google24482cba33272f17.html Pandit Anjani Kumar Dadhich : May 2024

Friday, 31 May 2024

महालक्ष्मी कवच

पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार शुक्रवार के दिन मां महालक्ष्मी को कमल का पुष्प अर्पित कर पुजा करते हुए महालक्ष्मी कवच का पाठ करने से धन-धान्य समृद्धि आदि के साथ मां महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।महालक्ष्मी कवच को ब्रह्मपुराण से लिया गया है जिसके पाठ करने से व्यक्ति का दुर्भाग्य गरीबी और दरिद्रता दूर होती है।
महालक्ष्मी कवच स्तोत्र 

।।अथ श्री महालक्ष्मी कवचम् ।।

महालक्ष्याः प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वकामदम्।
सर्वपापप्रशमनं सर्वव्याधि निवारणम्॥१॥
 
दुष्टमृत्युप्रशमनं दुष्टदारिद्र्यनाशनम्।
ग्रहपीडा प्रशमनं अरिष्ट प्रविभञ्जनम्॥२॥
 
पुत्रपौत्रादिजनकं विवाहप्रदमिष्टदम्।
चोरारिहारि जगतां अखिलेप्सित कल्पकम्॥३॥
 
सावधानमना भूत्वा शृणु त्वं शुकसत्तम।
अनेकजन्मसंसिद्धि लभ्यं मुक्तिफलप्रदम्॥४॥
 
धनधान्य महाराज्य सर्वसौभाग्यदायकम्।
सकृत्पठनमात्रेण महालक्ष्मीः प्रसीदति॥५॥
 
क्षीराब्धिमध्ये पद्मानां कानने मणिमण्टपे।
रत्नसिंहासने दिव्ये तन्मध्ये मणिपङ्कजे।६॥
 
तन्मध्ये सुस्थितां देवीं मरीचिजनसेविताम्।
सुस्नातां पुष्पसुरभिं कुटिलालकबन्धनाम् ॥७॥
 
पूर्णेन्दुबिम्बवदनां अर्धचन्द्रललाटिकाम्।
इन्दीवरेक्षणां कामां सर्वाण्डभुवनेश्वरीम् ॥८॥
 
तिलप्रसवसुस्निग्धनासिकालङ्कृतां श्रियम्।
कुन्दावदातरदनां बन्धूकाधरपल्लवाम् ॥९॥
 
दर्पणाकारविमलकपोलद्वितयोज्ज्वलाम्।
माङ्गल्याभरणोपेतां कर्णद्वितयसुन्दराम् ॥१०॥
 
कमलेशसुभद्राढ्ये अभयं दधतीं परम्।
रोमराजिलता चारु मग्ननाभि तलोदरीम् ॥११॥
 
पट्टवस्त्रसमुद्भासि सुनितम्बादिलक्षणाम्।
काञ्चनस्थंभविभ्राजद्वरजानूरु शोभिताम् ॥१२॥
 
स्मरकाहलिकागर्वहारिजङ्घां हरिप्रियाम्।
कमठीपृष्ठसदृशपादाब्जां चन्द्रवन्नखाम् ॥१३॥
 
पङ्कजोदर लावण्यां सुतलांघ्रितलाश्रयाम्।
सर्वाभरणसंयुक्तां सर्वलक्षणलक्षिताम् ॥१४॥
 
पितामहमहाप्रीतां नित्यतृप्तां हरिप्रियां।
नित्यकारुण्यललितां कस्तूरीलेपिताङ्गिकाम्॥१५॥
 
सर्वमन्त्रमयीं लक्ष्मीं श्रुतिशास्त्रस्वरूपिणीम्।
परब्रह्ममयीं देवीं पद्मनाभकुटुम्बिनीम् ॥१६॥
 
एवं ध्यायेत् महालक्ष्मीं यः पठेत् कवचं परम् ॥१७॥
 
महलक्ष्मीः शिरः पातु ललाटं मम पङ्कजा।
कर्णद्वन्द्वं रमा पातु नयने नलिनालया॥१८॥
 
नासिकामवतादम्बा वाचं वाग्रूपिणी मम।
दन्तानवतु जिह्वां श्रीः अधरोष्ठं हरिप्रिया ॥१९॥
 
