google24482cba33272f17.html Pandit Anjani Kumar Dadhich : June 2024

Saturday, 15 June 2024

शनि स्तोत्रम्

शनि स्तोत्रम्
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज इस लेख में दशरथ कृत शनि स्तोत्र पाठ के  बारे में जानकारी दे रहा हूं।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिंदू धर्म शास्त्रों में शनिदेव का न्याय का देवता के रूप में बतलाया गया है। शनिदेव किसी भी जातक को उसके कर्म के अनुसार शुभ-अशुभ फल देते हैं। अच्छे कर्म करने पर शनि की विशेष कृपा प्राप्त होती है और वहीं बुरे कर्म करने पर शनि के प्रकोप का सामना करना पड़ता है। यदि किसी व्यक्ति पर शनि की कृपा हो जाए तो उसका भाग्य पलभर में बदल जाता है। लेकिन किसी पर शनिदेव का प्रकोप हो तो उसे बर्बाद होते भी समय नहीं लगता है।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार शनिवार भगवान शनि को समर्पित दिन है और जो कोई भी जातक शनिदेव के दोष या साढ़े साती और ढैय्या दशा से पिड़ित है वह जातक किसी भी शनिवार के दिन भगवान शनिदेव के मंदिर में जाकर तिल्ली या सरसों का तेल, काले तिल,काले उड़द और निलांजन पुष्प आदि चढ़ाकर पूजा करते हुए भगवान शनिदेव के चरणों का ध्यान करते हुए भगवान राम के पिता राजा दशरथ द्वारा रचित शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनि भगवान अति प्रसन्न होते है।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से दरिद्रता दूर होती है।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनि की कुदृष्टि से भी बचाव होता है।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र पाठ 
।। अथ श्री शनि स्तोत्रम्।।
नमः कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च
नमः कालाग्निरुपाय कृतान्ताय च वै नमः
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते
नमः पुष्कलगात्राय स्थुलरोम्णेऽथ वै नमः
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नमः
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च
अधोदृष्टेः नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तु ते
तपसा दग्ध.देहाय नित्यं योगरताय च
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज.सूनवे
तुष्टो ददासि वै राज्यं रूष्टो हरसि तत्क्षणात्
देवासुरमनुष्याश्र्च सिद्ध.विद्याधरोरगाः
त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः
प्रसाद कुरु मे सौरे! वारदो भव भास्करे
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबलः।।
।। इति श्री दशरथ कृत शनि स्तोत्र संपूर्णम।।

**दशरथ स्तुति शनि देव हिन्दी अनुवाद**

हे श्यामवर्णवाले, हे नील कण्ठ वाले।
कालाग्नि रूप वाले, हल्के शरीर वाले॥
स्वीकारो नमन मेरे, शनिदेव हम तुम्हारे।
सच्चे सुकर्म वाले हैं, मन से हो तुम हमारे॥
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥
हे दाढ़ी-मूछों वाले, लम्बी जटायें पाले।
हे दीर्घ नेत्र वाले, शुष्कोदरा निराले॥
भय आकृति तुम्हारी, सब पापियों को मारे।
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥
हे पुष्ट देहधारी, स्थूल-रोम वाले।
कोटर सुनेत्र वाले, हे बज्र देह वाले॥
तुम ही सुयश दिलाते, सौभाग्य के सितारे।
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥
हे घोर रौद्र रूपा, भीषण कपालि भूपा।
हे नमन सर्वभक्षी बलिमुख शनी अनूपा ॥
हे भक्तों के सहारे, शनि! सब हवाले तेरे।
हैं पूज्य चरण तेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥
हे सूर्य-सुत तपस्वी, भास्कर के भय मनस्वी।
हे अधो दृष्टि वाले, हे विश्वमय यशस्वी॥
विश्वास श्रद्धा अर्पित सब कुछ तू ही निभाले।
स्वीकारो नमन मेरे। हे पूज्य देव मेरे॥
अतितेज खड्गधारी, हे मन्दगति सुप्यारी।
तप-दग्ध-देहधारी, नित योगरत अपारी॥
संकट विकट हटा दे, हे महातेज वाले।
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥
नितप्रियसुधा में रत हो, अतृप्ति में निरत हो।
हो पूज्यतम जगत में, अत्यंत करुणा नत हो॥
हे ज्ञान नेत्र वाले, पावन प्रकाश वाले।
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥
जिस पर प्रसन्न दृष्टि, वैभव सुयश की वृष्टि।
वह जग का राज्य पाये, सम्राट तक कहाये॥
उत्तम स्वभाव वाले, तुमसे तिमिर उजाले।
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥
हो वक्र दृष्टि जिसपै, तत्क्षण विनष्ट होता।
मिट जाती राज्यसत्ता, हो के भिखारी रोता॥
डूबे न भक्त-नैय्या पतवार दे बचा ले।
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥
हो मूलनाश उनका, दुर्बुद्धि होती जिन पर।
हो देव असुर मानव, हो सिद्ध या विद्याधर॥
देकर प्रसन्नता प्रभु अपने चरण लगा ले।
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥
होकर प्रसन्न हे प्रभु! वरदान यही दीजै।
बजरंग भक्त गण को दुनिया में अभय कीजै॥
सारे ग्रहों के स्वामी अपना विरद बचाले।
स्वीकारो नमन मेरे। हैं पूज्य चरण तेरे॥
लेखक परिचय- Pandit Anjani Kumar Dadhich 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच 
 (कुंडली विश्लेषक वास्तुविद एवं अंक ज्योतिषी)
Nakshatra Jyotish Sansthaan, Nagaur 
नक्षत्र ज्योतिष संस्थान, नागौर 
panditanjanikumardadhich@gmail.com
📱6377054504

