google24482cba33272f17.html Pandit Anjani Kumar Dadhich : श्रीसूक्तम्

Friday, 14 June 2024

श्रीसूक्तम्

श्रीसूक्तम्
प्रिय पाठकों 
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज इस लेख में श्री सुक्त के बारे में जानकारी दे रहा हूं।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार किसी भी शुक्ल पक्ष के शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी का ध्यान करते हुए मां लक्ष्मी की षोडशोपचार विधि से पूजन करें। इसके साथ ही घी का दीपक जलाएं और फिर ऋग्वेद में वर्णित श्री सूक्तम् का पाठ कर लें। अंत में आरती करके भूल चूक के लिए माफी मांग लेना चाहिए। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को धन संपदा तथा वैभव का ग्रह माना गया है। यदि कुंडली में शुक्र ग्रह उत्तम है तो सभी तरह की भौतिक सुख के साथ ही आध्यात्मिक सुख की भी प्राप्त हो सकती है। मां लक्ष्मी का शुक्र पर विशेष प्रभाव होता है। इसलिए मां लक्ष्मी की उपासना करने से स्वतः ही शुक्र ग्रह अच्छा हो जाता है।
श्री सूक्त पाठ को करने से व्यक्ति को अपने जीवन में धन, संपदा और वैभव आदि का लाभ मिलता है।
श्री सूक्त का पाठ करने या इसके श्रवण (सुनने) से व्यक्ति को वाहन,मकान,समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा आदि की भी प्राप्ति होती है।
 श्रीसूक्तम् 
।। अथ श्री सुक्तम्।।
ॐ हिरण्यवर्णाम हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥१॥
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्॥२॥
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मादेवी जुषताम्॥३॥
कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारां आद्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वयेश्रियम्॥४॥
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियंलोके देव जुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥५॥
आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तववृक्षोथ बिल्व:।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मी:॥६॥
उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्चमणिना सह।
प्रादुर्भुतो सुराष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृध्दिं ददातु मे॥७॥
क्षुत्पपासामलां जेष्ठां अलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृध्दिं च सर्वानिर्णुद मे गृहात॥८॥
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरिं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्॥९॥
मनस: काममाकूतिं वाच: सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्री: श्रेयतां यश:॥१०॥
कर्दमेनप्रजाभूता मयिसंभवकर्दम।
श्रियं वासयमेकुले मातरं पद्ममालिनीम्॥११॥
आप स्रजन्तु सिग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले॥१२॥
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टि पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥१३॥
आर्द्रां य: करिणीं यष्टीं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आवह॥१४॥
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।।१५॥
य: शुचि: प्रयतोभूत्वा जुहुयाादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्च च श्रीकाम: सततं जपेत्॥१६॥
पद्मानने पद्मउरू पद्माक्षि पद्मसंभवे।
तन्मे भजसि पद्मक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्॥१७॥
अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने।
धनं मे लभतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे॥१८॥
पद्मानने पद्मविपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विष्णुमनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधस्त्वं॥१९॥
पुत्रपौत्रं धनंधान्यं हस्ताश्वादिगवेरथम्।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे॥२०॥
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्योधनं वसु।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरूणं धनमस्तु मे॥२१॥
वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृतहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिन:॥२२॥
न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभामति:।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्॥२३॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांसुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीदमह्यम्॥२४॥
विष्णुपत्नीं क्षमां देवी माधवी माधवप्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम्॥२५॥
महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात्॥२६॥
श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते।
धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायु:॥२७॥
ओम् शान्तिः।। शान्तिः।। शान्तिः॥
॥इति श्रीसूक्तं सम्पूर्णम्॥
लेखक परिचय- Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच 
Nakshatra Jyotish Sansthaan 
नक्षत्र ज्योतिष संस्थान, नागौर 
(कुंडली विश्लेषक वास्तुविद एवं अंक ज्योतिषी)
panditanjanikumardadhich@gmail.com
📱 6377054504

No comments:

Post a Comment