google24482cba33272f17.html Pandit Anjani Kumar Dadhich : January 2022

Friday, 28 January 2022

टाइगर स्टोन

टाइगर स्टोन
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार टाइगर स्टोन उस व्यक्ति को गजब का आत्मविश्वास प्रदान करता है जो व्यक्ति आत्मविश्वास की कमी के कारण बार-बार व्यवसाय और अन्य कार्यों में असफल होकर  दुखी जीवन व्यतीत कर रहा है साथ ही वह अपने आप को डरपोक, उदासीन महसूस कर रहा है तो ऐसे व्यक्ति को टाइगर के समान पीली एवं काली धारियां वाला टाइगर स्टोन नामक रत्न धारण करना चाहिए। इस रत्न में पीली एवं काली धारियां होने के कारण इसे टाइगर स्टोन कहते हैं। टाइगर स्टोन को ही टाइगर आई के नाम से जाना जाता है। टाइगर स्टोन को धारण करने वाले व्यक्ति साहसी एवं पुरुषार्थी बन जाते हैं और उनको हर कार्य में पूर्ण सफलता मिलती है। शेर जैसा आत्मबल और साहस भी यह रत्न प्रदान करने में सक्षम है।

Thursday, 13 January 2022

पुत्रदा एकादशी

पुत्रदा एकादशी 
प्रिय पाठकों, 
13 जनवरी 2022, गुरुवार
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज पुत्रदा एकादशी के बारे में यहाँ जानकारी दे रहा हूँ।

पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार आज 13 जनवरी 2022 गुरुवार को सनातन धर्म के पंचांग के आधार पर पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं। इसके अलावा इस एकादशी को वैकुण्ठ एकादशी और मुक्कोटी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।  
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार धार्मिक शास्त्रों में योग्य संतान की प्राप्ति के लिए इस व्रत को उत्तम माना जाता है। कहते हैं कि इस व्रत के प्रभाव से संतान को संकटों से मुक्ति मिलती है।
पौष पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ लड्डू गोपाल की पूजा अवश्य करनी चाहिए। लड्डू गोपाल का गंगाजल,पंचामृत में तुलसीदल डालकर अभिषेक कराना चाहिए। केसर, कुमकुम, मोली, अक्षत,पीले पुष्प प्रसाद और पुष्पमाला आदि लड्डू गोपाल को अर्पित कर पूजा करे। ऐसा करने से आपकी संतान से संबंधित सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
पुत्रदा एकादशी के दिन निम्नलिखित उपाय भी करना चाहिए -
☞ पुत्रदा एकादशी के दिन संतान गोपाल सहस्रनाम का पाठ करने से संतान सुख की प्राप्ति तथा संतान संबंधित कष्ट दूर होते हैं।
☞ पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा कर विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ भी करना चाहिए। जिससे घर में शांति और सुख समृद्धि आदि बनी रहती है।
लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
Nakshatra jyotish Hub
नक्षत्र ज्योतिष हब
Panditanjanikumardadhich@gmail.com
Phone No-6377054504,941486329

