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Tuesday, 16 June 2020

हत्या एवं आत्महत्या के कारण

हत्या एवं आत्महत्या के कारण
प्रिय पाठकों, 
22 दिसंबर 2020,मंगलवार
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज हत्या एवं आत्महत्या के कारणो के बारे में यहाँ कुछ जानकारी दे रहा हूँ।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार व्यक्ति के जन्म के समय के ग्रह योग मानव के जन्म-मृत्यु का निर्धारण करते हैं। शरीर के संवेदनशील अंग मन का स्वामी चंद्रमा होता है। चंद्र अगर शनि,मंगल, राहु-केतु आदि ग्रहों के प्रभाव में हो तो मन व्यग्रता का अनुभव करता है। दूषित ग्रहों के प्रभाव में आने से मन में कृतघ्नता के भाव अंकुरित होते हैं और पाप की प्रवत्ति पैदा होती है और मनुष्य अपराध,आत्महत्या, हिंसक कर्म आदि की ओर उन्मुख हो जाता है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार चंद्र की कलाओं में अस्थिरता के कारण आत्महत्या की घटनाएं अक्सर एकादशी,अमावस्या तथा पूर्णिमा के आस-पास होती हैं। मनुष्य के शरीर में शारीरिक और मानसिक बल कार्य करते हैं। मनोबल की कमी के कारण मनुष्य का विवेक काम करना बंद कर देता है और अवसाद में हार कर वह आत्महत्या जैसा पाप कर बैठता है। आत्महत्या करने वालों में से 60 प्रतिशत से अधिक लोग अवसाद या किसी न किसी मानसिक रोग से ग्रस्त होते हैं। 
❁यदि व्यक्ति का मन अर्थात चंद्रमा कमजोर है तो उसको मानसिक समस्याएं रह सकती हैं। ऐसा व्यक्ति मानसिक तौर पर बहुत कमजोर होता है तथा अत्यंत भावुक होता है। ऐसे में जरा जरा सी परेशानी उसके लिए बड़ी समस्या बनकर सामने आती हैं और उन से डर कर वह जल्दी ही डिप्रेशन (अवसाद) में आ सकता है और आत्महत्या की ओर प्रवृत्त हो सकता है। कुंडली में चंद्रमा और राहु का प्रभाव होने पर व्यक्ति मानसिक रूप से अत्यधिक कमजोर होता है और यदि यह संयोग अष्टम भाव में हो और  इन ग्रहों पर अन्य पापी ग्रहों का प्रभाव भी हो तो व्यक्ति इस दिशा में आगे बढ़ सकता है।
❁पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार बुध ग्रह को बुद्धि का कारक माना जाता है और यह व्यक्ति की निर्णय लेने की क्षमता को बताता है। ऐसे में बुध की स्थिति कुंडली में अनुकूल होना अत्यंत आवश्यक है। यदि बुध की स्थिति कुंडली में अत्यधिक प्रतिकूल है या बुध बहुत हद तक पीड़ित अवस्था में मौजूद है तो व्यक्ति के निर्णय लेने की क्षमता अधिक प्रभावित होने के कारण वह आत्महत्या जैसे कार्य करने का भी निर्णय ले सकता है।अष्टम भाव में बुध ग्रह की अन्य पापी ग्रहों के साथ युति होने पर भी ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हो सकती है। 
❁पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार मुख्य रूप से सूर्य का आत्महत्या से कोई संबंध नहीं होता लेकिन कुंडली में यदि सूर्य की स्थिति कमजोर हो तो व्यक्ति के अंतर्मन में कमजोरी होती है अर्थात व्यक्ति का आत्मबल काफी कम होता है। यही आत्मबल व्यक्ति को प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ने में सक्षम बनाता है। सूर्य का पीड़ित या कमजोर होना आत्मबल की कमी के कारण व्यक्ति को परिस्थितियों के आगे हार मानने पर मजबूर कर देता है। सूर्य पर अत्यंत पाप प्रभाव होने से व्यक्ति के मान सम्मान की बार-बार हानि होती है और यह भी उसको अंदर तक तोड़ कर रख देती है, जिसकी वजह से वह आत्महत्या की ओर प्रवृत्त हो सकता है। 
❁शनि को दुख का कारक माना जाता है। यदि कुंडली में शनि अच्छी स्थिति में न हो तो व्यक्ति दुखी रह सकता है और अत्यधिक दुखी रहना उसके अंदर अवसाद को जन्म देता है। इसके अतिरिक्त अनुकूल शनि व्यक्ति को आशावादी बनाता है और व्यक्ति किसी भी परिस्थिति का डटकर सामना करने के लिए तैयार रहता है क्योंकि उसके अंदर अच्छा होने की आशा बनी रहती है। ❁वास्तव में मंगल और राहु ऐसे ग्रह हैं जो व्यक्ति को किसी भी दुस्साहस तक ले जा सकते हैं। यही वजह है कि इन दोनों ग्रहों का राहु और मंगल के साथ होना उन ग्रहों को अधिक पीड़ित कर सकता है। जिससे व्यक्ति दुस्साहसी होकर तथा अत्यंत अवसाद ग्रस्त होकर आत्महत्या की प्रवृत्ति अपने अंतर्मन में महसूस करता है और इस दिशा में आगे बढ़ सकता है। ऐसे हालात में खुद के अंदर नकारात्मक विचार आने से रोक सकते हैं साथ ही अपनी स्वास्थ्य की रिपोर्ट और चिकित्सक की मदद से बेहद ही सरल कुछ उपायों का पालन करके अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नज़र बनाये रख सकते है। 
