पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार नवरात्रि के पावन पर्व के दौरान श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ करना लाभदायक माना जाता है। महर्षि मारकंडेय द्वारा रचित श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा एवं उसका प्रभाव खत्म हो जाता है साथ ही मां के आशीर्वाद स्वरुप धन धान्य की वर्षों होती है और आरोग्यता के साथ रिद्धि सिद्धि की भी प्राप्ति होती है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार नवरात्रि में मां की मूर्ति या तस्वीर को प्रतिष्ठित कर नौ दिनों तक पुजन करना चाहिए। इसके पश्चात नौ कुवांरी कन्याओं को भोजन करवाने से हमें नवरात्रि का शुभ फल मिलता है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार नवरात्रि में माँ की पुजा करने की विधि निम्नलिखित है-
नवरात्र पूजा विधि
सर्वप्रथम देवी भगवती की मूर्ति या तस्वीर को एक चौखट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर प्रतिष्ठापित करें। और कलश स्थापना करें। दीप प्रज्ज्जवलन करें(अखंड ज्योति जलाएं यदि आप जलाते हों या जलाना चाहते हों। ) माँ को नैवेद्य, पुष्प, पुष्पमाला अर्पित करते हुए षोडशोपचार विधि से पुजा करे। माँ भगवती और गणपति, शंकर जी, भगवान विष्णु, हनुमान जी और नवग्रह आदि का ध्यान करे और माता की आरती करे। इसके पश्चात उसके बाद माँ भगवती गणपति, शंकर जी, भगवान विष्णु, हनुमान जी नवग्रह और अपने गुरू का ध्यान करते हुए श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ करने के लिए संकल्प लेकर पाठ आरंभ करे।
पाठ विधि
संकल्प- श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले भगवान गणपति, शंकर जी का ध्यान करिए। उसके बाद हाथ में जौ, चावल और दक्षिणा रखकर देवी भगवती का ध्यान करिए और संकल्प लीजिए...हे भगवती मैं.....( अमुक नाम)....सपरिवार...( अपने परिवार के नाम ले लीजिए...)...गोत्र.( अमुक गोत्र)....स्थान ( जहां रह रहे हैं)... पूरी निष्ठा, समर्पण और भक्ति के साथ आपका ध्यान कर रहा हूं। हे भगवती आप हमारे घर में आगमन करिए और हमारी इस मनोकामना... ( मनोकामना बोलें लेकिन मन ही मन) को पूरा करिए। श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ, जप ( माला का उतना ही संकल्प करें जितनी नौ दिन कर सकें) और यज्ञादि को मेरे स्वीकार करिए। इसके बाद धूप, दीप, नैवेज्ञ के साथ भगवती की पूजा प्रारम्भ करें।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ करने का अलग विधान है। कुछ अध्यायों में उच्च स्वर, कुछ में मंद और कुछ में शांत मुद्रा में बैठकर पाठ करना श्रेष्ठ माना गया है। जैसे कीलक मंत्र को शांत मुद्रा में बैठकर मानसिक पाठ करना श्रेष्ठ है। देवी कवच उच्च स्वर में और श्रीअर्गला स्तोत्र का प्रारम्भ उच्च स्वर और समापन शांत मुद्रा से करना चाहिए। देवी भगवती के कुछ मंत्र यंत्र, मंत्र और तंत्र क्रिया के हैं। संपूर्ण दुर्गा सप्तशती स्वर विज्ञान का एक हिस्सा है।
वाकार विधि: - प्रथम दिन एक पाठ प्रथम अध्याय, दूसरे दिन दो पाठ द्वितीय, तृतीय अध्याय, तीसरे दिन एक पाठ चतुर्थ अध्याय, चौथे दिन चार पाठ पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय, पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ नवम, दशम अध्याय, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती है।
संपुट पाठ विधि: - किसी विशेष प्रयोजन हेतु विशेष मंत्र से एक बार ऊपर तथा एक नीचे बांधना उदाहरण हेतु संपुट मंत्र मूलमंत्र-1, संपुट मंत्र फिर मूलमंत्र अंत में पुनः संपुट मंत्र आदि इस विधि में समय अधिक लगता है। लेकिन यह अतिफलदायी है। अच्छा यह होगा कि आप संपुट के रूप में अर्गला स्तोत्र का कोई मंत्र ले लीजिए।
अथवा
कोई बीज मंत्र जैसे ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं दुर्गायै नम: ले लें या ऊं दुर्गायै नम: से भी पाठ कर सकते हैं।
Pandit Anjani Kumar Dadhich
Nakshatra jyotish Hub
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