Friday, 14 June 2024

श्रीसूक्तम्

श्रीसूक्तम्
प्रिय पाठकों 
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज इस लेख में श्री सुक्त के बारे में जानकारी दे रहा हूं।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार किसी भी शुक्ल पक्ष के शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी का ध्यान करते हुए मां लक्ष्मी की षोडशोपचार विधि से पूजन करें। इसके साथ ही घी का दीपक जलाएं और फिर ऋग्वेद में वर्णित श्री सूक्तम् का पाठ कर लें। अंत में आरती करके भूल चूक के लिए माफी मांग लेना चाहिए। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को धन संपदा तथा वैभव का ग्रह माना गया है। यदि कुंडली में शुक्र ग्रह उत्तम है तो सभी तरह की भौतिक सुख के साथ ही आध्यात्मिक सुख की भी प्राप्त हो सकती है। मां लक्ष्मी का शुक्र पर विशेष प्रभाव होता है। इसलिए मां लक्ष्मी की उपासना करने से स्वतः ही शुक्र ग्रह अच्छा हो जाता है।
श्री सूक्त पाठ को करने से व्यक्ति को अपने जीवन में धन, संपदा और वैभव आदि का लाभ मिलता है।
श्री सूक्त का पाठ करने या इसके श्रवण (सुनने) से व्यक्ति को वाहन,मकान,समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा आदि की भी प्राप्ति होती है।
 श्रीसूक्तम् 
।। अथ श्री सुक्तम्।।
ॐ हिरण्यवर्णाम हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥१॥
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्॥२॥
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मादेवी जुषताम्॥३॥
कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारां आद्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वयेश्रियम्॥४॥
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियंलोके देव जुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥५॥
आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तववृक्षोथ बिल्व:।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मी:॥६॥
उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्चमणिना सह।
प्रादुर्भुतो सुराष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृध्दिं ददातु मे॥७॥
क्षुत्पपासामलां जेष्ठां अलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृध्दिं च सर्वानिर्णुद मे गृहात॥८॥
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरिं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्॥९॥
मनस: काममाकूतिं वाच: सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्री: श्रेयतां यश:॥१०॥
कर्दमेनप्रजाभूता मयिसंभवकर्दम।
श्रियं वासयमेकुले मातरं पद्ममालिनीम्॥११॥
आप स्रजन्तु सिग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले॥१२॥
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टि पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥१३॥
आर्द्रां य: करिणीं यष्टीं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आवह॥१४॥
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।।१५॥
य: शुचि: प्रयतोभूत्वा जुहुयाादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्च च श्रीकाम: सततं जपेत्॥१६॥
पद्मानने पद्मउरू पद्माक्षि पद्मसंभवे।
तन्मे भजसि पद्मक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्॥१७॥
अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने।
धनं मे लभतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे॥१८॥
पद्मानने पद्मविपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विष्णुमनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधस्त्वं॥१९॥
पुत्रपौत्रं धनंधान्यं हस्ताश्वादिगवेरथम्।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे॥२०॥
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्योधनं वसु।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरूणं धनमस्तु मे॥२१॥
वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृतहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिन:॥२२॥
न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभामति:।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्॥२३॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांसुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीदमह्यम्॥२४॥
विष्णुपत्नीं क्षमां देवी माधवी माधवप्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम्॥२५॥
महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात्॥२६॥
श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते।
धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायु:॥२७॥
ओम् शान्तिः।। शान्तिः।। शान्तिः॥
॥इति श्रीसूक्तं सम्पूर्णम्॥
लेखक परिचय- Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच 
Nakshatra Jyotish Sansthaan 
नक्षत्र ज्योतिष संस्थान, नागौर 
(कुंडली विश्लेषक वास्तुविद एवं अंक ज्योतिषी)
panditanjanikumardadhich@gmail.com
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Thursday, 13 June 2024

