दिन मां नाव को अपनी सवारी बनाती हैं। तो इस बार नवरात्र की स्थापना 17 अक्‍टूबर 2020 के दिन शन‍िवार से हो रही हैं तो देवी मां इस बार घोड़े से आ रही हैं।कई धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार घोड़े को युद्ध का प्रतीक माना जाता है। घोड़े पर माता का आगमन शासन और सत्ता के लिए अशुभ माना गया है। इससे सरकार को विरोध का सामना करना पड़ता है।
पंडित अंजनी कुमार के अनुसार विजयदशमी 25 अक्टूबर 2020 रविवार के दिन है।रविवार के दिन विजयादशमी होने पर माता हाथी पर सवार होकर वापस कैलाश की ओर प्रस्थान करेगी । माता की विदाई हाथी पर होने से आने वाले वर्ष में खूब वर्षा होगी और इससे अन्न का उत्‍पादन अच्‍छा होता है।
पंडित अंजनी कुमार के अनुसार नवरात्रि की शुरुआत घट स्थापना के साथ ही होती है। हम घट स्थापना कर शक्ति की देवी तथा समस्त देवी शक्तियो का आह्वान करते है। 
नवरात्रि के पहले दिन यानी कि प्रतिपदा को सुबह स्नान कर लें। उसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद एक चौकी (पाटा) पर लाल वस्त्र बिछा कर मां दुर्गा और गणेश जी की मुर्ति या तस्वीर रखे। सबसे पहले गणेश जी और फिर मां दुर्गा का नाम लें।पंडित अंजनी कुमार के अनुसार कलश स्थापना के लिए एक तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं। लोटे के ऊपरी हिस्सेे में मौली बांधें।
अब इस लोटे में पानी भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं। फिर उसमें सवा रुपया, दूब, सुपारी, इत्र और अक्षत डालें। इसके बाद कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते लगाएं।अब एक नारियल को मौली से बांध दें। फिर नारियल को कलश के ऊपर रख दें।अब इस कलश को धान की ढेरी बनाकर उस पर रख दे। 
अब मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं। 
कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि के नौ व्रतों को रखने का संकल्प लिया जाता है।
आप चाहें तो कलश स्थापना के साथ ही माता के नाम की अखंड ज्योति भी जला सकते हैं। अपने कष्ट निवारण या मनोवांछित वर पाने के लिए दुर्गा सप्तशती,अर्गला स्त्रोत्र, किलक स्त्रोत्र, दुर्गा चालीसा, दुर्गा कवच आदि का पाठ कर सकते हैं या दुर्गा माता के नाम की माला का जाप कर सकते हैं। 
 पंडित अंजनी कुमार के अनुसार कलश स्थापना महुर्त निम्नलिखित है-
प्रातःकाल 8:12 से 9:37 तक
दोपहर 12:00से 12:46 तक अभिजित महुर्त। 
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Saturday, 10 October 2020

श्री दुर्गा सप्तशती और नवरात्र

श्री दुर्गा सप्तशती और नवरात्र
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार नवरात्रि के पावन पर्व के दौरान श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ करना लाभदायक माना जाता है। महर्षि मारकंडेय द्वारा रचित श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा एवं उसका प्रभाव खत्म हो जाता है साथ ही मां के आशीर्वाद स्वरुप धन धान्य की वर्षों होती है और आरोग्यता के साथ रिद्धि सिद्धि की भी प्राप्ति होती है।            पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार नवरात्रि में मां की मूर्ति या तस्वीर को प्रतिष्ठित कर नौ दिनों तक पुजन करना चाहिए। इसके पश्चात नौ कुवांरी कन्याओं को भोजन करवाने से हमें नवरात्रि का शुभ फल मिलता है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार नवरात्रि में माँ की पुजा करने की विधि निम्नलिखित है-
नवरात्र पूजा विधि
सर्वप्रथम देवी भगवती की मूर्ति या तस्वीर को एक चौखट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर प्रतिष्ठापित करें। और कलश स्थापना करें। दीप प्रज्ज्जवलन करें(अखंड ज्योति जलाएं यदि आप जलाते हों या जलाना चाहते हों। ) माँ को नैवेद्य, पुष्प, पुष्पमाला अर्पित करते हुए षोडशोपचार विधि से पुजा करे। माँ भगवती और गणपति, शंकर जी, भगवान विष्णु, हनुमान जी और नवग्रह आदि का ध्यान करे और माता की आरती करे। इसके पश्चात उसके बाद माँ भगवती गणपति, शंकर जी, भगवान विष्णु, हनुमान जी नवग्रह और अपने गुरू का ध्यान करते हुए श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ करने के लिए संकल्प लेकर पाठ आरंभ करे। 
पाठ विधि
संकल्प- श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले भगवान गणपति, शंकर जी का ध्यान करिए। उसके बाद हाथ में जौ, चावल और दक्षिणा रखकर देवी भगवती का ध्यान करिए और संकल्प लीजिए...हे भगवती मैं.....( अमुक नाम)....सपरिवार...( अपने परिवार के नाम ले लीजिए...)...गोत्र.( अमुक गोत्र)....स्थान ( जहां रह रहे हैं)... पूरी निष्ठा, समर्पण और भक्ति के साथ आपका ध्यान कर रहा हूं। हे भगवती आप हमारे घर में आगमन करिए और हमारी इस मनोकामना... ( मनोकामना बोलें लेकिन मन ही मन) को पूरा करिए। श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ, जप ( माला का उतना ही संकल्प करें जितनी नौ दिन कर सकें) और यज्ञादि को मेरे स्वीकार करिए। इसके बाद धूप, दीप, नैवेज्ञ के साथ भगवती की पूजा प्रारम्भ करें।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ करने का अलग विधान है। कुछ अध्यायों में उच्च स्वर, कुछ में मंद और कुछ में शांत मुद्रा में बैठकर पाठ करना श्रेष्ठ माना गया है। जैसे कीलक मंत्र को शांत मुद्रा में बैठकर मानसिक पाठ करना श्रेष्ठ है। देवी कवच उच्च स्वर में और श्रीअर्गला स्तोत्र का प्रारम्भ उच्च स्वर और समापन शांत मुद्रा से करना चाहिए। देवी भगवती के कुछ मंत्र यंत्र, मंत्र और तंत्र क्रिया के हैं। संपूर्ण दुर्गा सप्तशती स्वर विज्ञान का एक हिस्सा है।
वाकार विधि: - प्रथम दिन एक पाठ प्रथम अध्याय, दूसरे दिन दो पाठ द्वितीय, तृतीय अध्याय, तीसरे दिन एक पाठ चतुर्थ अध्याय, चौथे दिन चार पाठ पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय, पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ नवम, दशम अध्याय, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती है। 
संपुट पाठ विधि: - किसी विशेष प्रयोजन हेतु विशेष मंत्र से एक बार ऊपर तथा एक नीचे बांधना उदाहरण हेतु संपुट मंत्र मूलमंत्र-1, संपुट मंत्र फिर मूलमंत्र अंत में पुनः संपुट मंत्र आदि इस विधि में समय अधिक लगता है। लेकिन यह अतिफलदायी है। अच्छा यह होगा कि आप संपुट के रूप में अर्गला स्तोत्र का कोई मंत्र ले लीजिए। 
अथवा
कोई बीज मंत्र जैसे ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं दुर्गायै नम: ले लें या ऊं दुर्गायै नम: से भी पाठ कर सकते हैं। 
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