google24482cba33272f17.html Pandit Anjani Kumar Dadhich : September 2024

Monday, 23 September 2024

नवरात्रि

नवरात्रि पर्व 
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज इस लेख में "नवरात्रि पर्व" के बारे में जानकारी दे रहा हूं।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार शारदीय नवरात्र आदि शक्ति मां दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित है। इस नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। श्राद्ध के आखिरी दिन शाम से नवरात्र की तैयारियां शुरू होने लगती हैं। इस बार अंतिम श्राद्ध या सर्वपितृ अमावस्या 2 अक्टूबर 2024 को है। इसके बाद प्रतिपदा 3 अक्टूबर 2024 से नवरात्रि का पर्व शुरू हो जाएगा। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। इसके बाद अष्टमी और नवमी को कन्या पूजन कर अगले दिन दशहरा पर्व मनाया जाएगा। नवरात्र में मां के आगमन पर और प्रस्थान पर विचार किया जाता है। मां का आगमन और प्रस्थान उनके आने के दिन पर निर्भर करता है। इस बार नवरात्रि का पर्व 3 अक्टूबर को शुरू हो रहा है। 3 अक्टूबर 2024 को गुरुवार है और माता का आगमन पालकी में हो रहा है। देवी पुराण के अनुसार पालकी की सवारी को शुभ माना गया गया है। हालांकि पालकी की सवारी को आंशिक महामारी का कारण भी माना गया है। इस वर्ष मां भगवती चरणायुध यानी बड़े पंजे वाले मुर्गे पर सवार होकर जा रही हैं जिसका राष्ट्र पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 
Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच [पुरोहित कर्म (यज्ञ-हवन - पुजा-अनुष्ठान) विशेषज्ञ, वैदिक ज्योतिषी, अंक ज्योतिषी एवं वास्तुविद ]
Nakshatra Jyotish Sansthaan
नक्षत्र ज्योतिष संस्थान
panditanjanikumardadhich@gmail.com
सम्पर्क सूत्र - 06377054504

Sunday, 15 September 2024

वामन जन्मोत्सव (जयंती)

वामन जन्मोत्सव (जयंती)
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिंदू धर्म में वामन जन्मोत्सव या वामन जयंती का बहुत महत्व है। वामन जन्मोत्सव प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णुजी के वामन अवतार की पूजा की जाती है।
श्रीमद् भागवत गीता के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को अभिजीत मुहूर्त में श्रवण नक्षत्र में माता अदिति व कश्यप ऋषि के यहां वामन भगवान का जन्म हुआ था। वैदिक पंचांग के अनुसार इस साल 15 सितंबर 2024, रविवार यानी आज के दिन वामन जन्मोत्सव या वामन जयंती मनाई जाएगी।आज के दिन सुकर्मा योग और श्रवण नक्षत्र भी है। इसीलिए आज के दिन का महत्व और भी अधिक हो जाता हैं। भगवान विष्णु ने असुरराज बलि का घमंड तोड़ने और भक्ति की जीत के लिए वामन रूप धारण किया था और उन्होंने तीन पग भूमि मांगकर पूरे ब्रह्मांड को माप दिया था जिससे राजा बलि का अहंकार नष्ट हुआ था।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भगवान विष्णुजी के वामन अवतार की पूजा-आराधना बेहद शुभ फलदायी है। इस दिन व्रत और भगवान के वामन अवतार का पूजन के कार्यों से व्यक्ति के सभी दुख-पाप नष्ट होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। यह पावन पर्व वामन भगवान की पूजा-आराधना के साथ आध्यात्मिक उन्नति और धर्म की रक्षा का प्रतीक माना जाता है। इस दिन भगवान वामन की पूजा करने से भक्त मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं और अपने पिछले जन्म के सभी पापों और कष्टों से छुटकारा पा सकते हैं। इसके अलावा भगवान विष्णु उन्हें सभी सांसारिक सुखों और खुशियों का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
भगवान वामन देव की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त अभिजित मुहूर्त रहेगा।
वामन जन्मोत्सव पर भगवान वामन की पुजा करने की विधि निम्नलिखित है -
वामन जन्मोत्सव या जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर शुद्ध स्नान के बाद भगवान विष्णु के अवतार भगवान वामनदेव की पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
घर के मंदिर में भगवान विष्णुजी के वामन स्वरूप की प्रतिमा या भगवान विष्णु की प्रतिमा को एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें।
भगवान वामन को पंचामृत से स्नान कराने के बाद उन्हें रोली, मौली, तुलसी, पीले फूल, नैवेद्य के साथ मख्खन और मिश्री का भोग अर्पित करें। 
पूजा के बाद विष्णु सहस्त्रनाम, वामन स्त्रोत और ओम् भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का 108 बार जाप करें।
भगवान विष्णु के अवतार वामन देव की कथा श्रवण करना चाहिए। कथा श्रवण के बाद वामनदेव की आरती करने के साथ पूजा को समाप्त करें।
इस दिन व्रत करने वालों को दान-पुण्य भी करना चाहिए।
Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच [पुरोहित कर्म (यज्ञ-हवन - पुजा-अनुष्ठान) विशेषज्ञ, वैदिक ज्योतिषी, अंक ज्योतिषी एवं वास्तुविद ]
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Wednesday, 11 September 2024