चिबुकं पातु वरदा कण्ठं गन्धर्वसेविता।
वक्षः कुक्षिकरौ पायुं पृष्ठमव्यात् रमा स्वयम्॥२०॥
 
कट्यूरुद्वयकं जानु जङ्घे पादद्वयं शिवा।
सर्वाङ्गमिन्द्रियं प्राणान् पायादायासहारिणी॥२१॥
 
सप्तधातून् स्वयञ्जाता रक्तं शुक्लं मनोऽस्थि च।
ज्ञानं भुक्तिर्मनोत्साहान् सर्वं मे पातु पद्मजा ॥२२॥
 
मया कृतन्तु यत् तद्वै तत्सर्वं पातु मङ्गला।
ममायुरङ्गकान् लक्ष्मीः भार्यापुत्रांश्च पुत्रिकाः॥२३॥
 
मित्राणि पातु सततं अखिलं मे वरप्रदा।
ममारिनाशनार्थाय माया मृत्युञ्जया बलम्॥२४॥
 
सर्वाभीष्टन्तु मे दद्यात् पातु मां कमलालया।
सहजां सोदरञ्चैव शत्रुसंहारिणी वधूः॥२५॥
 
बन्धुवर्गं पराशक्तिः पातु मां सर्वमङ्गला॥
 
 फलश्रुतिः
 
य इदं कवचं दिव्यं रमायाः प्रयतः पठेत्।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति सर्वरक्षां च शाश्वतीम्॥१॥
 
दीर्घायुष्मान्भवेन्नित्यं सर्वसौभाग्यशोभितम्।
सर्वज्ञः सर्वदर्शी च सुखितश्च सुखोज्ज्वलः॥२॥
 
सुपुत्रो गोपतिः श्रीमान् भविष्यति न संशयः ।
तद्गृहे न भवेद्ब्रह्मन् दारिद्र्यदुरितादिकम्॥३॥
 
नाग्निना दह्यते गेहं न चोराद्यैश्च पीड्यते।
भुतप्रेतपिशाचाद्याः त्रस्ता धावन्ति दूरतः ॥४॥
 
लिखित्वा स्थापितं यन्त्रं तत्र वृद्धिर्भवेत् ध्रुवम् ।
नापमृत्युमवाप्नोति देहान्ते मुक्तिमान् भवेत् ॥५॥
 
सायं प्रातः पठेद्यस्तु महाधनपतिर्भवेत् ।
आयुष्यं पौष्टिकं मेध्यं पापं दुस्स्वप्ननाशनम् ॥६॥
 
प्रज्ञाकरं पवित्रञ्च दुर्भिक्षाग्निविनाशनम् ।
चित्तप्रसादजनकं महामृत्युप्रशान्तिदम् ॥७॥
 
महारोगज्वरहरं ब्रह्महत्यादि शोधकम्।
महासुखप्रदञ्चैव पठितव्यं सुखार्थिभिः ॥८॥
 
धनार्थी धनमाप्नोति विवाहार्थी लभेत् वधूः।
विद्यार्थी लभते विद्यां पुत्रार्थी गुणवत्सुतान्॥९॥
 
राज्यार्थी लभते राज्यं सत्यमुक्तं मया शुक।
महालक्ष्म्याः मन्त्रसिद्धिः जपात् सद्यः प्रजायते॥१०॥
 
एवं देव्याः प्रसादेन शुकः कवचमाप्तवान्।
कवचानुग्रहेणैव सर्वान् कामानवाप्नुयात्॥११॥
 
सर्वलक्षणसंपन्नां लक्ष्मीं सर्वेश्वरेश्वरीम् ।
प्रपद्ये शरणं देवीं पद्मपत्राक्षवल्लभाम्॥१२॥
 
॥ इति श्री महालक्ष्मी कवचं संपूर्णम् ॥
***********************************************
Pandit Anjani Kumar Dadhich 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
कुंडली विश्लेषक वास्तुविद एवं अंक ज्योतिषी
panditanjanikumardadhich@gmail.com
📱 9414863294, 6377054504

