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16 फरवरी 2023, गुरुवार
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हिन्दू धर्म संस्कृति में रुद्राक्ष का बहुत महत्व है। रुद्राक्ष का संबंध भगवान शिव से है। इसी कारण से हिंदू धर्म के मानने वाले इसकी (रुद्राक्ष की) पूजा भी करते हैं।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार पौराणिक मान्यता के मुताबिक किसी कारणवश भगवान शिव की आंखों से आंसू निकल पड़े और इन्हीं आंसुओं से रुद्राक्ष के वृक्ष की उत्पत्ति हुई। इसी वजह से यह पवित्र और पूज्यनीय है।
रुद्राक्ष इंसान को हर तरह की हानिकारक ऊर्जा से बचाता है। इसका इस्तेमाल सिर्फ तपस्वियों ही नहीं बल्कि सांसारिक जीवन में रह रहे लोगों के लिए भी किया जाता है। रुद्राक्ष इंसानी जीवन में नकारात्मकता को कम करने में मदद करता है।
रुद्राक्ष की परख
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार रुद्राक्ष की परख करने के पश्चात ही रुद्राक्ष धारण करना चाहिए नहीं तो नुकसान उठाना पड़ सकता है इसलिए रुद्राक्ष का परिक्षण किया जाना चाहिए।असली रुद्राक्ष को सरसों के तेल में डालने से उसका रंग नहीं बदलता जबकि नकली रुद्राक्ष का रंग उड़ जाता है। असली रुद्राक्ष पानी में डूब जाता है, जबकि नकली रुद्राक्ष तैरता रहता है। असली रुद्राक्ष की पहचान के लिए अगर किसी नुकीली चीज से खुरचने पर उसमें से धागा निकलता है तो वह असली रुद्राक्ष है।
रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह बहुत ही लाभकारी माना गया है। रुद्राक्ष कई तरह के होते हैं सभी का प्रभाव अलग-अलग होता है।
परंतु इसे (रुद्राक्ष) धारण करने से पहले व्यक्ति को इसके विषय में जान लेना चाहिए जो निम्नलिखित है-
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार रुद्राक्ष की विशेषता यह है कि इसमें एक अनोखे तरह का स्पदंन होता है जो किसी भी व्यक्ति के लिए आंतरिक उर्जा को जागृत कर एक सुरक्षा कवच बना देता है जिससे बाहरी ऊर्जाएं आपको परेशान नहीं कर पातीं। रुद्राक्ष एक खास तरह के पेड़ का बीज है। ये पेड़ आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में एक खास ऊंचाई पर, खासकर हिमालय और पश्चिमी घाट सहित कुछ और जगहों पर भी पाए जाते हैं। अफसोस की बात यह है लंबे समय से इन पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल भारतीय रेल की पटरी बनाने में होने की वजह से, आज देश में बहुत कम रुद्राक्ष के पेड़ बचे हैं। आज ज्यादातर रुद्राक्ष नेपाल, बर्मा, थाईलैंड या इंडोनेशिया से लाए जाते हैं।
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार रुद्राक्ष धारण करने के कुछ नियम होते हैं जो निम्नलिखित है -
✷ रुद्राक्ष धारण करने से पहले इसे शिव जी को समर्पित करना चाहिए।
✷ रुद्राक्ष धारण करने वाले को सात्विक रहने के साथ-साथ आचरण को शुद्ध रखना चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने वालों को मांस, मदिरा आदि चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
✷ शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान भोलेनाथ जन्म और मृत्यु से परे हैं और उनके अंश(रुद्राक्ष) को भी जन्म और मृत्यु से जुड़े स्थानों पर नहीं पहनकर जाना चाहिए। इसी कारण से जब किसी की शवयात्रा में अगर शामिल हो रहे हैं तो रुद्राक्ष को उस वक्त धारण नहीं करना चाहिए और साथ ही रुद्राक्ष को कभी भी प्रसूति कक्ष अर्थात जहां बच्चे का जन्म हुआ है उस कक्ष में रुद्राक्ष को धारण करने से बचना चाहिए। हालांकि बच्चे के जातकर्म संस्कार पूरा हो जाने के बाद यह बंदिश खत्म हो जाती है।