Wednesday, 12 January 2022

श्रीगणेश सहस्त्रनाम स्तोत्र

श्रीगणेश सहस्त्रनाम स्तोत्र 
प्रिय पाठकों, 
12 जनवरी 2022, बुधवार
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज श्रीगणेश सहस्त्रनाम स्तोत्र के बारे में यहाँ जानकारी दे रहा हूँ।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार किसी भी शुक्ल पक्ष के बुधवार के दिन से शुरू करके प्रत्येक दिन श्रीगणेश सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, धैर्य, शौर्य, बल, यश, बुद्धि, कांति, सौभाग्य, रूप-सौंदर्य, संसार को वशीकरण करने की शक्ति, शास्त्रार्थ में निपुणता, उच्च कोटि की वाक शक्ति, शील, वीर्य, धन-धान्य की वृद्धि आदि प्राप्त होते हैं।
इसके अलावा श्रीगणेश सहस्त्रनाम का पाठ करने से कुंडली के दोष, वास्तु दोष, पितृ दोष आदि शांत होते हैं और परेशानियां कम होने लगती हैं।
श्री गणेश सहस्त्रनामावली
॥ॐ गणपतये नमः ॥ ॐ गणेश्वराय नमः ॥ ॐ गणक्रीडाय नमः ॥
ॐ गणनाथाय नमः ॥ ॐ गणाधिपाय नमः ॥ ॐ एकदंष्ट्राय नमः ॥
ॐ वक्रतुण्डाय नमः ॥ ॐ गजवक्त्राय नमः ॥ ॐ मदोदराय नमः ॥
ॐ लम्बोदराय नमः ॥ ॐ धूम्रवर्णाय नमः ॥ ॐ विकटाय नमः ॥
ॐ विघ्ननायकाय नमः ॥ ॐ सुमुखाय नमः ॥ ॐ दुर्मुखाय नमः ॥ॐ बुद्धाय नमः ॥ ॐ विघ्नराजाय नमः ॥ ॐ गजाननाय नमः ॥
ॐ भीमाय नमः ॥ ॐ प्रमोदाय नमः ॥ ॐ आनन्दाय नमः ॥
ॐ सुरानन्दाय नमः ॥ ॐ मदोत्कटाय नमः ॥ ॐ हेरम्बाय नमः॥
ॐ शम्बराय नमः ॥ ॐ शम्भवे नमः ॥ ॐ लम्बकर्णाय नमः ॥
ॐ महाबलाय नमः ॥ ॐ नन्दनाय नमः ॥ ॐ अलम्पटाय नमः ॥
ॐ भीमाय नमः ॥ ॐ मेघनादाय नमः ॥ ॐ गणञ्जयाय नमः ॥
ॐ विनायकाय नमः ॥ ॐ विरूपाक्षाय नमः ॥ ॐ धीराय नमः ॥
ॐ शूराय नमः ॥ ॐ वरप्रदाय नमः ॥ ॐ महागणपतये नमः ॥
ॐ बुद्धिप्रियाय नमः ॥ ॐ क्षिप्रप्रसादनाय नमः ॥ ॐ रुद्रप्रियाय नमः ॥
ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ ॐ उमापुत्राय नमः ॥ ॐ अघनाशनाय नमः ॥
 ॐ कुमारगुरवे नमः ॥ ॐ ईशानपुत्राय नमः ॥ ॐ मूषकवाहनाय नः ॥
ॐ सिद्धिप्रदाय नमः ॥ ॐ सिद्धिपतये नमः ॥ ॐ सिद्ध्यै नमः ॥
ॐ सिद्धिविनायकाय नमः ॥ ॐ विघ्नाय नमः ॥ ॐ तुङ्गभुजाय नमः ॥
ॐ सिंहवाहनाय नमः ॥ ॐ मोहिनीप्रियाय नमः ॥ ॐ कटिंकटाय नमः ॥
ॐ राजपूत्राय नमः ॥ ॐ शकलाय नमः ॥ ॐ सम्मिताय नमः ॥ॐ अमिताय नमः ॥ ॐ कूश्माण्डगणसम्भूताय नमः ॥ ॐ दुर्जयाय नमः ॥
ॐ धूर्जयाय नमः ॥ ॐ अजयाय नमः ॥ ॐ भूपतये नमः ॥
ॐ भुवनेशाय नमः ॥ ॐ भूतानां पतये नमः ॥ ॐ अव्ययाय नमः ॥
ॐ विश्वकर्त्रे नमः ॥ ॐ विश्वमुखाय नमः ॥ ॐ विश्वरूपाय नमः ॥
ॐ निधये नमः ॥ ॐ घृणये नमः ॥ ॐ कवये नमः ॥
 ॐ कवीनामृषभाय नमः ॥ ॐ ब्रह्मण्याय नमः ॥ ॐ ब्रह्मणस्पतये नमः ॥