Monday, 27 May 2024

शिवाष्टकम

शिवाष्टकम
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भगवान शिव को
को प्रसन्न करने हेतु देवताओं, राक्षसों, दानवों और ऋषि मुनियों ने विभिन्न प्रकार के स्तोत्रों की रचनाएं की। जिनमें से
भगवान शिव को शिवाष्टकम् अति प्रिय है इसकी रचना आदि गुरू शंकराचार्य ने की थी। शिवाष्टकम् स्तोत्र में आठ पद है जिनमे परंब्रह्म शिव की स्तुति की गई है। शिवाष्टकम् स्तोत्र का पाठ और इसका श्रवण मनुष्य को हर बुरी परिस्थितियों से शीघ्र ही मुक्ति दिलाता है। शिवाष्टकम् का पाठ भाग्यहीन व्यक्ति को भी सौभाग्यशाली बना देता है।
।।अथ श्रीशिव अष्टकम् स्तोत्रम्।।

प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथनाथं सदानन्दभाजम्।

भवद्भव्यभूतेश्वरं भूतनाथं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।१।।

गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकालकालं गणेशाधिपालम्।

जटाजूटगङ्गोत्तरङ्गैर्विशालं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।२।।

मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं महामण्डलं भस्मभूषाधरं तम्।

अनादिं ह्यपारं महामोहमारं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।३।।

तटाधोनिवासं महाट्टाट्टहासं महापापनाशं सदा सुप्रकाशम्।

गिरीशं गणेशं सुरेशं महेशं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।४।।

गिरिन्द्रात्मजासङ्गहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदा सन्निगेहम्।

परब्रह्म ब्रह्मादिभिर्वन्द्यमानं शिवं शंभुमिशानमीडे।।५।।

कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदाभोजनम्राय कामं ददानम्।

बलीवर्दयानं सुराणां प्रधानं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।६।।

शरच्चन्द्रगात्रं गुणानन्दपात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम्।

अपर्णाकळत्रं चरित्रं विचित्रं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।७।।
हरं सर्पहारं चिताभूविहारं भवं वेदसारं सदा निर्विकारम्।

श्मशाने वसन्तं मनोजं दहन्तं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।८।।
स्तवं यः प्रभाते नरः शूलपाणेः पठेत्सर्वदा भर्गभावानुरक्तः।