✷ मानवीय क्रियाओं में कुछ ऐसी क्रियाएं होती है जब शरीर अशुद्ध हो जाता है। पहला शारीरिक संबंध क्रियान्वयन के दौरान रुद्राक्ष को धारण नहीं करना चाहिए और दूसरा महिलाओं को भी मासिक धर्म के दौरान रुद्राक्ष धारण करना वर्जित माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन परिस्थितियों में रुद्राक्ष में मौजूद शक्तियां निष्क्रिय हो जाती हैं।
✷ रुद्राक्ष को सोने से पहले हमेशा उतार देना चाहिए। क्योंकि जब इंसान सो जाता है तब शरीर निस्तेज और अशुद्ध रहता है। व्यवहारिक तौर पर भी देखें तो सोने के समय रुद्राक्ष के टूटने का डर भी रहता है इसलिए सोने से पहले इसको उतारने का विधान है। रुद्राक्ष को बिना स्नान किए नहीं छूना चाहिए। स्नान करने के बाद शुद्ध करके ही इसे धारण करें।
✷ रुद्राक्ष को एक बार निकाल लेने के बाद उस पवित्र स्थान पर रखना चाहिए जहां आप पूजा करते हैं। रुद्राक्ष को तुलसी की माला की तरह की पवित्र माना जाता है।
✷ रुद्राक्ष को धारण कर लिया है तो अब इसे किसी और को बिल्कुल न देंना चाहिए और इसके साथ ही दूसरे के द्वारा दी गई रुद्राक्ष को बिल्कुल धारण न करना चाहिए।
✷ रुद्राक्ष को कलाई, कंठ या गले पर धारण किया जाना चाहिए। इसे कंठ या गले में धारण करना सर्वोत्तम माना गया है। रुद्राक्ष की माला धारण करते समय यह ध्यान रखें कि रुद्राक्ष की संख्या हमेशा विषम होनी चाहिए।1, 27, 54 या 108 की संख्या में ही रुद्राक्ष धारण करना चाहिए और साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि माला 27 मनकों से कम की नहीं होनी चाहिए।
✷ रुद्राक्ष धारण करने का सबसे उचित समय सावन माह और महाशिवरात्रि है। इसके अलावा इसे सोमवार को भी धारण किया जा सकता है। रुद्राक्ष को धारण करते समय गंगाजल से शुद्ध करते हुए भगवान शिव का मनन करते हुए भगवान शिव के मंत्र 'ओम् नम: शिवाय' की माला का 108 बार जाप करते हुए धारण करना चाहिए।
✷ रुद्राक्ष को धारण करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वह (रुद्राक्ष) लाल धागे में पहना चाहिए।रुद्राक्ष को कभी भी काले धागे में धारण नहीं करना चाहिए। रुद्राक्ष को वैसे तो केवल धागे में माला की तरह पिरोकर भी धारण किया जा सकता है लेकिन इसके अलावा तांबा चांदी या सोने में जड़वाकर भी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
विभिन्न प्रकार के रुद्राक्ष और उनके फल
रूद्राक्ष एक से लेकर 21 मुखी तक होते हैं जिनका संबंध अलग-अलग देवी देवताओं से होता ही है साथ ही इन रूद्राक्षों के फायदे भी अलग-अलग होते हैं तो पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार हर प्रकार के रूद्राक्ष और उनसे होने वाले फल निम्नलिखित है -
एक मुखी रुद्राक्ष- यह साक्षात् शिव का स्वरुप माना जाता है। यह चैतन्य स्वरूप पारब्रह्म का प्रतीक है। इसे धारण करने वाले व्यक्ति के जीवन में किसी प्रकार का अभाव नही रहता तथा जीवन में धन, यश, मान-सम्मान, की प्राप्ति होती रहती है तथा लक्ष्मी चिर स्थाई रूप से उसके घर में निवास करती है। एकमुखी रूद्राक्ष को धारण करने से सभी प्रकार के मानसिक एवं शारीरिक रोगों का नाश होने लगता है तथा उसकी समस्त मनोकामनाएं स्वतः पूर्णं होने लगती हैं। सिंह राशि वालों के लिए अत्यंत शुभ होता है। जिनकी कुंडली में सूर्य से सम्बंधित समस्या है उन्हें इसे धारण करना चाहिए।
दो मुखी रुद्राक्ष- यह अर्धनारीश्वर स्वरुप माना जाता है।यह मान-सम्मान एवं बुद्धि को बढ़ाने वाला रुद्राक्ष है। इसे धारण करने से मन में शांति तथा चित्त में एकाग्रता आने से आध्यात्मिक उन्नति तथा सौभाग्य में वृद्धि होती है। कर्क राशि वालों के लिए यह रुद्राक्ष उत्तम परिणाम देता है।
तीन मुखी रुद्राक्ष- यह रुद्राक्ष अग्नि और तेज का स्वरुप होता है। इस रूद्राक्ष में ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की त्रिगुणात्मक शक्तियां समाहित होती हैं। यह परम शांति, खुशहाली दिलाने वाला रुद्राक्ष है। इसे धारण करने से घर में धन-धान्य, यश, सौभाग्य की वृद्धि होने लगती है। जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर होते हैं। उनके लिए यह अत्यंत लाभकारी होता है। मेष और वृश्चिक राशि वाले व्यक्तियों के लिए यह उत्तम माना जाता है। मंगल दोष के निवारण के लिए इसी रुद्राक्ष को धारण किया जाता है।