ॐ ज्येष्ठराजाय नमः ॥ ॐ निधिपतये नमः ॥ ॐ निधिप्रियपतिप्रियाय नमः ॥
ॐ हिरण्मयपुरान्तस्थाय नमः ॥ ॐ सूर्यमण्डलमध्यगाय नमः
॥ ॐ कराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलाय नमः ॥ ॐ पूषदन्तभृते नमः ॥
ॐ उमाङ्गकेळिकुतुकिने नमः ॥ ॐ मुक्तिदाय नमः ॥ ॐ कुलपालकाय नमः ॥ॐ किरीटिने नमः ॥ ॐ कुण्डलिने नमः ॥ ॐ हारिणे नमः ॥ ॐ वनमालिने नमः ॥
ॐ मनोमयाय नमः ॥ ॐ वैमुख्यहतदृश्यश्रियै नमः ॥ ॐ पादाहत्याजितक्षितये नमः ॥
ॐ सद्योजाताय नमः ॥ ॐ स्वर्णभुजाय नमः ॥ ॐ मेखलिन नमः ॥
ॐ दुर्निमित्तहृते नमः ॥ ॐ दुस्स्वप्नहृते नमः ॥ ॐ प्रहसनाय नमः ॥
ॐ गुणिने नमः ॥ ॐ नादप्रतिष्ठिताय नमः ॥ ॐ सुरूपाय नमः ॥ॐ सर्वनेत्राधिवासाय नमः ॥ ॐ वीरासनाश्रयाय नमः ॥ ॐ पीताम्बराय नमः ॥
ॐ खड्गधराय नमः ॥ ॐ खण्डेन्दुकृतशेखराय नमः ॥
ॐ चित्राङ्कश्यामदशनाय नमः ॥ ॐ फालचन्द्राय नमः ॥ ॐ चतुर्भुजाय नमः ॥
ॐ योगाधिपाय नमः ॥ ॐ तारकस्थाय नमः ॥ ॐ पुरुषाय नमः ॥
ॐ गजकर्णकाय नमः ॥ ॐ गणाधिराजाय नमः ॥ ॐ विजयस्थिराय नमः ॥
ॐ गणपतये नमः ॥ ॐ ध्वजिने नमः ॥ 
ॐ देवदेवाय नमः ॥
ॐ स्मरप्राणदीपकाय नमः ॥
 ॐ वायुकीलकाय नमः ॥ ॐ विपश्चिद्वरदाय नमः ॥
ॐ नादाय नमः ॥ ॐ नादभिन्नवलाहकाय नमः ॥ ॐ वराहवदनाय नमः ॥
ॐ मृत्युञ्जयाय नमः ॥ 
ॐ व्याघ्राजिनाम्बराय नमः ॥ 
ॐ इच्छाशक्तिधराय नमः ॥
ॐ देवत्रात्रे नमः ॥ ॐ दैत्यविमर्दनाय नमः ॥ ॐ शम्भुवक्त्रोद्भवाय नमः ॥
ॐ शम्भुकोपघ्ने नमः ॥ ॐ शम्भुहास्यभुवे नमः ॥ ॐ शम्भुतेजसे नमः ॥
ॐ शिवाशोकहारिणे नमः ॥ ॐ गौरीसुखावहाय नमः ॥ ॐ उमाङ्गमलजाय नमः ॥
ॐ गौरीतेजोभुवे नमः ॥ ॐ स्वर्धुनीभवाय नमः ॥ ॐ यज्ञकायाय नमः ॥
ॐ महानादाय नमः ॥ ॐ गिरिवर्ष्मणे नमः ॥ ॐ शुभाननाय नमः ॥
ॐ सर्वात्मने नमः ॥ ॐ सर्वदेवात्मने नमः ॥ ॐ ब्रह्ममूर्ध्ने नमः ॥ॐ ककुप्छ्रुतये नमः ॥ ॐ ब्रह्माण्डकुम्भाय नमः ॥ ॐ चिद्व्योमफालाय नमः ॥
ॐ सत्यशिरोरुहाय नमः ॥ ॐ जगज्जन्मलयोन्मेषनिमेषाय नमः ॥
ॐ अग्न्यर्कसोमदृशे नमः ॥ ॐ गिरीन्द्रैकरदाय नमः ॥ ॐ धर्माय नमः ॥
ॐ धर्मिष्ठाय नमः ॥ ॐ सामबृंहिताय नमः ॥ ॐ ग्रहर्क्षदशनाय नमः ॥
ॐ वाणीजिह्वाय नमः ॥ ॐ वासवनासिकाय नमः ॥ ॐ कुलाचलांसाय नमः ॥ॐ सोमार्कघण्टाय नमः ॥ ॐ रुद्रशिरोधराय नमः ॥ ॐ नदीनदभुजाय नमः ॥
ॐ सर्पाङ्गुळिकाय नमः ॥ ॐ तारकानखाय नमः ॥ ॐ भ्रूमध्यसंस्थतकराय नमः ॥
ॐ ब्रह्मविद्यामदोत्कटाय नमः ॥ ॐ व्योमनाभाय नमः ॥ ॐ श्रीहृदयाय नमः ॥
ॐ मेरुपृष्ठाय नमः ॥ ॐ अर्णवोदराय नमः ॥
ॐ कुक्षिस्थयक्षगन्धर्वरक्षः किन्नरमानुषाय नमः ॥
।। इति समाप्त ।।
लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
Nakshatra jyotish Hub
नक्षत्र ज्योतिष हब
Panditanjanikumardadhich@gmail.com
Phone No-6377054504,941486329

