शिवाष्टकम
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भगवान शिव कोको प्रसन्न करने हेतु देवताओं, राक्षसों, दानवों और ऋषि मुनियों ने विभिन्न प्रकार के स्तोत्रों की रचनाएं की। जिनमें से
भगवान शिव को शिवाष्टकम् अति प्रिय है इसकी रचना आदि गुरू शंकराचार्य ने की थी। शिवाष्टकम् स्तोत्र में आठ पद है जिनमे परंब्रह्म शिव की स्तुति की गई है। शिवाष्टकम् स्तोत्र का पाठ और इसका श्रवण मनुष्य को हर बुरी परिस्थितियों से शीघ्र ही मुक्ति दिलाता है। शिवाष्टकम् का पाठ भाग्यहीन व्यक्ति को भी सौभाग्यशाली बना देता है।
।।अथ श्रीशिव अष्टकम् स्तोत्रम्।।
प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथनाथं सदानन्दभाजम्।
भवद्भव्यभूतेश्वरं भूतनाथं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।१।।
गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकालकालं गणेशाधिपालम्।
जटाजूटगङ्गोत्तरङ्गैर्विशालं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।२।।
मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं महामण्डलं भस्मभूषाधरं तम्।
अनादिं ह्यपारं महामोहमारं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।३।।
तटाधोनिवासं महाट्टाट्टहासं महापापनाशं सदा सुप्रकाशम्।
गिरीशं गणेशं सुरेशं महेशं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।४।।
गिरिन्द्रात्मजासङ्गहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदा सन्निगेहम्।
परब्रह्म ब्रह्मादिभिर्वन्द्यमानं शिवं शंभुमिशानमीडे।।५।।
कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदाभोजनम्राय कामं ददानम्।
बलीवर्दयानं सुराणां प्रधानं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।६।।
शरच्चन्द्रगात्रं गुणानन्दपात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम्।
अपर्णाकळत्रं चरित्रं विचित्रं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।७।।
हरं सर्पहारं चिताभूविहारं भवं वेदसारं सदा निर्विकारम्।
श्मशाने वसन्तं मनोजं दहन्तं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।८।।
स्तवं यः प्रभाते नरः शूलपाणेः पठेत्सर्वदा भर्गभावानुरक्तः।
स पुत्रं धनं धान्यमित्रं कळत्रं विचित्रैः समाराद्य मोक्षं प्रयाति।।९।।
।।इति श्रीशिवाष्टकं स्तोत्रम् संपूर्णम्।।
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