॥ अथ श्री पुरुष सूक्तम्॥

श्री पुरुष सूक्तम् 

मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच इस लेख में श्री पुरुष सूक्तम् के बारे में जानकारी दे रहा हूं।

पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पुजा करते हुए श्री पुरुष सूक्तम् का पाठ करना चाहिए जो ऋग्वेद से लिया गया है। श्री पुरुष सूक्तम् स्तोत्र भगवान विष्णु को समर्पित है। यह एक बहुत ही शक्तिशाली पाठ है। इसके प्रतिदिन पाठ से साधक मेंं आध्यात्मिक शक्ति उत्पन्न होती है।

श्री पुरुष सूक्तम् का नित्य प्रतिदिन पाठ करने से साधक के जीवन पर बहुत से सकारात्मक प्रभाव पड़ते है। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार श्री पुरुष सूक्त का पाठ करने से होने वाले लाभ निम्नलिखित है –

श्री पुरुष सूक्त के पाठ से मन को शांति मिलती है।

श्री पुरुष सूक्त का नित्य पाठ मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत उपयोगी है और इससे उन्हे मधुमेह में चमत्कारिक लाभ मिलता है।

जिनके संतान न हो रही हो उन्हें श्री पुरुष सूक्त का नित्य पाठ करना चाहिए इससे उन्हे जल्द ही संतान प्राप्त होगी।

पुत्र प्राप्ति के लिये भी श्री पुरूष सुक्त का पाठ विशेष फलदायी है। इसका विधिवत पाठ करने से पुत्र प्राप्ति की इच्छा पूर्ण होती है।

श्री पुरुष सूक्त का पाठ करने से वैवाहिक जीवन में खुशियाँ आती है।

श्री पुरुष सूक्त का पाठ करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है।

श्री पुरुष सूक्तम् 

॥ अथ श्री पुरुष सूक्तम्॥
ओम् सहस्त्रशीर्षा पुरुष:सहस्राक्ष:सहस्रपात्। 
स भूमि सर्वत: स्पृत्वाSत्यतिष्ठद्द्शाङ्गुलम् ॥
पुरुषSएवेदं सर्व यद्भूतं यच्च भाव्यम्। 
उतामृतत्यस्येशानो यदन्नेनातिरोहति॥
एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः। 
पादोSस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि॥
त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुष:पादोSस्येहाभवत्पुनः। 
ततो विष्वङ् व्यक्रामत्साशनानशनेSअभि॥
ततो विराडजायत विराजोSअधि पूरुषः। 
स जातोSअत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुर:॥
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत: सम्भृतं पृषदाज्यम्। 
पशूंस्न्ताँश्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये॥
तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतSऋचः सामानि जज्ञिरे।
 छन्दाँसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत॥
तस्मादश्वाSअजायन्त ये के चोभयादतः।
 गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाताSअजावयः॥
तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पूरुषं जातमग्रत:। 
तेन देवाSअयजन्त साध्याSऋषयश्च ये॥
यत्पुरुषं व्यदधु: कतिधा व्यकल्पयन्। 
मुखं किमस्यासीत् किं बाहू किमूरू पादाSउच्येते॥
ब्राह्मणोSस्य मुखमासीद् बाहू राजन्य: कृत:। 
ऊरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भ्या शूद्रोSअजायत॥
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षो: सूर्यो अजायत। 
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत॥
नाभ्याSआसीदन्तरिक्ष शीर्ष्णो द्यौः समवर्त्तत। 
पद्भ्यां भूमिर्दिश: श्रोत्रात्तथा लोकांर्Sअकल्पयन्॥
यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत। 
वसन्तोSस्यासीदाज्यं ग्रीष्मSइध्म: शरद्धवि:॥
सप्तास्यासन् परिधयस्त्रि: सप्त: समिध: कृता:। 
देवा यद्यज्ञं तन्वानाSअबध्नन् पुरुषं पशुम्॥
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
तेह नाकं महिमान: सचन्त यत्र पूर्वे साध्या: सन्ति देवा:॥
लेखक परिचय- Pandit Anjani Kumar Dadhich 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
Nakshatra Jyotish Sansthaan, Nagaur 
नक्षत्र ज्योतिष संस्थान, नागौर 
(कुंडली विश्लेषक वास्तुविद एवं अंक ज्योतिषी)
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Wednesday, 12 June 2024

