वैवाहिक जीवन के कष्टों का निवारण - सीता अष्टमी व्रत
प्रिय पाठकों,
03 मार्च 2021,बुधवार
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज वैवाहिक जीवन के कष्टों का निवारण - सीता अष्टमी व्रत के बारे में यहाँ जानकारी दे रहा हूँ।
पंडित अंजनी कुमार के अनुसार सिंधु पुराण में माता सीता के जन्म के बारे में वर्णन एक पद के द्वारा बताया गया है- "फाल्गुनस्य च मासस्य कृष्णाष्टम्यां महीपते।
जाता दाशरथे: पत्नी तस्मिन्नहनि जानकी॥"
अर्थात फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन प्रभु श्रीराम की पत्नी जनकनंदिनी माता सीता प्रकट हुई थीं। इसीलिए इस तिथि को सीता अष्टमी के नाम से जाना जाता है और हर साल सीता जयंती या जानकी जयंती मनाई जाती है। इस साल सीता जयंती 6 मार्च 2021रविवार के दिन को आ रही है। रामायण की कथा के मुताबिक माता सीता महाशक्ति स्वरूपा माता लक्ष्मी का अवतार थी जो जनकपुरी के महाराज जनक को हल जोतते हुए पृथ्वी से पुत्री रुप में प्राप्त हुई। माता सीता का विवाह मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के साथ हुआ था। माता सीता एक आदर्श पत्नी मानी जाती है। विवाह के पश्चात उन्होंने अपने आप को राजा दशरथ की संस्कारी बहू के रुप में स्थापित करते हुए एक आदर्श पत्नी की तरह वनवास के दौरान प्रभु श्रीराम के कर्तव्यों का पूरी तरह पालन किया। अपने दोनों पुत्रों लव-कुश को वाल्मीकि के आश्रम में अच्छे संस्कार देकर उन्हें तेजस्वी बनाया। और आखिर में उन्हें अपने सम्मान की रक्षा के लिए धरती में ही समाना पड़ा। माता सीता को भगवान श्रीराम की श्री शक्ति भी माना गया है।
लोक मान्यताओं के अनुसार सीता अष्टमी का व्रत सुहागिन स्त्रियों और शादी योग्य युवतियों के लिए खास होता है। इस खास दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती है और वैवाहिक जीवन से जुड़े सभी कष्टों का नाश होकर उनसे मुक्ति मिलती है। सीता अष्टमी के इस व्रत को करने से सुहागिन स्त्रियों को समस्त तीर्थों के दर्शन करने जितना फल भी प्राप्त होता है और शादी योग्य युवतियां भी यह व्रत माता सीता की तरह एक आदर्श पत्नी बनने की कामना से करती है।
यह व्रत एक आदर्श पत्नी और शादी योग्य युवतियां माता सीता जैसे गुण हमें भी प्राप्त हो इसी भाव के साथ रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन में आ रही परेशानियां खत्म होती हैं और सुखद दांपत्य जीवन की भी प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं जिन लड़कियों को शादी में बाधा आ रही हो वो भी इस व्रत को रखने से विवाह की बाधाएं दूर होती हैं और मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।
सीता अष्टमी के व्रत और माता सीता की पुजा की विधि निम्नलिखित हैं -
सीता अष्टमी के दिन प्रातः स्नान आदि से निवृत होकर माता सीता और भगवान श्रीराम की मूर्ति या फोटो को प्रणाम कर उनके समक्ष व्रत का संकल्प करें।
संकल्प के बाद सबसे पहले भगवान गणेश और माता अंबिका(पार्वती)की पूजा करें और उसके बाद माता सीता और भगवान श्रीराम की पूजा करें।
माता सीता के समक्ष पीले फूल, पीले वस्त्र और और सोलह श्रृंगार का सामान समर्पित करें।
माता सीता को भोग में पीली चीजें अर्पित करें और विधिपूर्वक पूजा के बाद माता सीता की आरती करें।
आरती के बाद "श्री जानकी रामाभ्यां नमः" मंत्र का 108 बार (1 माला का) जाप करें।
दूध-गुड़ से बने व्यंजन बनाएं और दान करें और शाम को पूजा करने के बाद इसी व्यंजन से व्रत खोलें।
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