अक्षय तृतीया या आखातीज 2024
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिन्दू धर्म में सभी तिथियों में से वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का अपना विशेष महत्व होता है क्योंकि यह एक अबूझ मुहूर्त की तिथि होती है यानी अक्षय तृतीया के दिन बिना ज्योतिषी या विद्वान पंडित से चर्चा के कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य किया जा सकता है।
पौराणिक महत्व के अनुसार अक्षय तृतीया तिथि का हिन्दू धर्म में विशेष स्थान है। अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान विष्णु के छठे अवतार चिरंजीवी भगवान परशुराम जी का जन्म हुआ था। महाभारत युद्ध का समापन अक्षय तृतीया को ही हुआ था। अक्षय तृतीया का दिन धन कुबेर और माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए सबसे उत्तम दिन माना जाता है। इसके अलावा अक्षय तृतीया पर सोना-चांदी और घर की जरूरत के अन्य नए सामानों की खरीदारी करना शुभ माना जाता है।
इस बार अक्षय तृतीया 10 मई, शुक्रवार को मनाई जाएगी। तृतीया तिथि की शुरुआत इस बार 10 मई को सुबह 4 बजकर 17 मिनट पर होगी और समापन 11 मई को रात 2 बजकर 50 मिनट पर होगा। इस बार अक्षय तृतीया बेहद ही खास रहने वाली है। दरअसल इस बार अक्षय तृतीया पर 100 साल बाद गजकेसरी राजयोग के अलावा रवि योग, धन योग, शुक्रादित्य योग, गजकेसरी योग, शश योग का शुभ संयोग भी बनने जा रहा है। वैदिक ज्योतिष में गजकेसरी राजयोग को बहुत ही शुभ योग माना जाता है। यह योग तब बनता है जब गुरु और चंद्रमा की युति होती है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गुरु और चंद्रमा के बीच में मित्रता का भाव रहता है। ऐसे में अक्षय तृतीया के दिन गजकेसरी राजयोग बनने से कुछ राशि के जातकों पर मां लक्ष्मी, चंद्रदेव और देवगुरु बृहस्पति की विशेष कृपा रहने वाली है। गजकेसरी योग के अलावा इस दिन सूर्य और चंद्रमा अपनी उच्च राशि में होंगे।
अक्षय तृतीया को भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश और कुबेर जी की पुजा करनी चाहिए जिसकी पूजा विधि निम्नलिखित है
अक्षय तृतीया पूजा विधि
अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करने के बाद स्वच्छ लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें।
इसके बाद पूजा करने के लिए एक लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। इसपर गणेश जी, कुबेर जी, मां लक्ष्मी की मूर्ति और भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें।
सबसे पहले गणेश जी का पंचोपचार विधि से पूजन कर उन्हें बेसन के लड्डू का भोग लगाएं फिर सबसे पहले भगवान विष्णु को गोपी चंदन से तिलक करें और माता लक्ष्मी को कुमकुम से तिलक करें
फिर माता लक्ष्मी को कमल का फूल और भगवान विष्णु को पीले रंग के फूल अर्पित करें और फिर विधि विधान से पूजन करें।
माता लक्ष्मी की पुजा के बाद भगवान कुबेर की पुजा करते हुए अंत में मखाने की खीर और पंचामृत का भोग लगाएं।
सभी देवी-देवताओं की आरती करते हुए श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र, श्री सुक्त या कनकधारा स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए जिससे व्यक्ति पर मां लक्ष्मी और भगवान नारायण की कृपा और आशीर्वाद अक्षुण्ण रुप से बना रहे।
नोट- हमारे यहां समस्त प्रकार के पुजा-पाठ, हवन अनुष्ठान और कुंडली निर्माण और विष्लेषण कार्य किया जाता है।
लेखक परिचय- Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
Nakshatra jyotish Sansthan
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