श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र

श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्रम्
प्रिय पाठकों 
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच इस लेख में भगवान गणेश जी की आराधना और श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र के बारे में जानकारी दे रहा हूं।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार भगवान गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए बुधवार के दिन व्यक्ति को सुबह स्नान करने के बाद भगवान गणेशजी की मूर्ति या तस्वीर की पंचोपचार विधि से पूजन कर भगवान गणेश को दुर्वा की 21 गांठें अर्पित करें उसके बाद मोदक या बेसन के लड्डू का भोग लगाएं और नारद पुराण में वर्णित संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र नारद मुनि द्वारा की गई भगवान गणेशजी की स्तुति है। इसके पठन और श्रवण से संकटों का विनाश हो जाता है।श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ के साथ धन में भी वृद्धि होती है और व्यक्ति भयमुक्त हो जाता है। विद्यार्थी को विद्या तथा धन की कामना रखने वाले को धन और पुत्र की कामना रखने वालों को पुत्र की प्राप्ति होती है और साथ ही साथ श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र के नित्य पठन से व्यक्ति को इच्छित फल की और सद्बुद्धि की प्राप्ति होती है।
श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्रम् 
।। अथ श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्रम्।।
॥ श्री गणेशायनमः ॥
श्री नारद उवाच –
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम ।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये ॥1॥
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम ।
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम ॥2॥
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ॥3॥
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम ॥4॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर: ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो ॥5॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥
जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ॥7॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत: ॥8॥
॥ इति श्रीनारदपुराणे संकष्टनाशनं गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्‌ ॥
Pandit Anjani Kumar Dadhich 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
(कुंडली विश्लेषक वास्तुविद एवं अंक ज्योतिषी)
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Tuesday, 11 June 2024