परिवर्तनी एकादशी

परिवर्तनी एकादशी व्रत 

पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार सनातन धर्म संस्कृति में एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है। हर महीने दो एकादशी (एक कृष्ण पक्ष में दूसरी शुक्ल पक्ष में) व्रत आते है। 14 सितंबर 2024, शनिवार को परिवर्तिनी एकादशी व्रत रखा जाएगा। परिवर्तिनी एकादशी को जलझूलनी एकादशी या पार्श्व एकादशी भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से करवट लेते हैं।

परिवर्तनी एकादशी व्रत का फल-  

परिवर्तिनी एकादशी व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा से आर्थिक कष्ट दूर होते हैं। धन-धान्य में वृद्धि होती है और जीवन में खुशहाली आती है। इस दिन शाम को तुलसी के पौधे का पुजन करते समय ओम् नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का 108 बार जाप करें।भगवान विष्णु का दक्षिणावर्ती शंख से दुग्धाभिषेक करे उसके बाद षोडशोपचार पूजन विधि से पूजन कर विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र या गीता के निम्नलिखित श्लोको का पाठ करना चाहिए।

गीताजीके नित्य-पठनीय पाँच श्लोक 

वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् ।

देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।

अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतनामीश्वरोऽपि सन् ।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया।।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः ।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।।

वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः।।

वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् ।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।

कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।

लेखक परिचय- Pandit Anjani Kumar Dadhich

पंडित अंजनी कुमार दाधीच [पुरोहित कर्म (यज्ञ-हवन - पुजा-अनुष्ठान) विशेषज्ञ, वैदिक ज्योतिषी, अंक ज्योतिषी एवं वास्तुविद ]