कुंडली का चतुर्थ भाव हमारे सुख को दर्शाता है और यदि चतुर्थ भाव कुंडली में अधिक पीड़ित अवस्था में हो तो व्यक्ति के जीवन में सुख की कमी होती है जो उसे मानसिक रूप से अत्यधिक पीड़ित बनाती है। जो कार्य वह करता है उसमें उसे संतोष नहीं मिलता। 
कुंडली का पंचम भाव हमारी बुद्धि का भाव है और इसी के द्वारा हमारे जीवन में रुझानों को देखा जाता है यदि कुंडली का यह भाव पीड़ित अवस्था में है या अत्यधिक पाप प्रभाव में हैं और इसका स्वामी भी पीड़ित अवस्था में है तो व्यक्ति का रुझान स्वयं को कष्ट पहुंचाने की ओर भी हो सकता है।
कुंडली का अष्टम भाव मनुष्य की आयु का भाव है और इसके द्वारा मृत्यु का कारण पता चलता है। इसके अतिरिक्त इस भाव के द्वारा जीवन में होने वाले बड़े-बड़े परिवर्तनों को भी देखा जाता है। इस भाव के अध्ययन के द्वारा भी यह ज्ञात किया जा सकता है कि किसी व्यक्ति में क्या आत्महत्या की प्रवृत्ति जन्म दे सकती है। 
❁कुंडली के लग्न और सप्तम भाव में कोई ग्रह नीच अवस्था में हो तथा अष्टम भाव के स्वामी पर पाप ग्रहों का अधिक प्रभाव हो या फिर अष्टम भाव पाप कर्तरी योग में हो।
❁मंगल व षष्ठेश की युति हो, तृतीयेश, शनि और मंगल अष्टम में हों। अष्टमेश यदि जल तत्वीय हो तो जातक पानी में डूबकर और यदि अग्नि तत्वीय हो तो जल कर आत्महत्या करता है।
❁कर्क राशि का मंगल अष्टम भाव में हो तो जातक पानी में डूबकर आत्महत्या करता है।
❁यदि मकर या कुंभ राशिस्थ चंद्र दो पापग्रहों के मध्य हो तो जातक की मृत्यु फांसी लगाकर आत्महत्या या अग्नि से होती है।
❁चतुर्थ भाव में सूर्य एवं मंगल तथा दशम भाव में शनि हो तो जातक की मृत्यु फांसी से होती है। यदि अष्टम भाव में एक या अधिक अशुभ ग्रह हों तो जातक की मृत्यु हत्या, आत्महत्या, बीमारी या दुर्घटना के कारण होती है।
❁यदि अष्टम भाव में बुध और शनि स्थित हों तो जातक की मृत्यु फांसी से होती है। यदि मंगल और सूर्य राशि परिवर्तन योग में हों और अष्टमेश से केंद्र में स्थित हों तो जातक को सरकार द्वारा मृत्यु दण्ड अर्थात् फांसी मिलती है। 
❁शनि लग्न में हो और उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तथा सूर्य, राहु और क्षीण चंद्र युत हों तो जातक की गोली या छुरे से हत्या होती है।
❁यदि नवांश कुंडली के लग्न से सप्तमेश राहु या केतु से युति हो अथवा भाव 6, 8 या 12 में स्थित हो तो जातक की मृत्यु फांसी लगाकर आत्महत्या कर लेने से होती है।
❁यदि चंद्र से पंचम या नवम राशि पर किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि या उससे युति हो और अष्टम भाव अर्थात 22वें द्रेष्काण में सर्प, निगड़, पाश या आयुध द्रेष्काण का उदय हो रहा हो तो जातक फांसी लगाकर आत्महत्या करने से मृत्यु को प्राप्त होता है। 
❁चोथे और दसवें या त्रिकोण भाव में अशुभ ग्रह स्थित हो या अष्टमेश लग्न में मंगल से युत हो तो जातक फांसी लगाकर आत्महत्या करता है।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार आत्महत्या से बचने के उपाय निम्नलिखित हैं - 
❖ कोई भी रत्न जिनमें विशेष तौर पर चंद्रमा का रत्न मोती और बुध का रत्न पन्ना बिना किसी ज्योतिषी से सलाह लिए धारण ना करें।
❖ प्रतिदिन नियमित योग करे और भरपूर मात्रा में पानी पीना चाहिए।  
❖ मानसिक तनाव से दूर रहने का प्रयास करें और स्वयं को अकेले में ना रखें। 
❖ भरपूर शारीरिक परिश्रम करें इससे जहां एक ओर आपको अच्छी नींद भी आएगी और आपका मन भी भटकने से बचेगा।
❖ भगवान शिव,भगवान विष्णु और हनुमान जी की पूजा एवं आराधना करें इनसे आपको आत्मबल प्राप्त होगा।
❖शराब, धूम्रपान और नशीली वस्तुओं का सेवन करने से बचना चाहिए।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
Pandit Anjani Kumar Dadhich
नक्षत्र ज्योतिष हब 
 Nakashtra jyotish Hub
📧panditanjanikumardadhich@gmail.com

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