चार मुखी रुद्राक्ष- यह ब्रह्मा का स्वरुप माना जाता है।यह मनुष्य को धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष देने वाला है। जो सज्जन वेद,पुराण तथा संस्कृत विषयों के अध्यन में रूचि रखते हैं,उन्हें चार मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। इसे धारण करने वाले व्यक्ति की वाक शक्ति प्रखर तथा स्मरण शक्ति तीव्र हो जाती है और शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्ति अग्रणी हो जाता है। मिथुन और कन्या राशि के लिए यह सर्वोत्तम रुद्राक्ष है। त्वचा के रोगों, मानसिक क्षमता, एकाग्रता और रचनात्मकता में इसका विशेष लाभ होता।
पांच मुखी रुद्राक्ष - पांच मुखी रूद्राक्ष को साक्षात परमेश्वर रूद्र का स्वरूप बताया है। यह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है एवं माला के लिए इसी रूद्राक्ष का उपयोग किया जाता है। पंचमुखी रूद्राक्ष को किसी भी साधना में सिद्धि एवं पूर्णं सफलता दायक माना गया है। इसे धारण करने से जहरीले जंतु एवं भूत-प्रेत व जादू-टोने से रक्षा होती है तथा मानसिक शांति और प्रफुल्लता प्रदान करते हुए मनुष्य के समस्त प्रकार के पापों तथा रोगों को नष्ट करने में समर्थ है। इसको कालाग्नि भी कहा जाता है। इसको करने से मंत्र शक्ति और ज्ञान प्राप्त होता है। इसका संबंध बृहस्पति ग्रह से है।
छः मुखी रुद्राक्ष - इसको भगवान कार्तिकेय का स्वरुप माना जाता है।छःमुखी रूद्राक्ष को धारण करने से मनुष्य की खोई हुई शक्तियां पुनः जागृत होने लगती हैं। स्मरण शक्ति प्रबल तथा बुद्धि तीव्र होती है तथा धर्म, यश तथा पुण्य प्राप्त होता है। स्त्रियों के रोगों के लिए भी छह मुखी रुद्राक्ष अति उत्तम है। इसे ज्ञान और आत्मविश्नास के लिए खास माना जाता है। यह शुक्र ग्रह के लिए लाभकारी होता है।
सात मुखी रुद्राक्ष - इसको सप्तऋषियों का स्वरुप माना जाता है। इसे धारण करने से धन, संपति, कीर्ति और विजय की प्राप्ति होती है तथा कार्य व्यापार में निरंतर वृद्धि होती है। इसके धारण से मन्त्रों के जप का फल प्राप्त होता है। इससे आर्थिक संपन्नता प्राप्त होता है। इसका संबंध शनि ग्रह से है।
आठ मुखी रुद्राक्ष - इसे अष्टदेवियों का स्वरुप माना जाता है और देवों में प्रथम पूज्य गणेशजी का स्वरुप है। आठमुखी रुद्राक्ष धारण करने से लेखन कला में निपुण और रिद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है। इसे धारण करने से दिव्य ज्ञान की प्राप्ति, चित्त में एकाग्रता तथा मुकदमों में सफलता प्राप्त होती है। अष्टमुखी रुद्राक्ष अनेक प्रकार के शारीरिक रोगों को भी दूर करता है। इसे धारण करने से अष्टसिद्धियों की प्राप्ति में सहायता होती हैं। इसे राहु संबंधित समस्या से छुटकारा मिलता है।
नौ मुखी रुद्राक्ष- नौमुखी रूद्राक्ष नवदुर्गा तथा नवग्रह का स्वरुप होने के कारण अधिक फलदायक और परम सुखदायक है। इसे धारण करने से समस्त प्रकार की साधनाओं में सफलता प्राप्त होती है। यह अकाल मृत्यु निवारक, शत्रुओं को परास्त करने, मुकदमों में सफलता प्रदान करने तथा धन, यश तथा कीर्ति प्रदान करने में समर्थ है। इसे धारण करने से शक्ति, साहस और निडरता प्राप्त होती है। ये धन-सम्पत्ति, मान-सम्मान, यश बढ़ाने में सहायक साबित होता है।
दस मुखी रुद्राक्ष - दसमुखी रूद्राक्ष भगवान विष्णु का स्वरुप माना जाता है। इसे धारण करने से सभी प्रकार के लौकिक तथा पारलौकिक कामनाओं की पूति होती है। समस्त प्रकार के विघ्न बाधाओं तथा तांत्रिक बाधाओं से रक्षा करते हुए सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसे धारण करने से दमा, गठिया, पेट, और नेत्र संबंधी रोगों से छुटकारा मिलता है। इसके अलावा मुख्य रूप से नाकारात्मक शक्तियों से बचाता है।