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Tuesday, 10 September 2024

ज्येष्ठा गौरी पुजा महापर्व

ज्येष्ठा गौरी (महालक्ष्मी) पुजा महापर्व
प्रिय मित्रों 
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज इस लेख में ज्येष्ठा गौरी पुजा महापर्व के बारे में जानकारी दे रहा हूं।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिन्दू धर्म के त्यौहारों में से एक ज्येष्ठा गौरी (महालक्ष्मी) पुजा महापर्व है जो महाराष्ट्र के मुख्य पर्वों में से एक है। जो हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद में महालक्ष्मी का तीन-दिवसीय पुजन किया जाता है उसे ज्येष्ठा गौरी व्रत भी कहते हैं। मराठी महिलाएं यह व्रत अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए करती है। विशेषतया यह त्यौहार गणेश चतुर्थी के दौरान मनाया जाता है और ज्येष्ठा गौरी आवाहन से शुरू होकर तीन दिनों तक मनाया जाता है । मार्गशीर्ष माह के सभी गुरुवारों को भी महालक्ष्मी का व्रत रखा जाता है। दोनों ही व्रतों को रखने की तिथि और परंपरा अलग-अलग है। तीन दिनों तक मनाई जाने वाली इस ज्येष्ठा गौरी पूजा में भाद्रपद शुक्ल पक्ष में अनुराधा नक्षत्र में माता महालक्ष्मी का आगमन होता है ज्येष्ठा नक्षत्र में पूजा और भोग होता है एवं मूल नक्षत्र में उनका विसर्जन होता है। इस बार अनुराधा नक्षत्र 10 सितंबर 2024 को रहेगा। इस दिन ज्येष्ठा गौरी का आगमन, आवाहन और स्थापना की जाती है।
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष के अनुराधा नक्षत्र में भारतीय पुजन पद्धति के अनुसार ज्येष्ठा गौरी( महालक्ष्मी देवी) की प्रतिमा या प्रतीक को स्थापित किया जाता हैं। ज्येष्ठा नक्षत्र में महालक्ष्मी का पूजन कर महानैवेद्य का भोग लगाया जाता है। तीसरे दिन मूल नक्षत्र में महालक्ष्मी का विसर्जन किया जाता है। ज्येष्ठा गौरी को महालक्ष्मी माना जाता है और चूँकि उनकी पूजा ज्येष्ठा नक्षत्र में की जाती है इसलिए उन्हें ज्येष्ठा गौरी कहा जाता है।
यह व्रत धन और समृद्धि की देवी महालक्ष्मी को प्रसन्न करने तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इससे घर में सुख, शांति के साथ ही समृद्धि बनी रहती है। महाराष्ट्रीयन परिवारों में भाद्रपद माह में महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए ज्येष्‍ठा गौरी की पूजा करती हैं।
 1. पहला दिन आगम : पहले दिन मां महालक्ष्मी का आह्वान करते हैं जब उनका आगमन होता है और उन्हें विराजमान करके उनकी पूजा करते हैं। इस बार 10 सितंबर 2024 मंगलवार को आगमन रहेगा। इस दिन व्रत रखते हैं।
 2. दूसरा दिन भोग : इस दिन मां महा लक्ष्मी को सभी तरह के भोग लगाएं जाते हैं और उत्सव मनाया जाता है। इस बार मुख्य पूजा और महानैवद्य 11 सितंबर 2024 बुधवार को रहेगा। 
3. तीसरा दिन विसर्जन : इस दिन माता लक्ष्मी की विदाई होती हैं यानी विसर्जन‍ किया जाता है। 12 सितंबर 2024 गुरुवार को विसर्जन होगा।
 4. 16 दिनी व्रत : कुछ परिवारों में महालक्ष्मी व्रत निरन्तर सोलह दिनों तक मनाया जाता है। इस बार 10 सितंबर से 24 सितंबर मंगलवार तक यह व्रत चलेगा। 
 ज्येष्ठा गौरी स्थापना के शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ गौरी आगमन:10 सितम्बर मंगलवार 2024 को
ज्येष्ठ गौरी आवाहन एवं स्थापना: सुबह 06:25 से शाम 06:45 के बीच।
अभिजीत मुहूर्त में आवाहन एवं स्थापना: दोपहर 12:10 से 01:00 के बीच।
अनुराधा नक्षत्र प्रारम्भ - 09 सितम्बर 2024 को शाम 06:04 बजे से।
अनुराधा नक्षत्र समाप्त - 10 सितम्बर 2024 को रात्रि 08:04 बजे तक रहेगा।
उपरोक्त समय में ज्येष्ठा गौरी(महालक्ष्मी) को विराजमान कर सकते हैं।
 ज्येष्ठा गौरी पूजा और भोग 11 सितंबर बुधवार 2024 को होगा।
11 सितंबर 2024 की पूजा का शुभ मुहूर्त:-
ब्रह्म मुहूर्त- प्रात: 04:32 से 05:18 तक।
प्रातः सन्ध्या- प्रात: 04:55 से 06:04 तक।
अमृत काल- दोपहर 12:05 से 01:46 तक। 
विजय मुहूर्त- दोपहर 02:22 से 03:12 तक।
गोधूलि मुहूर्त- शाम 06:31 से 06:54 तक।
सायाह्न सन्ध्या- शाम 06:31 से 07:40 तक।
ज्येष्ठा गौरी विसर्जन 12 सितंबर बृहस्पतिवार को होगा।
लेखक परिचय- Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच [पुरोहित कर्म (यज्ञ-हवन - पुजा-अनुष्ठान) विशेषज्ञ, वैदिक ज्योतिषी, अंक ज्योतिषी एवं वास्तुविद ]
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Sunday, 8 September 2024