Tuesday, 11 January 2022

हनुमान वडवानल स्तोत्र

11 जनवरी 2022, मंगलवार
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार लंकापति रावण के छोटे भाई विभीषण ने हनुमानजी की  स्तुति करते हुए एक स्तोत्र की रचना की जो हनुमान वडवानल स्तोत्र के नाम से विख्यात हैं। 
इस स्तोत्र के पाठ करने से बड़ी-से-बड़ी विपत्ति या संकट,शत्रु-बाधा, सभी प्रकार के तंत्र-मंत्र, बंधन, प्रयोग, भूत-बाधा आदि नष्ट हो जाते है और हनुमान जी के कृपा से सुख-सम्पत्ति की भी वृद्धि होती है।
किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार या शनिवार को प्रात:काल उठकर नित्य कर्म करके स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद पूजा स्थल को शुद्ध कर एक चौकी पर लाल आसन पर हनुमानजी, गणेश जी, भगवान श्रीराम और माता जानकी की मूर्ति या चित्र को रखकर सामने आसन पर बैठकर पंचोपचार पूजन विधि से सबसे पहले गणेश जी भगवान श्रीराम और माता जानकी उसके बाद हनुमान जी की पूजा करते हुए सरसों के तेल का दीपक जलाकर हनुमानजी के सम्मुख रखना चाहिए।
उसके बाद हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। यह पाठ लगातार 41 दिनों तक करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इन 41 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और सात्विक भोजन करने के साथ-साथ सभी प्रकार के व्यभिचार से दूर रहना चाहिए।

विनियोग:- ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषि:, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल- राज- कुल- संमोहनार्थे, मम समस्त- रोग प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त- पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये।

ध्यान:- मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।

वडवानल स्तोत्र :- ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम सकल- दिङ्मण्डल- यशोवितान- धवलीकृत- जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिर: कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार- ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व- पाप- ग्रह- वारण- सर्व- ज्वरोच्चाटन डाकिनी- शाकिनी- विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दु:ख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा ।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्र: आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु शिर:-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय नागपाशानन्त- वासुकि- तक्षक- कर्कोटकालियान् यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा।

लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
Nakshatra jyotish Hub
नक्षत्र ज्योतिष हब
Panditanjanikumardadhich@gmail.com
Phone No-6377054504,9414863294
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार लंकापति रावण के छोटे भाई विभीषण ने हनुमानजी की  स्तुति करते हुए एक स्तोत्र की रचना की जो हनुमान वडवानल स्तोत्र के नाम से विख्यात हैं। 
इस स्तोत्र के पाठ करने से बड़ी-से-बड़ी विपत्ति या संकट,शत्रु-बाधा, सभी प्रकार के तंत्र-मंत्र, बंधन, प्रयोग, भूत-बाधा आदि नष्ट हो जाते है और हनुमान जी के कृपा से सुख-सम्पत्ति की भी वृद्धि होती है।
किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार या शनिवार को प्रात:काल उठकर नित्य कर्म करके स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद पूजा स्थल को शुद्ध कर एक चौकी पर लाल आसन पर हनुमानजी, गणेश जी, भगवान श्रीराम और माता जानकी की मूर्ति या चित्र को रखकर सामने आसन पर बैठकर पंचोपचार पूजन विधि से सबसे पहले गणेश जी भगवान श्रीराम और माता जानकी उसके बाद हनुमान जी की पूजा करते हुए सरसों के तेल का दीपक जलाकर हनुमानजी के सम्मुख रखना चाहिए।
उसके बाद हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। यह पाठ लगातार 41 दिनों तक करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इन 41 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और सात्विक भोजन करने के साथ-साथ सभी प्रकार के व्यभिचार से दूर रहना चाहिए।

विनियोग:- ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषि:, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल- राज- कुल- संमोहनार्थे, मम समस्त- रोग प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त- पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये।

ध्यान:- मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।

वडवानल स्तोत्र :- ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम सकल- दिङ्मण्डल- यशोवितान- धवलीकृत- जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिर: कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार- ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व- पाप- ग्रह- वारण- सर्व- ज्वरोच्चाटन डाकिनी- शाकिनी- विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दु:ख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा ।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्र: आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु शिर:-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय नागपाशानन्त- वासुकि- तक्षक- कर्कोटकालियान् यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा।

लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
Nakshatra jyotish Hub
नक्षत्र ज्योतिष हब
Panditanjanikumardadhich@gmail.com
Phone No-6377054504,9414863294

Monday, 10 January 2022

शिव रक्षा स्तोत्र

शिव रक्षा स्तोत्र 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार अगर कोई भी व्यक्ति अपने आपको और अपने परिवार को किसी भी प्रकार की कठिनाईयों, बुरी शक्तियों, रोगों, दुर्घटनाओं और दरिद्रता आदि से रक्षा करना चाहता है तो उसे प्रत्येक सोमवार को शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।शिव रक्षा स्तोत्र के रचयिता याज्ञवल्क्य ऋषि हैं। भगवान विष्णु ने याज्ञवल्क्य ऋषि के सपने में आकर इस स्तोत्र का वर्णन किया था। इसे शिव रक्षा कवच स्तोत्र या शिव अभयंकर कवच के नाम से भी जाना जाता है।
॥ श्री शिव रक्षा स्तोत्र ॥
॥ ओम् गं गणपतये नमः॥
श्री सदाशिवो देवता ॥ अनुष्टुप् छन्दः ।
श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थं शिवरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ॥
चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् ।
अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम् ॥ १॥
गौरीविनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम् ।
शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नरः ॥ २॥
गंगाधरः शिरः पातु भालं अर्धेन्दुशेखरः ।
नयने मदनध्वंसी कर्णो सर्पविभूषण ॥ ३॥
घ्राणं पातु पुरारातिः मुखं पातु जगत्पतिः ।
जिह्वां वागीश्वरः पातु कंधरां शितिकंधरः ॥ ४॥
श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धरः ।
भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक् ॥ ५॥
हृदयं शंकरः पातु जठरं गिरिजापतिः ।
नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्राजिनाम्बरः ॥ ६॥
सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागतवत्सलः ।
उरू महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः ॥ ७॥
जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः ।
चरणौ करुणासिंधुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः ॥ ८॥
एतां शिवबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् ।
स भुक्त्वा सकलान्कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात् ॥ ९॥
ग्रहभूतपिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये ।
दूरादाशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात् ॥ १० ॥
अभयङ्करनामेदं कवचं पार्वतीपतेः ।
भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम् ॥ ११॥
इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथाऽऽदिशत् ।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यः तथाऽलिखत् ॥ १२॥
॥ इति शिव रक्षा स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
अस्य श्रीशिवरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषिः ।