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष - इसको धारण करन से आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। धार्मिक मान्यता है कि यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में सहयोगी होता है।
बारह मुखी रुद्राक्ष - इसको धारण करने से उदर रोग, ह्रदय रोग, मस्तिष्क से संबंधित रोगों में लाभ मिलता है। इसके अलावा सफलता प्राप्ति के लिए भी पहना जाता है।
तेरह मुखी रुद्राक्ष - इसको वैवाहिक जीवन को सफल बनाने के लिए पहना जाता है। इसका संबंध शुक्र ग्रह से है।
चौदह मुखी रुद्राक्ष - इसको धारण करने से छठी इंद्रीय जागृत होने और सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है।
गौरीशंकर रूद्राक्ष- इसे शिव तथा शक्ति का मिला हुआ स्वरूप माना गया है। यह प्राकृतिक रूप से वृक्ष पर ही जुड़ा हुआ उत्पन्न होता है। इसे धारण करने पर शिव तथा शक्ति की संयुक्त कृपा प्राप्त होती है, यह आर्थिक दृष्टि से पूर्णं सफलता दायक होता है। इसे गले में धारण करने से सुख-शांति, मान-सम्मान में वृद्धि होती है। दुःख-दरिद्रता आदि व्याधियां उस मनुष्य के पास नहीं आती हैं।
रुद्राक्ष धारण करने से होने वाले लाभ या फायदे निम्नलिखित है -
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार रुद्राक्ष पहनने से असंख्य लाभ (फायदे) होते हैं। इस बात में कोई भी संदेह नहीं है। विज्ञान भी रुद्राक्ष की चमत्कारिता की बात को स्वीकार करता है।
✿ रुद्राक्ष पहनने से भगवान शिव की विशेष कृपा होती है जिससे कुण्डली के दोष दूर होते हैं।
✿ रुद्राक्ष पहनने से शीघ्र ही मन शान्त होता है व आकर्षक फैलता है।
✿ दिमाग शान्त होता है।
✿ तनाव को दूर करता है।
✿ मानसिक बीमारी दूर होती है।
✿ वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है।
✿ जीवन में प्रेम बढने लगता है।
✿ मष्तिष्क पर नियंत्रण होता है।
✿ अलग अलग रुद्राक्ष अलग अलग कामनाओं की पूर्ति करता है जैसे कि 12 मुखी रुद्राक्ष- धन प्राप्ति के लिए
1 मुखी रुद्राक्ष- सुख व मोक्ष प्राप्ति हेतु
3 मुखी रुद्राक्ष- ऐश्वर्य प्राप्ति हेतु।
✿ अगर विवाह में अड़चनें आ रही हैं तो गौरी शंकर रुद्राक्ष माला धारण करने से शादी विवाह से जुड़ी सभी समस्याओं से निजात मिलता है।
✿ अगर किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं या फिर पढ़ाई में मन नहीं लग रहा है तो 5 मुखी धारण करना चाहिए।
✿ सेहत संबंधी परेशानियों से निजात पाने के लिए 11 मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए।
✿ इसके अलावा नौकरी में परेशानी आ रही है तो 3 मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए।
✿ अगर किसी को भी मदिरा जैसी कोई और बुरी आदत की लत लग गई है तो 5 मुखी रुद्राक्ष की माला पहनना चाहिए जिससे जल्द ही गलत आदत छूट जाएगी।
रुद्राक्ष धारण करने से होने वाले नुकसान
पंडित अंजनी कुमार दाधीच के अनुसार रुद्राक्ष के लाभ तो अनगिनत हैं लेकिन इसके साथ ही साथ कुछ ऐसे नियम भी हैं जो इसे धारणा करने वाले व्यक्ति को हमेशा याद रखने चाहिए क्योंकि इन नियमों की अनदेखी या उल्लंघन करने वाले व्यक्ति पर शिव का प्रकोप बरसता है उस व्यक्ति से संबंधित सभी व्यक्तियों या उसके आसपास मौजूद लोगों को भी इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।
☆ रुद्राक्ष पहनने के बाद नियम का पालन ना करने से यह व्यक्ति को पथभ्रष्ट कर देता है।
☆शराब पीने से या मांस खाने से रुद्राक्ष का बुरा असर पड़ता है।
☆बिना नियम पूर्वक पहना गया रुद्राक्ष मन को आस्थिर कर देता है।
☆ महिलाएं अगर पीरियड टाइम में इस माला को पहनेंगी तो उनके लिए जी यह बहुत ही नुकसानदेह हो सकता है।