ऋषि पंचमी

ऋषि पंचमी 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिन्दू धर्म शास्त्रों में ऋषि मुनियों को समर्पित ऋषिपंचमी का त्यौहार भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। यह त्यौहार गणेश चतुर्थी के अगले दिन होता है। इस त्यौहार में सप्त ऋषियों के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त किया जाता है। पंचांग के अनुसार इस वर्ष ऋषि पंचमी का पर्व 08 सितंबर 2024 रविवार को सप्त ऋषियों की पूजा के साथ मनाया जाएगा। इस दिन सप्त ऋषियों - कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ, गौतम, जमदग्नि, और विश्वामित्र की पूजा की जाती है। इनके अलावा देवी अरुंधती की पुजा की जाती है। वैदिक शास्त्रों में इन सभी सात ऋषि ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अंश माना जाता हैं और साथ ही इनको ही वेदों और धर्मशास्त्रों के रचयिता माने जाते हैं। ऋषिपंचमी का व्रत को करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति आती है। ऋषि पंचमी के व्रत को विशेषकर महिलाओं के द्वारा अपने पति के प्रति विश्वास, प्रेम तथा दीर्घायु होने की कामना पूर्ति हेतु और मासिक धर्म के दौरान अनजाने में हुए पापों से मुक्ति के लिए किया जाता है। विशेषकर महिलाये मासिक धर्म के बंद होने पर यह व्रत करने की परंपरा है। इस व्रत को करने वाली महिलाओं को कुशा से सप्त ऋषि बनाकर उनका षोडशोपचार पूजन विधि से पूजन करना चाहिए और सप्तऋषि पूजन में चढ़ाए सभी वस्तुओं को किसी जनेऊधारी ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार इस व्रत को करने के लिए कुछ कठिन नियम है जिनका पालन करना आवश्यक है जो कि निम्नलिखित है - 
✿ कोई भी महिला यह व्रत करना आरम्भ करे तो लगातार पुरे सात वर्ष तक करना चाहिए। यदि कोई भी शारीरिक अस्वस्थता या तकलीफ हो तब यह व्रत बीच में छोड़ सकते है।
✿ इस व्रत को करने वाली महिलाओं को पवित्र मन से और ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए व्रत करना चाहिए। इस व्रत कोअ करने वाली महिलाओं को शारीरिक संबंध स्थापित नहीं करना चाहिए।
✿ इस व्रत को करने वाली महिलाओं को बिना नमक का फलाहार रुपी भोजन करना होता है। 
✿ इस व्रत को करने वाली महिलाओं को प्रचलित धार्मिक रीति रिवाजों के अनुसार भोजन में दूध, दही, आलू की सेवई, फल, और भाप या उबाली हुई गाजर,आलू जैसी सब्जियां आदि भोजन रुप में लेने का नियम है।
✿ इस व्रत को करने वाली महिलाओं को हल से जोते हुए खेत का अन्य धान्य भोजन रुप में खाना वर्जित है।
✿ इस व्रत करने वाली महिलाओं को दिन में निराहार रहकर या परिस्थिति वस केवल एक बार भोजन करना होता है।
जो महिलाएं ऋषि पंचमी का व्रत रखती है उन्हें अगले दिन ✿ सूर्योदय के बाद ही पारण करके व्रत को समाप्त करना चाहिए क्योंकि बिना पारण के ऋषि पंचमी का व्रत अधूरा माना जाता है।
✿ इस व्रत को करने वाली महिलाओं को झुठ नहीं बोलना चाहिए।
✿ इस व्रत को करने वाली महिलाओं को क्रोध नहीं करना चाहिए।
✿ इस व्रत को करने वाली महिलाओं को किसी को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए।
✿ इस व्रत को करने वाली महिलाओं को किसी का अपमान या किसी पर नकारात्मक कटाक्ष नहीं करना चाहिए।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार ऋषि पंचमी को सप्त ऋषियों की पुजा विधि निम्नलिखित है -
🔅ऋषि पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाएं।
🔅घर व मंदिर की अच्छे से साफ-सफाई करें और पूजा स्थान पर एक चौकी रखें।
🔅सभी पूजा सामग्री जैसे धूप, दीप, फल, फूल, घी, पंचामृत आदि एकत्रित कर लें।
🔅चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाने के बाद सप्तऋषि की तस्वीर या कुशा से सप्त ऋषि बनाकर स्थापित करें और कलश में गंगाजल भरकर रख लें। यदि आप चाहें तो अपने गुरु की तस्वीर भी स्थापित कर सकते हैं।
🔅कलश से जल लेकर सप्तऋषियों को अर्ध्य दें और धूप-दीप दिखाएं।
🔅 अब उनका ( सप्तऋषियों का) रोली, मोली, अक्षत, पुष्पमाला, जनेऊ, फल-फूल और नैवेद्य आदि अर्पित करते हुए षोडशोपचार विधि से पूजन करें।
🔅सप्तऋषियों के मंत्र 
कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहंतु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः॥
या "ओम् सप्तऋषये नमः” मंत्र का कम से कम 11, 21, 51,108 बार जाप करें और अंत में अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करते हुए सप्तऋषियों से आशीर्वाद लें।
🔅पूजा के अंत में सभी लोगों में प्रसाद वितरित कर बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद अवश्य लें।
लेखक परिचय- पंडित अंजनी कुमार दाधीच 
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