स पुत्रं धनं धान्यमित्रं कळत्रं विचित्रैः समाराद्य मोक्षं प्रयाति।।९।।

।।इति श्रीशिवाष्टकं स्तोत्रम् संपूर्णम्।।

Tuesday, 21 May 2024

नृसिंह जयंती

नृसिंह जयंती
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नृसिंह जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष 21 मई को नृसिंह जयंती मनाई जाएगी। 
              पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भक्त प्रहलाद की प्रार्थना पर हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए भगवान नृसिंह का प्राकट्य हुआ था। नृसिंह चतुर्दशी को भक्तगण संकल्पपूर्वक व्रत रखते हैं। इस दिन भगवान नृसिंह के साथ माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है और अंत में शंख, घंटे एवं घड़ियाल से नृसिंह भगवान की आरती की जाती है और रात्रि के समय जागरण किया जाता है। भगवान विष्णु के 10 अवतार में नृसिंह चौथा अवतार है। इस अवतार में भगवान विष्णु का आधा शरीर मनुष्य और आधा सिंह के समान था।
नृसिंह जयंती पूजा विधि
नृसिंह जयंती व्रत के दिन एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर भगवान नृसिंह की तस्वीर या मूर्ति रखें। अगर नरसिंह अवतार की तस्वीर या मूर्ति नहीं है तो भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की तस्वीर भी रख सकते हैं। इसके बाद चारों तरफ गंगाजल से छिड़काव करें और पूजा में फल, केसर, पंचमेवा, नारियल, फूल, अक्षत, पीताम्बर आदि पूजा से संबंधित सामग्री के साथ पुजन एवं आरती करें और आरती के समय शंख नाद जरुर करे। इसके बाद काले तिल, पंचगव्य और हवन सामग्री के साथ श्री लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्र का पाठ करते हुए हवन करें और इसके बाद नृसिंह भगवान को तुलसीदल के साथ भोग लगाएं। 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार श्री लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्र का पाठ शत्रु को वश में करने तथा धन प्राप्ति के लिए किया जाता हैं। यदि किसी मनुष्य पर कर्ज बहुत हो गया हो और कर्ज से मुक्ति के लिए लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्र का पाठ किया जाता हैं। 
लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्रम्‌
श्रीमत्पयोनिधिनिकेतन चक्रपाणे भोगीन्द्रभोगमणिरंजितपुण्यमूर्ते।
योगीश शाश्वतशरण्यभवाब्धि पोतलक्ष्मीनृसिंहममदेहिकरावलम्बम॥1॥
ब्रम्हेन्द्र-रुद्र-मरुदर्क-किरीट-कोटि-संघट्टितांघ्रि-कमलामलकान्तिकान्त।
लक्ष्मीलसत्कुचसरोरुहराजहंस लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम्‌॥2॥
संसारघोरगहने चरतो मुरारे मारोग्र-भीकर-मृगप्रवरार्दितस्य।
आर्तस्य मत्सर-निदाघ-निपीडितस्यलक्ष्मीनृसिंहममदेहिकरावलम्बम्‌॥3॥
संसारकूप-मतिघोरमगाधमूलं सम्प्राप्य दुःखशत-सर्पसमाकुलस्य।
दीनस्य देव कृपणापदमागतस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम्‌॥4॥
संसार-सागर विशाल-करालकाल-नक्रग्रहग्रसन-निग्रह-विग्रहस्य। 
व्यग्रस्य रागदसनोर्मिनिपीडितस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहिकरावलम्बम्‌॥5॥
संसारवृक्ष-भवबीजमनन्तकर्म-शाखाशतं करणपत्रमनंगपुष्पम्‌।
आरुह्य दुःखफलित पततो दयालो लक्ष्मीनृसिंहम देहिकरावलम्बम्‌॥6॥
संसारसर्पघनवक्त्र-भयोग्रतीव्र-दंष्ट्राकरालविषदग्ध-विनष्टमूर्ते।
नागारिवाहन-सुधाब्धिनिवास-शौरे लक्ष्मीनृसिंहममदेहिकरावलम्बम्‌॥7॥
संसारदावदहनातुर-भीकरोरु-ज्वालावलीभिरतिदग्धतनुरुहस्य।
त्वत्पादपद्म-सरसीशरणागतस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम्‌॥8॥
संसारजालपतितस्य जगन्निवास सर्वेन्द्रियार्थ-बडिशार्थझषोपमस्य।
प्रत्खण्डित-प्रचुरतालुक-मस्तकस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहिकरावलम्बम्‌॥9॥
सारभी-करकरीन्द्रकलाभिघात-निष्पिष्टमर्मवपुषः सकलार्तिनाश.
प्राणप्रयाणभवभीतिसमाकुलस्यलक्ष्मीनृसिंहमम देहि करावलम्बम्‌॥10॥
अन्धस्य मे हृतविवेकमहाधनस्य चौरेः प्रभो बलि भिरिन्द्रियनामधेयै।
मोहान्धकूपकुहरे विनिपातितस्य लक्ष्मीनृसिंहममदेहिकरावलम्बम्‌॥11॥
लक्ष्मीपते कमलनाथ सुरेश विष्णो वैकुण्ठ कृष्ण मधुसूदन पुष्कराक्ष।
ब्रह्मण्य केशव जनार्दन वासुदेव देवेश देहि कृपणस्य करावलम्बम्‌॥12॥
यन्माययोर्जितवपुःप्रचुरप्रवाहमग्नाथमत्र निबहोरुकरावलम्बम्‌.
लक्ष्मीनृसिंहचरणाब्जमधुवतेत स्तोत्र कृतं सुखकरं भुवि शंकरेण॥13॥
॥ इति श्रीमच्छंकराचार्याकृतं लक्ष्मीनृसिंहस्तोत्रं संपूर्णम्‌॥

Monday, 20 May 2024

शिव स्तुति

शिव स्तुति 
सोमवार के दिन शिवलिंग पर जल,बेलपत्र, दूध,भांग आदि चढ़ाकर शिवलिंग का पुजन करे और शिव स्तुति का पाठ करने से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर होते हैं और शिव कृपा प्राप्त होती है। शिव स्तुति का पाठ करने से व्यक्ति को मनोवांछित फल, समस्त सुख और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है और सभी विपदाओं व दुखो का निवारण होता है।
।। अथ श्री शिव स्तुति।।
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।1।
 