हनुमान पचासा

हनुमान पचासा
मंगलवार के दिन हनुमान जी की पुजा कर कवि मान द्वारा रचित हनुमान पचासा का पाठ करने से व्यक्ति को मनोवांछित फल मिलता है और समस्त भय दूर होते है।
हनुमान पचासा का पाठ करने से व्यक्ति को भौतिक सुख, संपत्ति, समृद्धि के साथ सुरक्षा और हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है। हनुमान पचासा के पाठ करने से शत्रुओ का विनाश भी होता है।
हनुमान पचासा
।।अथ श्री हनुमान पचासा।।
जय हनुमान दास रघुपति के।
कृपामहोदधि अथ शुभ गति के।।
आंजनेय अतुलित बलशाली।
महाकाय रविशिष्य सुचाली।।
शुद्ध रहे आचरण निरंतर।
रहे सर्वदा शुचि अभ्यंतर।।
बंधु स्नेह का ह्रास न होवे।
मर्यादा का नाश न होवे।।
बैरी का संत्रास न होवे।
व्यसनों का अभ्यास न होवे।।
मारूतनंदन शंकर अंशी।
बाल ब्रह्मचारी कपि वंशी।।
रामदूत रामेष्ट महाबल।
प्रबल प्रतापी होवे मंगल।।
उदधिक्रमण सिय शोक निवारक।
महावीर नृप ग्रह भयहारक।।
जय अशोक वन के विध्वंशक।
संकट मोचन दु:ख के भंजक।।
जय राक्षस दल के संहारक।
रावण सुत अक्षय के मारक।।
भूत पिशाच न उन्हें सताते।
महावीर की जय जो गाते।।
अशुभ स्वप्न शुभ करनेवाले।
अशकुन के फल हरनेवाले।।
अरिपुर अभय जलानेवाले।
लक्ष्मण प्राण बचानेवाले।
देह निरोग रहे बल आए।
आधि व्याधि मत कभी सताए।
पीडक श्वास समीर नहीं हो।
ज्वर से प्राण अधीर नहीं हो।।
तन या मन में शूल न होवे।
जठरानल प्रतिकूल न होवे।।
रामचंद्र की विजय पताका।
महामल्ल चिरयुव अति बांका।।
लाल लंगोटी वाले की जय।
भक्तों के रखवालों की जय।।
हे हठयोगी धीर मनस्वी।
रामभक्त निष्काम तपस्वी।।
पावन रहे वचन मन काया।
छले नहीं बहुरूपी माया।।
बनूं सदाशय प्रज्ञाशाली।
करो कुभावों से रखवाली।।
कामजयी हो कृपा तुम्हारी।
मां समभाषित हो पर नारी।।
कुमति कदापि निकट मत आए।
क्रोध नहीं प्रतिशोध बढाए।।
बल धन का अभिमान न छाए।
प्रभुता कभी न मद भर पाए।।
मति मेरी विवेक मत छोडे।
ज्ञान भक्ति से नाता जोडे।।
विद्या मान न अहं बढाए।
मन सच्चिदानंद को पाए।।
तन सिंदूर लगानेवाले।
मन सियाराम बसानेवाले।।
उर में वास करे रघुराई।
वाम भाग शोभित सिय माई।।
सिन्धु सहज ही पार किया है।
भक्तों का उद्धार किया है।।
पवनपुत्र ऐसी करूणाकर।
पार करूं मैं भी भवसागर।।
कपि तन में देवत्व मिला है।
देह सहित अमरत्व मिला है।।
रामायण सुन आनेवाले।
रामभजन मिल गानेवाले।।
प्रीति बढे सियाराम कथा से।
भीति न हो त्रयताप व्यथा से।।
राम भक्ति की तुम परिभाषा।
पूर्ण करो मेरी अभिलाषा।।
याद रहे नर देह मिला है।
हरि का दुर्लभ स्नेह मिला है।।
इस तन से प्रभु को पाना है।
पुन: न इस जग में आना है।।
विफल सुयोग न होने पाए।
बीत सुअवसर कहीं न जाए।।
धन्य करूं मैं इस जीवन को।
सदुपयोग करके हर क्षण को।।
मानव तन का लक्ष्य सफल हो।
हरि पद में अनुराग अचल हो।।
धर्म पंथ पर चरण अटल हो।
प्रतिपल मारूति का संबल हो।।
कालजयी सियराम सहायक।
स्नेह विवश वश में रघुनायक।।
सर्व सिद्धि सुत संपत्ति दायक।
सदा सर्वथा पूजन लायक।।
जो जन शरणागत हो जाते।
त्रिभुजी लाल ध्वजा फहराते।1
कलि के दोष न उन्हें दबाते।
सद्गुण आ उनको अपनाते।।
भ्रांत जनों के पंथ निदेशक।
रामभक्ति के तुम उपदेशक।।
निरालम्ब के परम सहारे।
रामचंद्र भी ऋणी तुम्हारे।।
त्राहि पाहि हूं शरण तुम्हारी।
शोक विषाद विपद भयहारी।।
क्षमा करो सब अपराधों को।
पूर्ण करो संचित साधो को।।
बारंबार नमन हे कपिवर।
दूर करो बाधाएं सत्वर।।
बरसाओं सौभाग्य वृष्टि को।
रखो सर्वदा दयादृष्टि को।।
पाठ पचासा का करे , जो प्राणी प्रतिबार।
श्रद्धानंद सफल उसे, करते पवनकुमार।।
पवनपुत्र प्रात: कहे, मध्य दिवस हनुमान।
महावीर सायं कहे , हो निश्चय कल्याण।।
करें कृपा जन जानकर , हरें हृदय की पीर।
बास करे मन में सदा, सिया सहित रघुवीर ।
।। इति श्री मानरचित हनुमान पचासा सम्पूर्ण।।
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