google24482cba33272f17.html Pandit Anjani Kumar Dadhich : नृसिंह जयंती

Tuesday, 21 May 2024

नृसिंह जयंती

नृसिंह जयंती
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नृसिंह जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष 21 मई को नृसिंह जयंती मनाई जाएगी। 
              पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भक्त प्रहलाद की प्रार्थना पर हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए भगवान नृसिंह का प्राकट्य हुआ था। नृसिंह चतुर्दशी को भक्तगण संकल्पपूर्वक व्रत रखते हैं। इस दिन भगवान नृसिंह के साथ माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है और अंत में शंख, घंटे एवं घड़ियाल से नृसिंह भगवान की आरती की जाती है और रात्रि के समय जागरण किया जाता है। भगवान विष्णु के 10 अवतार में नृसिंह चौथा अवतार है। इस अवतार में भगवान विष्णु का आधा शरीर मनुष्य और आधा सिंह के समान था।
नृसिंह जयंती पूजा विधि
नृसिंह जयंती व्रत के दिन एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर भगवान नृसिंह की तस्वीर या मूर्ति रखें। अगर नरसिंह अवतार की तस्वीर या मूर्ति नहीं है तो भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की तस्वीर भी रख सकते हैं। इसके बाद चारों तरफ गंगाजल से छिड़काव करें और पूजा में फल, केसर, पंचमेवा, नारियल, फूल, अक्षत, पीताम्बर आदि पूजा से संबंधित सामग्री के साथ पुजन एवं आरती करें और आरती के समय शंख नाद जरुर करे। इसके बाद काले तिल, पंचगव्य और हवन सामग्री के साथ श्री लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्र का पाठ करते हुए हवन करें और इसके बाद नृसिंह भगवान को तुलसीदल के साथ भोग लगाएं। 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार श्री लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्र का पाठ शत्रु को वश में करने तथा धन प्राप्ति के लिए किया जाता हैं। यदि किसी मनुष्य पर कर्ज बहुत हो गया हो और कर्ज से मुक्ति के लिए लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्र का पाठ किया जाता हैं। 
लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्रम्‌
श्रीमत्पयोनिधिनिकेतन चक्रपाणे भोगीन्द्रभोगमणिरंजितपुण्यमूर्ते।
योगीश शाश्वतशरण्यभवाब्धि पोतलक्ष्मीनृसिंहममदेहिकरावलम्बम॥1॥
ब्रम्हेन्द्र-रुद्र-मरुदर्क-किरीट-कोटि-संघट्टितांघ्रि-कमलामलकान्तिकान्त।
लक्ष्मीलसत्कुचसरोरुहराजहंस लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम्‌॥2॥
संसारघोरगहने चरतो मुरारे मारोग्र-भीकर-मृगप्रवरार्दितस्य।
आर्तस्य मत्सर-निदाघ-निपीडितस्यलक्ष्मीनृसिंहममदेहिकरावलम्बम्‌॥3॥
संसारकूप-मतिघोरमगाधमूलं सम्प्राप्य दुःखशत-सर्पसमाकुलस्य।
दीनस्य देव कृपणापदमागतस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम्‌॥4॥
संसार-सागर विशाल-करालकाल-नक्रग्रहग्रसन-निग्रह-विग्रहस्य। 
व्यग्रस्य रागदसनोर्मिनिपीडितस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहिकरावलम्बम्‌॥5॥
संसारवृक्ष-भवबीजमनन्तकर्म-शाखाशतं करणपत्रमनंगपुष्पम्‌।
आरुह्य दुःखफलित पततो दयालो लक्ष्मीनृसिंहम देहिकरावलम्बम्‌॥6॥
संसारसर्पघनवक्त्र-भयोग्रतीव्र-दंष्ट्राकरालविषदग्ध-विनष्टमूर्ते।
नागारिवाहन-सुधाब्धिनिवास-शौरे लक्ष्मीनृसिंहममदेहिकरावलम्बम्‌॥7॥
संसारदावदहनातुर-भीकरोरु-ज्वालावलीभिरतिदग्धतनुरुहस्य।
त्वत्पादपद्म-सरसीशरणागतस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम्‌॥8॥
संसारजालपतितस्य जगन्निवास सर्वेन्द्रियार्थ-बडिशार्थझषोपमस्य।
प्रत्खण्डित-प्रचुरतालुक-मस्तकस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहिकरावलम्बम्‌॥9॥
सारभी-करकरीन्द्रकलाभिघात-निष्पिष्टमर्मवपुषः सकलार्तिनाश.
प्राणप्रयाणभवभीतिसमाकुलस्यलक्ष्मीनृसिंहमम देहि करावलम्बम्‌॥10॥
अन्धस्य मे हृतविवेकमहाधनस्य चौरेः प्रभो बलि भिरिन्द्रियनामधेयै।
मोहान्धकूपकुहरे विनिपातितस्य लक्ष्मीनृसिंहममदेहिकरावलम्बम्‌॥11॥
लक्ष्मीपते कमलनाथ सुरेश विष्णो वैकुण्ठ कृष्ण मधुसूदन पुष्कराक्ष।
ब्रह्मण्य केशव जनार्दन वासुदेव देवेश देहि कृपणस्य करावलम्बम्‌॥12॥
यन्माययोर्जितवपुःप्रचुरप्रवाहमग्नाथमत्र निबहोरुकरावलम्बम्‌.
लक्ष्मीनृसिंहचरणाब्जमधुवतेत स्तोत्र कृतं सुखकरं भुवि शंकरेण॥13॥
॥ इति श्रीमच्छंकराचार्याकृतं लक्ष्मीनृसिंहस्तोत्रं संपूर्णम्‌॥

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