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।2।
 
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।3।
 
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।4।
 
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।5।
 
न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।6।
 
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।7।
 
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।8।
 
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।9।
 
शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।10।
 
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।11।

।।इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितो वेदसारशिवस्तवः संपूर्णः।।
***********************************************
Pandit Anjani Kumar Dadhich 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
कुंडली विश्लेषक वास्तुविद एवं अंक ज्योतिषी 
panditanjanikumardadhich@gmail.com
📱 9414863294,6377054504

Friday, 10 May 2024

आखातीज

अक्षय तृतीया या आखातीज 2024
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिन्दू धर्म में सभी तिथियों में से वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का अपना विशेष महत्व होता है क्योंकि यह एक अबूझ मुहूर्त की तिथि होती है यानी अक्षय तृतीया के दिन बिना ज्योतिषी या विद्वान पंडित से चर्चा के कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य किया जा सकता है। 
पौराणिक महत्व के अनुसार अक्षय तृतीया तिथि का हिन्दू धर्म में विशेष स्थान है। अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान विष्णु के छठे अवतार चिरंजीवी भगवान परशुराम जी का जन्म हुआ था। महाभारत युद्ध का समापन अक्षय तृतीया को ही हुआ था। अक्षय तृतीया का दिन धन कुबेर और माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए सबसे उत्तम दिन माना जाता है। इसके अलावा अक्षय तृतीया पर सोना-चांदी और घर की जरूरत के अन्य नए सामानों की खरीदारी करना शुभ माना जाता है। 
इस बार अक्षय तृतीया 10 मई, शुक्रवार को मनाई जाएगी। तृतीया तिथि की शुरुआत इस बार 10 मई को सुबह 4 बजकर 17 मिनट पर होगी और समापन 11 मई को रात 2 बजकर 50 मिनट पर होगा। इस बार अक्षय तृतीया बेहद ही खास रहने वाली है। दरअसल इस बार अक्षय तृतीया पर 100 साल बाद गजकेसरी राजयोग के अलावा रवि योग, धन योग, शुक्रादित्य योग, गजकेसरी योग, शश योग का शुभ संयोग भी बनने जा रहा है। वैदिक ज्योतिष में गजकेसरी राजयोग को बहुत ही शुभ योग माना जाता है। यह योग तब बनता है जब गुरु और चंद्रमा की युति होती है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गुरु और चंद्रमा के बीच में मित्रता का भाव रहता है। ऐसे में अक्षय तृतीया के दिन गजकेसरी राजयोग बनने से कुछ राशि के जातकों पर मां लक्ष्मी, चंद्रदेव और देवगुरु बृहस्पति की विशेष कृपा रहने वाली है। गजकेसरी योग के अलावा इस दिन सूर्य और चंद्रमा अपनी उच्च राशि में होंगे।
अक्षय तृतीया को भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश और कुबेर जी की पुजा करनी चाहिए जिसकी पूजा विधि निम्नलिखित है 
अक्षय तृतीया पूजा विधि
अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करने के बाद स्वच्छ लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें। 
इसके बाद पूजा करने के लिए एक लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। इसपर गणेश जी, कुबेर जी, मां लक्ष्मी की मूर्ति और भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें।
सबसे पहले गणेश जी का पंचोपचार विधि से पूजन कर उन्हें बेसन के लड्डू का भोग लगाएं फिर सबसे पहले भगवान विष्णु को गोपी चंदन से तिलक करें और माता लक्ष्मी को कुमकुम से तिलक करें
फिर माता लक्ष्मी को कमल का फूल और भगवान विष्णु को पीले रंग के फूल अर्पित करें और फिर विधि विधान से पूजन करें।
माता लक्ष्मी की पुजा के बाद भगवान कुबेर की पुजा करते हुए अंत में मखाने की खीर और पंचामृत का भोग लगाएं।
सभी देवी-देवताओं की आरती करते हुए श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र, श्री सुक्त या कनकधारा स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए जिससे व्यक्ति पर मां लक्ष्मी और भगवान नारायण की कृपा और आशीर्वाद अक्षुण्ण रुप से बना रहे।
नोट- हमारे यहां समस्त प्रकार के पुजा-पाठ, हवन अनुष्ठान और कुंडली निर्माण और विष्लेषण कार्य किया जाता है।
लेखक परिचय- Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच 
Nakshatra jyotish Sansthan 
panditanjanikumardadhich@gmail.com 
📱6377054504