Saturday, 8 January 2022

श्रीगणेश पंचरत्न स्तोत्र

श्रीगणेश पंचरत्न स्तोत्र 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार किसी भी शुक्ल पक्ष के बुधवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर भगवान गणेशजी की पूजा कर आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा निर्मित श्री गणेश पंचरत्न स्तोत्र का पाठ करने से हर मनोकामना पूरी होती है और व्यक्ति को रोग,अपयश, और अकाल मृत्यु से भी बचाव होता है।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश पाहिमाम,
जय गणेश जय गणेश जय गणेश रक्षमाम।
मुदाकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं
कलाधरावतंसकं विलासिलोकरक्षकम् ।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं
नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥१॥
नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं
नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥
समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं
दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥
अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं
पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणम्
कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥
नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं
अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥५॥
महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां
समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥६॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश पाहिमाम,
जय गणेश जय गणेश जय गणेश रक्षमाम।

Friday, 7 January 2022

सूर्य शनि की युति

सूर्य-शनि की युति के परिणाम एवं उपाय
प्रिय पाठकों, 
07 जनवरी 2022,शुक्रवार
मैं पंडित अंजनी कुमार दाधीच आज सूर्य-शनि की युति उसका परिणाम एवं उपाय के बारे में यहाँ जानकारी दे रहा हूँ।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार वैदिक ज्योतिष के आधार पर सूर्य समस्त जीव-जगत के आत्मा स्वरूप हैं। इसके द्वारा व्यक्ति को जीवन, ऊर्जा प्रकाश एवं बल की प्राप्ति होती है। जबकि वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह को एक क्रूर ग्रह माना जाता है। शनि ग्रह को आयु, दुख, रोग, पीड़ा, विज्ञान, तकनीकी, लोहा, खनिज तेल, कर्मचारी, सेवक, जेल आदि का कारक माना जाता है। पंडित अंजनी कुमार के अनुसार वैदिक धर्मशास्‍त्रों में सूर्य और शनि देव के पिता एवं पुत्र का संबंध हैं किंतु इन दोनों के बीच का संबंध अच्‍छा नहीं है।शनि देव अपने पिता सूर्य से नाराज रहते हैं।वैसे भी अगर दोनों की प्रकृति का विचार करें तो ज्ञान और अंधकार साथ मिलने पर शुभ प्रभाव नहीं देते है सूर्य-शनि युति व्यक्ति के जीवन को पूर्णत: संघर्षमय बनती हैं। पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार यदि सूर्य शनि की युति हो तो पिता और पुत्र में वैचारिक मतभेद बने रहते हैं। यह युति व्यक्ति के पिता से संबंध, व्यक्ति के स्वास्थ्य तथा व्यक्ति के अपने कार्यक्षेत्र तथा मान-सम्मान में कमी करती है।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार सूर्य-शनि की युति से होने वाले परिणाम निम्नलिखित है- सूर्य-शनि की युति से होने पर शनि के दुष्प्रभाव से युति वाले भाव तथा उससे सप्तम भाव के फलादेश में न्यूनता आती है। सूर्य शनि के एक साथ होने के कारण पिता पुत्र के संबंधों में समस्या पैदा होती है और व्यक्ति के के अपने पिता से संबंध अच्छे नहीं रहते है। पिता और पुत्र का आपसी व्यवहार अच्छा नहीं होता है और कभी कभी एक दूसरे से दूर हो जाते हैं। कभी कभी पिता पुत्र में से एक ही उन्नति कर पाता है, अतः इस युति को ‘विच्छेदकारी योग की संज्ञा दी गई हैं।सूर्य के अधिक निर्बल होने पर पिता का साया जल्दी उठ जाता है या व्यक्ति अपने पिता से अलग हो जाता है। इसी प्रकार संबंधियों से भी अलगाव होता है। व्यक्ति का स्वास्थ्य में भी गड़बड़ रहती है। व्यक्ति की वाणी में संयम नहीं रह पाता है इसी कारण काम बिगड़ सकते हैं। व्यक्ति को धन संबंधी परेशानियां भी हो सकती हैं। इस युति के कारण वैवाहिक जीवन खराब होता है। कभी कभी दो विवाहों के योग भी बन जाते हैं। 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार जब यह युति लग्न, पंचम, नवम या दशम में हो व दोनों (सूर्य-शनि) में से कोई ग्रह इन भावों का कारक भी हो तो यह योग जीवन में विलंब लाता है। बेहद मेहनत के बाद कठिनाई से सफलता मिलती है।इस युति से ग्रस्त व्यक्ति लागातार संघर्ष से निराश हो जाता है डिप्रेशन में भी आ जाता हैं। यदि शनि उच्च का हो व कारक हो तो 36वें वर्ष के बाद, अपनी दशा-महादशा में सफलता जरूर देता है। 
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार सूर्य शनि युति से होने वाले दुष्प्रभाव से बचने हेतु कुछ उपाय निम्नलिखित है-
☞सूर्य-शनि युति होने पर व्यक्ति को सतत परिश्रम के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। 
☞अपने पिता से मतभेद टालने चाहिए।
☞अपना ज्यादा समय ज्ञानार्जन में उपयोग करें। 
☞आध्यात्मिक साधना से अपना मनोबल मजबूत करना चाहिए। 
☞सूर्य व शनि शांति के उपाय करने चाहिए।
☞शिव पञ्चाक्षरि मंत्र या महा मृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव की पूजा और शिवलिंग पर जलाभिषेक करना चाहिए।
☞प्रतिदिन सुबह-सुबह सूर्य को तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं और आदित्यह्रदय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए।
☞शनिवार को पीपल वृक्ष की शनिवार के दिन जल में कच्चा दूध मिलाकर पीपल की जड़ में अर्पित कर जड़ में तेल का दीपक जलाएं और पीपल की सात परिक्रमा करें।
☞पितरों की पूजा व तर्पण करें।
☞एक मुखी रूद्राक्ष को लाल धागे में डालकर रविवार के दिन गले में धारण करें या पूजा स्थान में स्थापित करें। 
☞शनिवार के दिन गरीबों को कंबल, चप्पल और कपड़े का दान करें। बंदरो को चने और गुड़ खिलाना ही हितकारी रहेगा।
☞सूर्य और शनि दोनों के दोष को दूर करने के लिए हनुमान जी के मंदिर में बैठकर हनुमान चालीसा या रामरक्षास्त्रोत्र का पाठ करना चाहिए।
☞सूर्य और शनि के मंत्र का जप करें, सूर्य मंत्र- ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नम:, शनि मंत्र- ऊँ शं श्नैश्चराय नम: का नित्य जाप करें।"
☞शनि स्तोत्र" का पाठ करे और असहाय लोगों की मदद करें।
☞शाम को तुलसी के नीचे घी का दीपक जलाएं।
उपाय करते रहने से सूर्य-शनि के दोष दूर हो जाते हैं।
लेखक - Pandit Anjani Kumar Dadhich
पंडित अंजनी कुमार दाधीच
Nakshatra jyotish Hub
नक्षत्र ज्योतिष हब
Panditanjanikumardadhich@gmail.com
Phone No-6377054504,9414863294